उलझे संबंधों को सुलझाने खाड़ी देश जाएंगे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान

तुर्की के राष्ट्रपति संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और कतर का दौरा करने वाले हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

तुर्की के राष्ट्रपति संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और कतर का दौरा करने वाले हैं. लंबे समय तक एक-दूसरे के विरोधी रहे ये चारों देश हाल में सहयोगी बन गए हैं. आखिर इनके संबंध इतने उलझे हुए क्यों हैं?तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान अरब खाड़ी देशों के तीन दिवसीय दौरे पर जाने वाले हैं. वे सोमवार को सऊदी अरब, मंगलवार को कतर और बुधवार को संयुक्त अरब अमीरात में रहेंगे. उम्मीद जताई जा रही है कि अपने इस दौरे में राष्ट्रपति एर्दोवान अरबों डॉलर के सौदे पर समझौता करेंगे. इसमें तुर्की की सरकारी संपत्तियों के निजीकरण से लेकर प्रत्यक्ष निवेश, रक्षा उद्योग से जुड़े सौदे और व्यापार अधिग्रहण या अनुबंध तक सब कुछ शामिल हो सकते हैं.

एर्दोवान ने हाल ही में तुर्क मीडिया से कह, "इस यात्रा के दौरान हमें व्यक्तिगत रूप से उन कामों की समीक्षा करने का मौका मिलेगा जो ये देश तुर्की की सहायता के लिए कर रहे हैं. उन्होंने पहले ही यह जाहिर कर दिया है कि वे मेरी पिछली बातचीत के दौरान ही तुर्की में बड़ा निवेश करने के लिए तैयार हो गए थे. मुझे उम्मीद है कि इस यात्रा के दौरान हम इन समझौतों को अंतिम रूप देंगे.”

तुर्की के वरिष्ठ अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि एर्दोवान की यात्रा के तुरंत बाद खाड़ी देशों से लगभग 10 अरब डॉलर के प्रत्यक्ष निवेश की पुष्टि होने की उम्मीद है. वहीं, लंबी अवधि के लिए यह निवेश बढ़कर 25 से 30 अरब डॉलर हो जाएगा. एर्दोवान की यात्रा से जुड़े आर्थिक पहलू तुर्की के लिए विशेष रूप से मायने रखते हैं. दरअसल, तुर्की की अर्थव्यवस्था कई वर्षों से खराब स्थिति में है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ऐसा एर्दोवान की अपरंपरागत नीतियों की वजह से हुआ है.

पश्चिम को तुर्की की जरूरत की पांच वजहें

मौजूदा समय में देश में महंगाई चरम पर है. तुर्की लीरा का मूल्य निचले स्तर पर पहुंच गया है और सरकार का बजट घाटा बढ़ता चला जा रहा है. हालांकि, इन सब के बीच एर्दोवान फिर से बीते मई महीने में दोबारा राष्ट्रपति बनने में सफल रहे. ऐसे में अब देश की अर्थव्यवस्था और उनके नेतृत्व को मजबूत करने के लिए अमीर खाड़ी देशों के साथ तुर्की का संबंध बेहतर बनाना आवश्यक माना जा रहा है.

तेल समृद्ध खाड़ी देशों ने प्रत्यक्ष मुद्रा विनिमय समझौतों और सीधे तुर्की सरकार के खातों में धन जमा करके थोड़े समय के लिए तुर्की के विदेशी मुद्रा संकट को हल करने में मदद की है. कतर और यूएई ने तुर्की को मुद्रा विनिमय समझौते के तहत करीब 20 अरब डॉलर दिए हैं. मार्च में सऊदी अरब ने अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए तुर्की के केंद्रीय बैंक में 5 अरब डॉलर जमा किए.

हालांकि, बीते कुछ समय में खाड़ी देशों ने जिस तरह से तुर्की की मदद की है, हमेशा से ऐसा नहीं रहा है. ठीक तीन साल पहले, तुर्की और सऊदी अरब एक-दूसरे के साथ आयात का विरोध कर रहे थे और मीडिया घरानों पर प्रतिबंध लगा रहे थे. तुर्की का दक्षिण में अपने धनी पड़ोसियों के साथ लंबे समय तक बेहतर संबंध नहीं था. उनकी आपसी प्रतिद्वंद्विता चरम पर थी. उन्होंने अपने सभी संबंध तोड़ दिए थे. अब वे फिर से एक-दूसरे के नजदीक आए हैं और संबंध मैत्रीपूर्ण हुआ है.

