प्लास्टिक की गुड़िया बार्बी डॉल जो दुनिया भर की चहेती बन गई
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

बार्बी से न तो प्यार करने वालों की कमी है और न ही उससे नफरत करने वालों की. हालांकि, यह सवाल जरूर है कि आखिर यह डॉल दुनिया में इतनी लोकप्रिय कैसे हुई? इसमें खास क्या है?ग्रेटा गेरविग के निर्देशन में बनी नई फिल्म ‘बार्बी' ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं. इसके पहले टीजर ट्रेलर में, निर्देशक स्टेनली कुब्रिक की 1968 में रिलीज फिल्म "2001: ए स्पेस ओडिसी” के प्रतिष्ठित "डॉन ऑफ मैन” के शुरुआती सीक्वेंस की नकल की गई है. नई फिल्म में दिख रहा है कि बार्बी डॉल रेगिस्तान जैसे इलाके में एक बड़े पत्थर के सामने इस तरह खड़ी है, जैसे लगता है कि वह कोई मूर्ति, देवी या सुपरवुमन है.

गेरविग की फिल्म में युवा लड़कियां पुराने जमाने की बेबी डॉल्स के साथ खेलती दिखाई गई हैं, लेकिन फिर वे अपने पुराने खिलौनों को फेंक देती हैं. ऐसा तब होता है, जब वे एक लंबी, आकर्षक बार्बी को ऊंची एड़ी वाली सैंडल और धारीदार स्विम सूट पहने हुए देखती हैं. इसके बाद, बार्बी अपने सफेद फ्रेम और कैट आई वाले धूप के चश्मे को थोड़ा हटाकर दर्शकों को आंख मारती हैं. इस फिल्म में बार्बी का किरदार मार्गोट रोबी ने निभाया है.

बार्बी डॉल ने की जीरो ग्रैविटी की सैर

यह टीजर ट्रेलर दिसंबर 2022 में वार्नर ब्रदर्स पिक्चर्स ने जारी किया है. इस टीजर को देखने पर तुरंत ही ‘स्पेस ओडिसी' फिल्म की याद आ जाती है. इसमें ना सिर्फ कुब्रिक के क्लासिक फिल्म की तरह शरारत भरे लहजे में आंख मारने जैसा दृश्य है, बल्कि यह बार्बी डॉल के बनाए जाने और इसकी सफलता के पीछे की कहानी को भी बयान करता है.

कहां से आई बार्बी डॉल

रूथ हैंडलर को "बार्बी की मां” के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 1916 में हुआ था और वह 2002 तक जीवित रहीं. वह अपनी बेटी और उसकी सहेलियों के लिए मां के रूप में उनकी भावी भूमिका के अभ्यास के लिए एक और डॉल नहीं बनाना चाहती थीं. रूथ हैंडलर की बनाई गई डॉल दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाले खिलौनों में से एक बन गई. इस डॉल में एक युवा महिला को दिखाया गया, जो आत्मविश्वासी, आकर्षक और कामकाजी थी.

अमेरिका में रहने वाली हैंडलर एक पोलिश-यहूदी प्रवासी परिवार से थीं जिसमें हर किसी को कमाना पड़ता था, चाहे वह पुरुष हो या महिला. अपने पति इलियट और एक दूसरे शख्स हेरोल्ड मैटसन के साथ मिलकर उन्होंने 1945 में एक गैरेज में मैटल कंपनी की स्थापना की थी. इन तीनों ने पिक्चर फ्रेम और गुड़िया घर फर्नीचर का निर्माण किया. गुड़िया घर का फर्नीचर काफी ज्यादा बिका, इसलिए उन्होंने कई तरह के खिलौने बनाने में विशेषज्ञता हासिल की. अब यह दुनिया की सबसे बड़ी खिलौना कंपनियों में से एक है.

पांच बच्चों की मां सर्जरी से बनी बार्बी डॉल

बार्बी को करियर बनाने वाली यानी कामकाजी महिला के तौर पर डिजाइन किया गया था. सेक्रेट्री, डॉक्टर, पायलट, अंतरिक्ष यात्री और यहां तक कि अमेरिका की महिला राष्ट्रपति के रूप में भी बार्बी को डिजाइन किया गया. यह कुछ ऐसा है जो असल दुनिया में अब तक नहीं हुआ है. बार्बी डॉल को सभी तरह की कामकाजी महिलाओं के कपड़ों में डिजाइन किया गया. आज भी, खिलौने बनाने वाली इस कंपनी मैटल का कहना है कि बार्बी "हर लड़की को प्रेरित करती है कि उसमें असीमित क्षमता है.”

