इजरायल-फिलिस्तीन विवाद की क्या है वजह? दशकों पुरानी जंग का क्यों नहीं निकल पा रहा समाधान?
इस खबर में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे दशकों पुराने संघर्ष की चर्चा की गई है, जिसमें हाल के दिनों में गाजा पट्टी में इजराइली और हमास के बीच भारी लड़ाई हुई है. 7 अक्टूबर को हमास के हमले के बाद इजराइल ने गाजा में सैन्य कार्रवाई शुरू की, जिसमें हजारों फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई है. इस संघर्ष की जड़ें 1947 में यूएन द्वारा पारित विभाजन योजना से जुड़ी हैं, जब इजराइल का गठन हुआ था. वर्तमान में, शांति प्रयासों में गतिरोध बना हुआ है, और दोनों पक्षों के बीच कई विवादित मुद्दों का समाधान होना बाकी है.
Israel and Palestine History: इजरायल और फिलिस्तीन का संघर्ष दुनिया के सबसे पुराने और जटिल संघर्षों में से एक है, जो लगभग सात दशकों से अधिक समय से चला आ रहा है. यह संघर्ष सिर्फ जमीन का विवाद नहीं है, बल्कि धार्मिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक विभिन्नताओं का एक मिश्रण है, जो आज भी मध्य पूर्व को अस्थिर बनाए हुए है. इस संघर्ष ने न केवल इजरायल और फिलिस्तीनियों को प्रभावित किया है, बल्कि इसने पूरी दुनिया को भी एक कठिन राजनीतिक और मानवाधिकार मुद्दे के सामने खड़ा कर दिया है.
संघर्ष की शुरुआत (Israel-Palestine War)
इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष (Israel Palestine Conflict) की जड़ें 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में हैं, जब यहूदी राष्ट्रवाद और अरब राष्ट्रवाद के बीच टकराव शुरू हुआ. उस समय फिलिस्तीन ओटोमन साम्राज्य के अधीन था. 1917 में, जब प्रथम विश्व युद्ध के बाद ओटोमन साम्राज्य का पतन हुआ, फिलिस्तीन ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया. इसके बाद ब्रिटिश शासन के दौरान यहूदियों ने इस क्षेत्र में बसने की कोशिश शुरू की, जिसे स्थानीय अरब निवासियों ने कड़ा विरोध किया.
बंटवारे का प्रस्ताव और 1948 का युद्ध
1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसमें फिलिस्तीन को दो भागों में विभाजित करने की योजना बनाई गई - एक यहूदी राज्य और एक अरब राज्य. इस योजना के अनुसार यहूदियों को 56% भूमि दी गई, जबकि अरबों को 44% भूमि. यहूदियों ने इस योजना को स्वीकार किया, लेकिन अरब लीग और फिलिस्तीनियों ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया.
1948 में इजरायल के संस्थापक डेविड बेन-गुरियन ने आधुनिक इजरायल राज्य की स्थापना की घोषणा की. इसके ठीक एक दिन बाद, मिस्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान, और इराक की सेनाओं ने इजरायल पर हमला कर दिया, जिससे 1948 का अरब-इजरायल युद्ध शुरू हुआ. इस युद्ध में इजरायल ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली और लगभग 700,000 फिलिस्तीनी अपनी जमीन से बेघर हो गए. इस घटना को फिलिस्तीनियों द्वारा "नकबा" (आपदा) कहा जाता है.
छह दिन का युद्ध और क्षेत्रीय विवाद
1967 में, इजरायल ने एक बार फिर से अपने पड़ोसी अरब देशों से युद्ध किया, जिसे छह दिन का युद्ध कहा जाता है. इस युद्ध में इजरायल ने पश्चिमी तट, गाजा पट्टी, पूर्वी यरुशलम, गोलान हाइट्स, और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया. इस युद्ध के बाद से इन क्षेत्रों को लेकर संघर्ष और तेज हो गया. खासकर यरुशलम का मुद्दा, जो यहूदियों, मुसलमानों, और ईसाइयों तीनों धर्मों के लिए पवित्र स्थल है, संघर्ष का मुख्य केंद्र बन गया.
फिलिस्तीनी शरणार्थियों का मुद्दा
1948 और 1967 के युद्धों के बाद, लाखों फिलिस्तीनी अपने घरों से बेघर हो गए. आज लगभग 56 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी हैं, जिनमें से अधिकतर जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, और अन्य पड़ोसी देशों में रह रहे हैं. फिलिस्तीनियों का दावा है कि इन्हें अपने घरों में लौटने का अधिकार होना चाहिए, जबकि इजरायल का कहना है कि इन शरणार्थियों की वापसी इजरायल के अस्तित्व को खतरे में डाल सकती है.
यरुशलम का विवाद
यरुशलम इस संघर्ष का एक और प्रमुख मुद्दा है. फिलिस्तीनी पूर्वी यरुशलम को अपने भविष्य के राज्य की राजधानी बनाना चाहते हैं, जबकि इजरायल पूरे यरुशलम को अपनी "अखंड और शाश्वत" राजधानी मानता है. 1967 में पूर्वी यरुशलम पर कब्जा करने के बाद, इजरायल ने इसे अपनी राजधानी घोषित किया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय का बड़ा हिस्सा इसे मान्यता नहीं देता.
2018 में अमेरिका ने यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दी और वहां अपना दूतावास स्थानांतरित किया, जिससे संघर्ष और बढ़ गया. फिलिस्तीनियों ने इसे एक बड़े अपमान के रूप में देखा, क्योंकि वे पूर्वी यरुशलम को अपनी राजधानी के रूप में देखते हैं.