कतर के साथ निजी हित की पूर्ति के लिए संबंध

इन तीन खाड़ी देशों में से, तुर्की के कतर के साथ सबसे अच्छे संबंध हैं. कतर लगभग एक दशक से तुर्की का सहयोगी है. 2014 में गंभीर राजनयिक संकट के दौरान तुर्की ने कतर का पक्ष लिया था. उस समय विदेश नीति को लेकर उपजे मतभेदों के कारण कतर को उसके बड़े पड़ोसियों सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने अलग-थलग कर दिया था. यह राजनीतिक संघर्ष चरम पर पहुंच गया था. 2017 से लेकर 2021 की शुरुआत तक हवाई, जमीन और समुद्र तीनों तरीकों से कतर की घेराबंदी की गई. इस दौरान तुर्की ने कतर में भोजन, पानी और दवाएं भेजीं. साथ ही, कतर के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाए रखा. यहां तक कि तुर्की अपने सैनिकों को भी वहां तैनात करने के लिए आगे बढ़ा.

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कतर ने भी तुर्की के इस एहसान के बदले अंतरराष्ट्रीय मंच पर तुर्कों का समर्थन किया. उदाहरण के लिए, अरब लीग में उसने तुर्की का पक्ष लिया और देश में बड़ा वित्तीय निवेश किया. 2016 से 2019 के बीच तुर्की में कतर का निवेश 500 फीसदी बढ़ गया. हेग स्थित क्लिंगेंडेल इंस्टीट्यूट थिंक टैंक के शोधकर्ताओं ने 2021 की ब्रीफिंग में लिखा कि कतर और तुर्की के संबंधों के पीछे की वजह वैचारिक और राजनीतिक प्रेरणा बताई जाती है, लेकिन असल में यह ‘सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक लाभ के लिए की गई शादी' की तरह है. सामान्य शब्दों में कहें, तो अपने निजी हित की पूर्ति के लिए बनाए गए संबंध हैं. उन्होंने बताया, "तुर्की की सैन्य सहायता कतर को स्वतंत्र विदेशी नीति बनाए रखने के लिए जरूरी सुरक्षा उपलब्ध कराती है. इससे वह सऊदी और संयुक्त अरब अमीरात के दबाव का सामना कर सकता है. जबकि तुर्की के लिए कतर के साथ बेहतर संबंध ‘सुन्नी दुनिया के नेतृत्व के लिए अपने दावे' को बढ़ावा देने का एक तरीका है.”

संयुक्त अरब अमीरात से आर्थिक दोस्ती

संयुक्त अरब अमीरात ने बीच का रास्ता अपनाया है. तुर्की के साथ इसके राजनयिक संबंध उस समय काफी ज्यादा तनावपूर्ण हो गए थे जब तुर्की ने खाड़ी देशों के विरोध में कतर का पक्ष लिया था. हालांकि, 2021 के आखिर में जैसे ही खाड़ी देशों के साथ कतर का राजनयिक संबंध बेहतर हुआ, तुर्की भी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपने संबंधों को तेजी से बेहतर बनाने लगा.

मई में एर्दोवान की चुनावी जीत के तीन दिन बाद, तुर्की और यूएई ने अगले पांच वर्षों के लिए करीब 40 अरब डॉलर के व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए. दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में सहयोग और बिक्री बढ़ने की भी संभावना है. 2022 के आखिर में, संयुक्त अरब अमीरात तुर्की से 120 बायराक्तार टीबी2 ड्रोन खरीदने पर विचार कर रहा था. इस सौदे के तहत हर ड्रोन की अनुमानित कीमत लगभग 50 लाख डॉलर है. पिछले साल नवंबर महीने में 20 ड्रोन संयुक्त अरब अमीरात को सौंपे गए थे.

