
पहले कनाडा और फिर ऑस्ट्रेलिया में जिन सरकारों के हारने की मजबूत संभावना थी, वो चुनाव जीत गईं. दोनों में एक ही बात साझा है, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामकता.ऑस्ट्रेलिया में अगर आम चुनाव जनवरी में होता, तो नतीजे कुछ और हो सकते थे. जनवरी 2025 में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी की रेटिंग में भारी गिरावट देखी गई थी. स्थानीय अखबार 'द ऑस्ट्रेलिया' के सर्वे के मुताबिक उनकी रेटिंग माइनस 20 थी, जो साल 2022 में पद संभालने के बाद से सबसे कम थी. विपक्षी गठबंधन को 49 के मुकाबले 51 फीसदी वोटों से जीत मिलने की संभावना थी. करीब 53 फीसदी वोटर देश में विपक्षी लिबरल नेशनल गठबंधन की जीत तय मान रहे थे.
लेकिन शनिवार, 3 मई को हुए चुनाव में नतीजे इस अनुमान के एकदम उलट आए. अल्बानीजी की लेबर पार्टी को 78 सीटें मिलीं, जबकि बहुमत के लिए 76 सीटों की जरूरत थी. यानी जो सरकार चुनाव से पहले अल्पमत में थी और ग्रीन पार्टी के सहारे चल रही थी, उसे बहुमत मिल गया.
डॉनल्ड ट्रंप के बदल दी हवा
जनवरी और मई के बीच एक ही चीज बदली थी, डॉनल्ड ट्रंप. अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद दुनिया का माहौल बदल गया है. राष्ट्रवाद और संरक्षणवाद को नई ऊर्जा मिली है. विशेषज्ञों के अनुसार, ट्रंप स्टाइल की जो राजनीति उनके 2016 में राष्ट्रपति बनने के बाद लोकप्रिय हो रही थी, अब उसकी धार कमजोर हो रही है.
यही वजह रही कि ऑस्ट्रेलिया में विपक्षी नेता पीटर डटन का ट्रंप के अंदाज वाला चुनाव अभियान चारों खाने चित्त हो गया. लिबरल पार्टी के नेता पीटर डटन ने 'मेक ऑस्ट्रेलिया ग्रेट अगेन' जैसा नारा देने वाली जसिंटा प्राइस को पार्टी का चेहरा बनाया और शरणार्थियों व अपराध को मुद्दा चुना. इस रणनीति का नतीजा उलटा पड़ा. पीटर डटन दो दशकों से जिस सीट पर चुनाव जीतते आ रहे थे, उसे भी खो बैठे.
चुनाव के नतीजों पर पूर्व प्रधानमंत्री मैलकम टर्नबुल ने कहा, "डॉनल्ड ट्रंप हमारे कंजर्वेटिव गठबंधन के लिए एक विनाशक बम साबित हुए हैं."
'न्यूज डॉट कॉम' ने लिखा कि दुनियाभर में ऑस्ट्रेलियाई चुनाव को "एंटी-ट्रंप मूवमेंट" के रूप में देखा गया. डटन की पार्टी सिर्फ 65 सीटों पर सिमट गई.
चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री अल्बानीजी ने कहा, "हम अपनी प्रेरणा कहीं और से नहीं लेते. यह हमारे लोगों और मूल्यों में है."
कनाडा में ट्रंप का असर
कनाडा में लिबरल पार्टी लंबे समय से सत्ता में थी, लेकिन पिछले प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता उनके आखिरी दिनों में बेहद नीचे चली गई थी. जनवरी 2025 में उन्होंने इस्तीफा दिया और मार्क कार्नी को लिबरल पार्टी का नया नेता चुना गया. कार्नी ने औचक आम चुनाव कराए, लेकिन ऐसा माना जा रहा था कि कंजर्वेटिव नेता पियरे पोलीएव अगली सरकार बनाएंगे. लिबरल पार्टी की लोकप्रियता घट रही थी और 'इप्सोस' के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में कंजर्वेटिव्स को 38 फीसदी, जबकि लिबरल्स को सिर्फ 30 फीसदी वोट मिलने की संभावना जताई गई थी.
लेकिन चुनाव से कुछ हफ्ते पहले ट्रंप ने बयान दिया कि "कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बना देना चाहिए" और कनाडा के ऑटो सेक्टर पर टैरिफ की धमकी भी दी. इस बयान ने पूरे कनाडा में गुस्से की लहर पैदा कर दी. पूर्व पीएम जस्टिन ट्रूडो ने तीखा जवाब दिया, "कनाडा कभी भी अमेरिका का हिस्सा नहीं बनेगा, चाहे कुछ भी हो जाए."
हालंकि, कंजर्वेटिव नेता पोलीएव ने भी इस बयान को खारिज किया था. उन्होंने कहा, "कनाडा एक महान और स्वतंत्र देश है. हम कभी किसी और के अधीन नहीं होंगे."
लेकिन कनाडा के लोग सरकार बदलकर प्रयोग करने के बजाय ट्रंप का मुकाबला करने पर केंद्रित हो गए. 'वॉक्स' चैनल ने राजनीतिक विश्लेषक एलेक्स मारलैंड के हवाले से बताया, "ट्रंप के दखल ने वामपंथी वोटरों को एकजुट कर दिया. सिर्फ ट्रंप के डर से एनडीपी वोटर लिबरल पार्टी की ओर चले गए."
चुनाव परिणाम में लिबरल पार्टी को 155 सीटें मिलीं, जबकि कंजर्वेटिव्स 137 पर रुक गए. एनडीपी का वोट प्रतिशत 13 फीसदी से गिरकर सिर्फ आठ फीसदी रह गया, जिसका सीधा फायदा लिबरल्स को मिला. लिबरल नेता और नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा, "अब हम गुस्से और विभाजन की राजनीति को पीछे छोड़ेंगे. मेरी सरकार सबके लिए काम करेगी."
ट्रंप विरोध अब वैश्विक चुनावी रणनीति?
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के उदाहरणों से साफ है कि ट्रंप की राजनीति अब सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रही. चाहे वह नस्लीय ध्रुवीकरण हो या अंतरराष्ट्रीय मामलों में आक्रामकता, ट्रंप की भाषा, शैली और नीति दूसरे देशों में भी चुनाव परिणामों को प्रभावित कर रही है.
ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रेस सचिव एंड्रयू कार्सवेल ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, "ऑस्ट्रेलिया के और असल में पूरी दुनिया के कंजर्वेटिव गठबंधन के लिए ट्रंप घातक साबित हो रहे हैं."
ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में जिन सरकारों की लोकप्रियता गिर रही थी, उन्हें "ट्रंप विरोध" की वजह से सत्ता विरोधी लहर से उबरने का मौका मिला. विपक्षी पार्टियों द्वारा ट्रंप शैली अपनाने से उन पर वही संदेह जनता को हुआ, जो अमेरिका में होता रहा है. कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक, यह एक मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया है. जब किसी देश के चुनाव में ट्रंप जैसी भाषा, विचार या धमकी शामिल होती है तो मतदाता डर जाते हैं. तब वे "परिचित बुराई" यानी वर्तमान सरकार को "अनिश्चित डर" यानी ट्रंप शैली वाले विपक्ष से बेहतर मानते हैं.