गाजा पट्टी और हमास का उदय
2005 में, इजरायल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिकों और बस्तियों को हटा लिया. लेकिन इसके बाद 2006 में हुए फिलिस्तीनी चुनावों में हमास ने विजय प्राप्त की. हमास, जिसे कई देश एक आतंकवादी संगठन मानते हैं, ने गाजा पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया. हमास इजरायल के अस्तित्व को मान्यता नहीं देता है और इसके खिलाफ कई रॉकेट हमले किए हैं. इसके जवाब में, इजरायल ने भी गाजा पर कई सैन्य कार्रवाई की है, जिनमें से 2008, 2012, 2014, और 2021 के संघर्ष प्रमुख हैं.
हालिया संघर्ष: 2023 का युद्ध
7 अक्टूबर, 2023 को, हमास के सशस्त्र गुटों ने दक्षिणी इजरायल में हमला किया, जिसमें 1200 इजरायली नागरिकों की मौत हो गई और 253 लोगों को बंधक बना लिया गया. यह हमास का अब तक का सबसे बड़ा हमला था. इसके जवाब में, इजरायल ने गाजा पट्टी पर एक बड़ा सैन्य अभियान चलाया, जिसमें 41,500 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए और 2.3 मिलियन की आबादी वाले इस क्षेत्र में लगभग सभी लोग बेघर हो गए. गाजा पर यह हमला अब तक के सबसे घातक संघर्षों में से एक है.
हिजबुल्लाह और लेबनान से तनाव
इजरायल और फिलिस्तीन के संघर्ष ने मध्य पूर्व के अन्य देशों को भी प्रभावित किया है. हाल के सप्ताहों में इजरायल की लेबनान से सीमा पर तनाव बढ़ गया है, जहां हिजबुल्लाह ने हमास के समर्थन में इजरायल के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है. हिजबुल्लाह एक ईरान समर्थित संगठन है और यह भी इजरायल को खत्म करने की वकालत करता है.
शांति प्रयास और असफलताएं
पिछले दशकों में कई बार इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति वार्ता की कोशिश की गई है, लेकिन ये प्रयास अब तक असफल रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण शांति प्रयासों में से एक था 1993 का ओस्लो समझौता, जिसमें फिलिस्तीनी स्वायत्तता के कुछ हिस्सों को मान्यता दी गई थी. इसके बाद 2000 में कैम्प डेविड में एक शांति सम्मेलन आयोजित किया गया, लेकिन वह भी असफल रहा.
2020 में, इजरायल ने कुछ अरब देशों जैसे संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, और मोरक्को के साथ अब्राहम समझौते के तहत संबंधों को सामान्य किया. लेकिन फिलिस्तीनियों ने इसे अपने संघर्ष के लिए एक झटका माना, क्योंकि इन समझौतों में उनकी स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
मौजूदा स्थिति और आगे की चुनौतियां
2023 के संघर्ष के बाद से, शांति वार्ताओं के प्रयास फिर से शुरू हुए हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है. हमास का कहना है कि वह केवल तभी अपने बंधकों को रिहा करेगा, जब युद्ध समाप्त होगा और एक स्थायी शांति समझौता होगा. दूसरी ओर, इजरायल का कहना है कि वह तब तक लड़ाई जारी रखेगा, जब तक हमास पूरी तरह से नष्ट नहीं हो जाता.
इस संघर्ष के समाधान के लिए कई मुद्दों पर सहमति बनानी होगी, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं:
दो-राज्य समाधान: फिलिस्तीनी अपने लिए एक स्वतंत्र राज्य की मांग कर रहे हैं, जबकि इजरायल अपनी सुरक्षा के लिए पूरे पश्चिमी तट पर नियंत्रण बनाए रखना चाहता है.
यहूदी बस्तियां: इजरायल द्वारा 1967 के बाद कब्जे में लिए गए क्षेत्रों में यहूदी बस्तियों का निर्माण अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा अवैध माना जाता है, लेकिन इजरायल इसका विरोध करता है.
फिलिस्तीनी शरणार्थी: फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी का मुद्दा एक बड़ा विवाद है, जिसे इजरायल अपने अस्तित्व के लिए खतरे के रूप में देखता है.
यरुशलम की स्थिति: यरुशलम को लेकर इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के दावे एक बड़े टकराव का कारण बने हुए हैं.
निष्कर्ष
यह संघर्ष केवल क्षेत्रीय विवाद नहीं है, बल्कि इसके साथ जुड़े धार्मिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक मुद्दे इसे और भी जटिल बना देते हैं. इजरायल और फिलिस्तीनियों के लिए शांति की ओर एक रास्ता ढूंढना आसान नहीं होगा, क्योंकि दोनों पक्षों के लिए यह संघर्ष उनके अस्तित्व, पहचान और न्याय से जुड़ा हुआ है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कई बार शांति वार्ता की पहल की है, लेकिन बिना ठोस समाधान के. जब तक यरुशलम की स्थिति, शरणार्थियों का सवाल, और यहूदी बस्तियों का निर्माण जैसे प्रमुख मुद्दों पर कोई समझौता नहीं होता, तब तक इस संघर्ष का समाप्त होना मुश्किल है.
आज भी लाखों निर्दोष नागरिक इस हिंसा की चपेट में हैं, और दोनों पक्षों को भारी मानवीय नुकसान उठाना पड़ रहा है. ऐसे में यह जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस संघर्ष को सुलझाने में एक निर्णायक भूमिका निभाए और दोनों पक्षों को बातचीत के लिए प्रेरित करे. हालांकि शांति की राह कठिन है, लेकिन यह क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है.