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सऊदी अरब के साथ उतार-चढ़ाव वाला संबंध

जब खाड़ी देशों के साथ तुर्की के संबंधों की बात आती है, तो राजनयिक मामले में जितना बेहतर संबंध कतर के साथ है सऊदी अरब उसके ठीक विपरीत छोर पर है. कतर विश्वविद्यालय की शोधकर्ता सिनेम सेंगिज ने गल्फ इंटरनेशनल फोरम के लिए मई में एक विश्लेषण में लिखा, "तुर्की और सऊदी अरब ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धी रहे हैं. वे अपने प्रभाव और नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. इस सदी की शुरुआत के बाद से दोनों के संबंधों को ‘रोलर कोस्टर' के तौर पर बताया जा सकता है.”

2011 में अरब वसंत की क्रांति ने मध्य पूर्व में कई तानाशाहों को उखाड़ फेंका. इसकी वजह से कुछ देशों में लंबे समय तक संघर्ष और अस्थिरता का माहौल बना रहा. तुर्की के साथ-साथ कतर भी सीरिया जैसे देशों में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के साथ खड़ा दिखा. तुर्की की राजधानी अंकारा में टीओबीबी यूनिवर्सिटी ऑफ इकोनॉमिक्स एंड टेक्नोलॉजी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर सबन करदास ने 2021 के अंत में एक विश्लेषण में बताया था, "अन्य खाड़ी देशों को चिंता थी कि तुर्की के इरादे आक्रामक हो सकते हैं. वह अन्य देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करना और अरब दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाह रहा है.”

करदास ने आगे बताया, "खाड़ी देशों ने इसे एक तरह के नव-साम्राज्यवादी दृष्टिकोण के रूप में देखा और तुर्की को स्थिति को अस्थिर करने वाले देश के तौर पर नामित करने का फैसला किया.” 2018 में, सऊदी अरब के इस्तांबुल वाणिज्य दूतावास में सऊदी सरकार के आलोचक और पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद तुर्की और सऊदी के राजनयिक संबंध लगभग पूरी तरह खत्म हो गए थे. 2020 तक सऊदी कारोबारी तुर्की में बने सामानों का बहिष्कार करने की मांग कर रहे थे.

दोनों देशों ने उसी वर्ष एक-दूसरे के मालिकाना हक वाले मीडिया घराने पर प्रतिबंध लगा दिया था. सऊदी ने अंतरराष्ट्रीय विवादों में भी तुर्की का विरोध करना शुरू कर दिया था. उदाहरण के लिए, जब तुर्की और ग्रीस या मिस्र के बीच बहस की बात आई. तथ्य यह है कि तुर्की भी इस्लामी दुनिया के भीतर एक वैचारिक नेता बनता जा रहा था. इससे सऊदी परेशान था. दरअसल, पारंपरिक तौर पर वैश्विक जगत में सुन्नी मुस्लिम समुदाय का नेता सऊदी को माना जाता है.

लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता के बावजूद, पिछले एक साल में यह दुश्मनी कुछ हद तक कम हो गई है. खाड़ी देशों में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक सऊदी अरब का तुर्की के साथ सामान्य आर्थिक संबंध बहाल हो गया है. इसमें दोनों देशों के अपने-अपने हित शामिल हैं.

तुर्की के साथ सऊदी का व्यापार सभी खाड़ी देशों की तुलना में सबसे तेजी से बढ़ा है. 2022 में दोनों देशों के बीच करीब 6.5 अरब डॉलर का कारोबार हुआ. 2023 के पहले छह महीनों में यह द्विपक्षीय व्यापार 3.4 अरब डॉलर का रहा. तुर्की की सरकारी अनादोलु एजेंसी ने 12 जुलाई को यह रिपोर्ट जारी की है. जून में, समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने बताया कि सऊदी अरब की सरकारी तेल कंपनी आरामको ने अगले पांच वर्षों में 50 अरब डॉलर की संभावित परियोजनाओं पर काम करने के मकसद से अंकारा में तुर्की के 80 अलग-अलग ठेकेदारों से मुलाकात की.

विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की के उभरते रक्षा क्षेत्र में भी सऊदी दिलचस्पी दिखा सकता है. उसने अभी तक तुर्की से एक भी बायराक्तार ड्रोन नहीं खरीदा है, लेकिन इसमें उसकी दिलचस्पी हो सकती है. साथ ही, यह भी सुझाव दिया गया है कि तुर्की सेना अपनी आधुनिक नौसेना के साथ तेल शिपिंग वाले रास्तों पर गश्त लगाने जैसे काम कर सकती है.

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