
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के लगातार बढ़ने के बावजूद कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देश युद्ध के नतीजे जानते हैं, इसलिए वे ऐसा कदम नहीं उठाएंगे.कश्मीर में हाल ही में पर्यटकों पर हुए हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर तनाव गहरा गया है. भारत ने इस हमले के लिए "सीमा पार से जुड़े आतंकवादियों" को जिम्मेदार ठहराया है. इसके बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ कई कठोर कदम उठाए हैं. पाकिस्तान ने भारतीय विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद कर दिया, जबकि भारत ने 1960 की सिंधु जल संधि को निलंबित करने की घोषणा कर दी. नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी भी शुरू हो गई है, जो पिछले चार साल से अपेक्षाकृत शांत थी.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक और नई दिल्ली स्थित इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एनालिसिस के कार्यकारी परिषद सदस्य प्रोफेसर एसडी मुनी का मानना है कि यह सब एक तरह का ‘राजनीतिक तमाशा' है. उनके अनुसार, "यह एक राजनीतिक सवाल है, क्योंकि भारत और पाकिस्तान दोनों की सरकारें अपने-अपने देशवासियों को यह दिखाना चाहती हैं कि वे मजबूत सरकारें हैं.”
प्रतीकात्मक कार्रवाई की संभावना
मुनी ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि दोनों देश एक-दूसरे को करारा जवाब देने की बात करके घरेलू समर्थन जुटाना चाहते हैं. उन्होंने कहा, "यह युद्ध की भाषा है, लेकिन असल में कोई बड़ा युद्ध एक्शन नहीं होगा. दोनों देशों को अच्छी तरह से पता है कि दीर्घकाल में इसका कोई लाभ नहीं है.”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि बातों में भले ही आक्रोश हो, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बड़ा कदम उठाने से दोनों देश बचेंगे. मुनी ने कहा, "कुछ प्रतीकात्मक कार्रवाई हो सकती है, जैसा पहले बालाकोट जैसी प्रतिक्रिया में हुआ था, लेकिन पूर्ण युद्ध की संभावना बहुत कम है. यह कदम समझदारी नहीं होगा.”
हाल ही में भारत द्वारा सिंधु जल संधि निलंबित करने की घोषणा पर भी मुनी ने चिंता जताई. उन्होंने कहा कि अगर भारत सचमुच पाकिस्तान की ओर बहने वाले जल को रोकता है, तो वहां के कुछ जल विद्युत संयंत्रों को नुकसान हो सकता है और इसका असर आम नागरिकों पर भी पड़ेगा. उन्होंने कहा, "अगर सिर्फ 5-10 फीसदी पानी भी रोका गया तो उसका असर होगा. और फिर देखना होगा कि पाकिस्तान किस तरह से प्रतिक्रिया देता है.”
दिखावे की राजनीति
हालांकि मुनी ने यह भी स्पष्ट किया कि यह 'एस्केलेशन लैडर' यानी तनाव को धीरे-धीरे बढ़ाने की नीति है, लेकिन इसके चरम पर पहुंचने की संभावना नहीं है. उन्होंने कहा, "मौजूदा अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय परिस्थितियां भी किसी बड़े युद्ध की इजाजत नहीं देतीं. अगर वे युद्ध की ओर बढ़ते हैं तो यह दोनों देशों के लिए मूर्खतापूर्ण कदम होगा.”
विशेषज्ञों की मानें तो भारत और पाकिस्तान के बीच यह ताजा तनातनी भी पहले की तरह कुछ समय बाद ठंडी पड़ सकती है. पिछले दो दशकों में संसद हमले (2001), मुंबई आतंकी हमला (2008), उरी (2016) और पुलवामा (2019) जैसे हमलों के बाद भी दोनों देशों ने शुरू में तीखी प्रतिक्रियाएं दीं लेकिन फिर जल्द ही संयम का रास्ता चुना.
मुनी ने यह भी कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह "गिमिक” यानी दिखावे की राजनीति है. उन्होंने कहा, "वे दिखाना चाहते हैं कि कुछ कर रहे हैं, लेकिन असल में यह सब घरेलू दर्शकों के लिए है. मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता.”
भारत और पाकिस्तान के बीच बार-बार बढ़ते तनाव के बावजूद, विशेषज्ञों का यही मानना है कि दोनों देश अब एक पूर्ण युद्ध की कीमत समझते हैं और उससे बचना ही चाहते हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी दोनों देशों को संयम बरतने की सलाह देता रहे और कूटनीतिक रास्तों को प्राथमिकता दी जाए.