भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्जेन्टीना में हैरतअंगेज रूप से चुनाव जीतने वाले हाविएर मिलेई को बधाई दी है. भारत के लिए अर्जेन्टीना एक अहम देश है.भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाविएर मिलेई को चुनाव जीतने की बधाई दी है. खुद को ‘अराजकतावादी-पूंजीवादी‘ कहने वाले मिलेई ने देश की राजनीति में लंबे अरसे से कायम पेरोनिस्ट गठबंधन को हराकर चुनाव जीता है.
नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपने बधाई संदेश में कहा, "भारत और अर्जेन्टीना के रणनीतिक संबंधों को और विविध व विस्तृत बनाने की दिशा में आपके साथ मिलकर काम करने को लेकर उत्साहित हैं."
भारत और अर्जेन्टीना एक-दूसरे के अहम व्यापारिक साझीदार हैं. पिछले साल दोनों देशों के बीच 6.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था, जो अब तक का सबसे अधिक है. 2021 के मुकाबले यह 12 फीसदी ज्यादा था. भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक भारत अर्जेन्टीना का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है.
भारत इस दक्षिण अमेरिकी देश को खेती के लिए रसायन, कपड़े, दवाएं और मोटरबाइक निर्यात करता है, जो पिछले साल 1.84 अरब डॉलर पर पहुंच गया. अर्जेन्टीना ने भारत को 4.55 अरब डॉलर का निर्यात किया जिनमें खाद्य तेल, चमड़ा, दालें और रसायन शामिल थे.
कौन हैं खाविएर मिलेई
सिर्फ बीते दो साल में 53 साल के हाविएर मिलेई दक्षिण अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की राजनीति के चरम पर पहुंचे हैं. टीवी बहसों में शामिल होने वाले एक सनकी वक्ता की पहचान से राष्ट्रपति पद पर पहुंचने का उनका सफर बहुत से लोगों के लिए हैरतअंगेज रहा है.
जब अर्जेन्टीना में चुनाव हुए, तब देश 40 फीसदी से ज्यादा गरीबी और 140 फीसदी महंगाई दरसे जूझ रहा था. दुनिया की सबसे अस्थिर अर्थव्यवस्थाओं में से एक अर्जन्टीना के लोगों के लिए बीते कुछ साल खासे मुश्किल रहे हैं.
मतदान से पहले 22 साल के छात्र ऑगस्टीन बालेटी ने कहा, "सब कुछ तो पहले से ही टूटा हुआ है. मिलेई नया कुछ नहीं तोड़ देंगे. पिछली सरकारों ने युवाओं को हताश कर दिया है.”
कई मुद्दों पर मिलेई के विचार अराजक माने जाते हैं. वह अबॉर्शन के विरोधी हैं, पोप के आलोचक हैं और जलवायु परिवर्तन के लिए इंसानी गतिविधियों को जिम्मेदार नहीं मानते. लेकिन विश्लेषक कहते हैं कि मिलेई की जीत में उनके अपने व्यक्तित्व से ज्यादा बड़ा योगदान इस बात का रहा है कि युवा मतदाताओं में यथास्थिति को लेकर खासा गुस्सा था.
राजधानी ब्यूनस एयर्स स्थित थिंकटैंक ईकॉनव्यूज में काम करने वाले अर्थशास्त्री आंद्रेस बोरेनश्टाइन कहते हैं कि अर्जेन्टीना के लोग "पुनोर्त्थान के लिए जुआ खेल रहे थे.”
कम बुरे का चुनाव
ऐटलस इंटेल नामक चुनाव सर्वेक्षण संगठन में वरिष्ठ विश्लेषक मारियाना पेईनादो कहती हैं कि जिन सर्वेक्षणों में मिलेई की जीत का पूर्वानुमान जाहिर किया गया, उनमें यह भी दिखाया गया कि अधिकतर लोग असल में उनकी बंदूकों की उपलब्धता आसान बनाने या स्थानीय मुद्रा पीसोकी जगह अमेरिकी डॉलर को लाने जैसी नीतियों के विरुद्ध हैं.
मिलेई ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान अबॉर्शन पर एक जनमत संग्रह कराने का सुझाव दिया था लेकिन अधिकतर सर्वेक्षणों में दिखा कि लोग अबॉर्शन के समर्थक हैं. जिन मुद्दों पर उन्हें समर्थन मिला उनमें सरकारी खर्च घटाना भी एक था.
जीबीएओ स्ट्रैटिजीज नामक थिंक टैंक की आना इपाराग्वायर कहते हैं कि उनके आंकड़ों के मुताबिक आधे से ज्यादा देशवासियों को लगता है कि अगली पीढ़ी की आर्थिक हालत और खराब होगी. वह कहती हैं, "ये लोग मानते हैं कि किसी तरह का सामाजिक चढ़ाव नहीं है.”
पेरोनिस्ट सरकार के दौरान स्वास्थ्य और शिक्षा मुफ्त उपलब्ध थी लेकिन इपाराग्वायर के मुताबिक "उनकी स्थिति लगातार खराब हो रही थी.” सर्वेक्षणों में दिखा कि मतदान से पहले तक भी दस फीसदी मतदाता किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रहे थे और समाचार एजेंसी एएफपी को कई मतदाताओं ने कहा कि "वे दो बुरे विकल्पों में से कम बुरा विकल्प” चुन रहे हैं.
वॉशिंगटन स्थित विल्सन सेंटर के अर्जेन्टीना प्रोजेक्ट के निदेशक बेन्जामिन गीडन कहते हैं, "मिलेई को वोट करने वाले ज्यादातर लोग उनकी ओर कम आकर्षक थे, (उनके प्रतिद्वन्द्वी सर्गियो) मासा से दूरी चाहते थे. मासा के वित्त मंत्री के तौर पर निराशाजनक प्रदर्शन ने बहुत से लोगों को संदेह में डाल दिया था कि वे राष्ट्रपति के रूप में बेहतर काम कर पाएंगे.”
स्वयंभू शेर, मिलेई
बिखरे बालों वाले मिलेई अक्सर खुद को शेर कहते हैं. उन्होंने अपनी एक रॉक स्टार जैसी छवि गढ़ी. उन्होंने अपने लिए एनकैप (अनार्किस्ट-कैपिटलिस्ट) जैसा विशेषण चुना और चुनावी सभाओं में वह चेन-सॉ लहराते नजर आए, जिसके जरिये वे सरकारी खर्च में कटौती का संदेश देते थे.
गीडन कहते हैं कि इस आदर्शनुमा अंदाज के जरिए उन्होंने एक नए तरह के नेतृत्व का संदेश दिया. उनकी सोशल मीडिया टीम युवाओं से भरी हुई थी. वह यूट्यूब और टिक-टॉक पर खूब सक्रिय थे. शायद यही वजह थी कि ऐटलस के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 16 से 24 साल के मतदाताओं के बीच 68 फीसदी मिलेई के समर्थक थे.
बोरेनश्टाइन कहते हैं, "मिलेई इसलिए लोकप्रिय हो गए क्योंकि वह भावनाओं की बात करते हैं. वह टिकटॉक वाले व्यक्ति हैं.”
इपाराग्वायर कहती हैं कि यह "पारंपरिक मीडिया, सरकारी खर्च और बड़े-बड़े बिलबोर्डों के जरिये संवाद के पुराने अंदाज की नए मीडिया माध्यमों के जरिए युवा मतदाताओं से जुड़ने के बीच की लड़ाई थी.”
वीके/सीके (एएफपी)