बार्बी की जानी-मानी प्रशंसक सुजैन शापिरो इस डॉल के पीछे के संदेश को लेकर कहती हैं, "आपको छोटे बच्चों की देखभाल करने वाली मां बनने की जरूरत नहीं है. आपको शादी करने की जरूरत नहीं है. आपको यह जरूरत नहीं है कि आपके पिता या पति आपकी सहायता के लिए हमेशा साथ खड़े रहें. आप अपनी मदद खुद कर सकती हैं. आप जो चाहें कर सकती हैं. आपके पास अपना करियर बनाने के लिए सैकड़ों विकल्प हैं. आप कुछ भी बन सकती हैं.”

बार्बी के पास अपना घर और अपनी कार है, जिसमें उसके वफादार साथी केन को 1961 से यात्री सीट पर बैठने की इजाजत है. हालांकि, बार्बी के ग्लैमर के सामने वह कभी नहीं टिक सका. बार्बी फिल्म में केन के किरदार के रूप में रयान गोसलिंग इस बात को लेकर दुखद गीत भी गाते हैं, "ऐसा लगता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं क्या करता हूं. मैं हमेशा नंबर दो पर हूं... मैं सिर्फ केन हूं.”

नारीवादी प्रतीक या खूबसूरती का घातक पैमाना?

यह हकीकत है कि रूथ हैंडलर ने अपनी बेटी बारबरा के नाम पर एक डॉल बनाई थी. इस डॉल में आर्थिक रूप से स्वतंत्र और कामकाजी महिला को दिखाया गया. यह 1950 और 1960 के दशक की शुरुआत में रूढ़िवादी समाज में महिलाओं को प्रेरित करने वाली चीज थी.

इसके बावजूद, बार्बी को नारीवादी गलियारों में बदनामी का सामना करना पड़ा. अमेरिकी लेखिका और नारीवादी जिल फिलीपोविक के मुताबिक, बार्बी वास्तव में नारीत्व की एक गलत छवि बनाती है. क्या आकर्षक महिला होने का मतलब यह होता है कि वह एक अच्छी और काबिल महिला हो.

‘लंबे पैर, ततैया जैसी पतली कमर, सुगठित शरीर' बार्बी के साथ इस आदर्श को बच्चों के कमरों में ले जाया गया. सांस्कृतिक वैज्ञानिक एलिजाबेथ लेचनर ने डीडब्ल्यू से बार्बी के बारे में बात करते हुए कहा, "यह पूरी तरह जवान थी, गोरी थी, किसी तरह की शारीरिक कमी नहीं थी और यह पूंजीवादी दुनिया में प्रदर्शन के लिए तैयार थी.”

अध्ययनों से पता चलता है कि सुंदरता का एक संदिग्ध पैमाना लड़कियों में विकृत शारीरिक छवि को जन्म दे सकता है. मैटल ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी और अपने प्रॉडक्ट के रेंज का विस्तार किया. साथ ही, इसे अलग-अलग तरीकों से डिजाइन करते हुए ज्यादा विविधता वाला बनाया. अब अलग-अलग डिजाइन वाली बार्बी डॉल मौजूद हैं. उनके शरीर की बनावट अलग-अलग है. किसी में कृत्रिम पैर लगे हैं, तो कोई व्हील चेयर पर बैठी है. अब कीमोथेरेपी और डाउन सिंड्रोम वाली बार्बी डॉल भी है.

एलिजाबेथ लेचनर ने शरीर की छवियों और बॉडी पॉजिटिविटी को लेकर गहराई से अध्ययन किया है. उनके मुताबिक, अलग-अलग तरह के डॉल बनाने से मूल समस्या नहीं बदलती है. दरअसल, बॉडी पॉजिटिविटी एक अवधारणा है, जिसके तहत सभी तरह के शरीरों की स्वीकृति को बढ़ावा देने की बात की जाती है.

वह कहती हैं, "अब कई सारे ऐसे अध्ययन हैं जिनसे यह साबित होता है कि अगर किसी वस्तु को सकारात्मक नजरिए से भी डिजाइन किया जाता है, तो ये महिलाओं को याद दिलाते हैं कि ऐसा उनके शारीरिक संरचना और रूप-रंग के हिसाब से किया गया है.”

एक बार्बी के अनेक रूप

बार्बी डॉल में विविधता लाने के लिए पहला कदम 1960 के दशक में उठाया गया था, जब नस्लीय संघर्षों ने संयुक्त राज्य अमेरिका को हिलाकर रख दिया था. जिस वर्ष मार्टिन लूथर किंग की हत्या हुई थी, उसी समय बार्बी की दुनिया में पहली ब्लैक डॉल दिखी थी. उसका नाम क्रिस्टी था. निर्देशक लागुएरिया डेविस ने अपनी डॉक्युमेंट्री "ब्लैक बार्बी” में इसके बनाने के पीछे की कहानी की जानकारी दी है.

