मुंबई, 25 अगस्त रिजर्व बैंक ने कहा है कि पिछले वित्त वर्ष में बैंकों और वित्तीय संस्थानों में धोखाधड़ी होने और उसका पता चलने का औसत समय दो साल रहा। वहीं 100 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी होने के मामले में यह समय कहीं ज्यादा रहा है।
रिजर्व बैंक की मंगलवार को जारी वार्षिक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। इसके मुताबिक 2019- 20 में बैंकों और वित्त संस्थानों द्वारा रिपोर्ट किये गये एक लाख रुपये और इससे अधिक की धोखाधड़ी के मामले में संख्या के लिहाज से 28 प्रतिशत और मूल्य के हिसाब से 159 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हालांकि, धोखाधड़ी के इन मामलों के होने की तिथियां पिछले कई सालों के दौरान की रही हैं।
रिजर्व बैंक ने एक लाख रुपये और इससे अधिक की धोखाधड़ी के आंकड़े बताते हुये कहा कि 2019- 20 में कुल 8,707 धोखाधड़ी का पता चला जिसमें 1,85,644 करोड़ रुपये की राशि लिप्त रही। वहीं इससे पिछले साल इस प्रकार की 6,799 धोखाधड़ी के मामलों में 71,543 करोड़ रुपये की राशि की ही गड़बड़ी हुई।
चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से जुन अवधि के दौरान 28,843 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 1,558 मामले सामने आये हैं।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी के मामलों में औसतन 63 महीने में पता चला है। इनमें कई मामले तो पिछले कई साल पहले के हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों द्वारा अग्रिम चेतावनी संकेत (ईडब्ल्यूएस) पर ठीक से अमल नहीं करने, आंतरिक आडिट के समय ईडब्ल्यूएस का पता नहीं चलने, फारेंसिंक जांच के दौरान कर्जलेनदार का सहयोग नहीं मिलना, अधूरी आडिट रिपोर्ट और संयुक्त कर्जदाताओं की बैठक में फैसले नहीं ले पाना जैसे कई मुद्दे हैं जिनकी वजह से समय रहते धोखाधड़ी का पता नहीं चल पाता है।
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