लागुएरिया डेविस की चाची बेउला मेई मिशेल जैसी कामकाजी अश्वेत महिलाएं ही थीं, जिन्होंने रूथ हैंडलर को इस विचार के लिए राजी किया था. डेविस ने कहा, "हमें एक ब्लैक खिलौना चाहिए था! हम एक ब्लैक डॉल चाहते थे! एक ऐसी डॉल जिससे अफ्रीकी अमेरिकी लड़कियों की पहचान हो सके.” हालांकि, 1980 तक इस ब्लैक डॉल को बार्बी कहने की अनुमति नहीं थी.

डेविस ने डीडब्ल्यू को बताया, "मैटल की कहानी से लगता है कि वे हमारे नजरिए से बार्बी के लिए एक ब्लैक दोस्त को पेश करने में काफी प्रगतिशील हैं. हालांकि, यह उनके लिए प्रगतिशील कदम लगता है, लेकिन हमारे नजरिए से कम प्रगतिशील है, क्योंकि 21 वर्षों तक बार्बी ब्रांड के लायक कोई ब्लैक फैशन डॉल नहीं थी.”

इसके बावजूद, उस समय बेउला मेई मिशेल की कई पीढ़ी की महिलाओं के लिए यह जीत थी. ब्लैक बार्बी यह सबूत है कि अफ्रीकी अमेरिकी महिलाएं सुंदर थीं और वे ग्लैमरस और सफल हो सकती थीं.

अफ्रीका से प्रतिस्पर्धा

इस बीच, अफ्रीकी महाद्वीप में ब्लैक बार्बी एक बड़ी प्रतिद्वंद्वी बन गई है. नाइजीरियाई कारोबारी ताओफिक ओकोया ने 2007 में बाजार में एक कमी देखी. यह बात उन्हें अपनी बेटी से बातचीत के दौरान पता चली. उनकी बेटी ने कहा कि वह ब्लैक की बजाय गोरी होना पसंद करेंगी, क्योंकि गोरा रंग ज्यादा खूबसूरत होता है. इसलिए उन्होंने एक ऐसी आकृति की तलाश की जिससे अफ्रीकी लड़कियां अपने रंग और शारीरिक बनावट पर गर्व महसूस कर सकें.

इस तरह से क्वीन्स ऑफ अफ्रीका अस्तित्व में आईं. हालांकि, ये वैश्विक स्तर के सौंदर्य के मानकों के मुताबिक सिर्फ गहरे रंग की त्वचा वाली छवियां नहीं हैं, बल्कि ओकोया की डॉल नाइजीरिया के कई जातीय समूहों की त्वचा के रंग, हेयर स्टाइल और कपड़ों पर आधारित हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "यह मेरी पहचान है. यह मैं हूं. और यही संदेश क्वीन्स ऑफ अफ्रीका का है.”

क्या बार्बी प्रासंगिक है?

यह डॉल किसी खिलौने की तुलना में ज्यादा मायने रखती है. यह एक बच्चे के लिए पहचान का प्रतीक हो सकती है. इससे कोई बच्चा अपने मन में यह छवि बना सकता है कि सुंदरता का पैमाना क्या होता है. इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि आज भी बार्बी डॉल महिला सशक्तिकरण, सौंदर्य के पैमाने और अपनी प्रासंगिकता को लेकर बहस का विषय बनी हुई है.

गैर-लाभकारी मीडिया आउटलेट द कन्वर्सेशन ने रिपोर्ट की है कि अमेरिकी रिसर्चरों ने पिछले साल यह पता लगाया था कि प्रत्येक डॉल के निर्माण से जलवायु पर कितनी लागत आती है. रिपोर्ट के मुताबिक, प्रत्येक 182 ग्राम की प्लास्टिक बार्बी डॉल के उत्पादन, परिवहन वगैरह से करीब 660 ग्राम कार्बन का उत्सर्जन होता है.

पिछले छह दशकों से बार्बी सबसे ज्यादा बिकने वाले खिलौनों में शामिल है. इस दौरान इसे बनाने वाली कंपनी मैटल ने समय के मुताबिक अपनी मार्केटिंग रणनीति में बदलाव किया है. अब उसने फिर से इस्तेमाल की जा सकने वाली प्लास्टिक से बनी बार्बी भी लॉन्च की है. बार्बी संभवतः अब तक की "सामाजिक अन्याय और भेदभाव के प्रति जागरूक करने वाली डॉल” है. हालांकि, केवल एक ही चीज है जो उसकी कभी नहीं बदली. चाहे उसकी त्वचा का रंग काला हो या गोरा, वह ‘हमेशा जवान' बनी रहती है. उसकी उम्र कभी नहीं बदलती.