कोलंबो, 15 सितंबर श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि उनका देश हिंद महासागर में किसी भी ‘‘बड़ी शक्ति प्रतिद्वंद्विता’’ में शामिल नहीं होगा और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनका देश हंबनटोटा को लेकर ‘‘दो पाटों के बीच में पीस रहा है.’’ कुछ सप्ताह पहले चीन के एक उन्नत पोत के श्रीलंका के हंबनटोटा आने को लेकर भारत और चीन के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी. उन्होंने भू-राजनीतिक मंच पर श्रीलंका की स्थिति पर कहा कि श्रीलंका निश्चित रूप से नहीं चाहता कि प्रशांत महासागर की समस्या हिंद महासागर में आए. यह भी पढ़ें: भारत जल्द ही रूस के साथ रुपये में व्यापार करना करेगा शुरू-निर्यात निकाय अध्यक्ष ए शक्तिवेल
विक्रमसिंघे ने बुधवार को राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज के स्नातक समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम किसी सैन्य गठबंधन में शामिल नहीं होते और हम निश्चित रूप से नहीं चाहते कि प्रशांत महासागर की समस्याएं हिंद महासागर में आएं। हम नहीं चाहते कि यह संघर्ष का क्षेत्र और युद्ध का क्षेत्र हो। श्रीलंका किसी भी बड़ी शक्ति प्रतिद्वंद्विता में शामिल नहीं होगा.’’
विक्रमसिंघे की यह टिप्पणी चीनी दूतावास और भारतीय उच्चायोग के बीच श्रीलंका के दक्षिणी हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जहाज 'युआन वांग 5' के आने को लेकर वाकयुद्ध के कुछ सप्ताह बाद आयी है. विक्रमसिंघे ने कहा कि ‘‘हिंद महासागर की भू-राजनीति ने दुर्भाग्य से श्रीलंका को हंबनटोटा को लेकर दो पाटों के बीच में पीस दिया है.’’
विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘यह कोई सैन्य बंदरगाह नहीं है। हालांकि हमारा बंदरगाह एक वाणिज्यिक बंदरगाह है, लेकिन यह हमारे रणनीतिक महत्व को दर्शाता है कि कई लोग ऐसे निष्कर्ष पर पहुंचते हैं जो अनुचित हैं.’’
बंदरगाह को लेकर विक्रमसिंघे की यह टिप्पणी हाल के सप्ताह में इस मुद्दे पर उनकी दूसरी सार्वजनिक टिप्पणी है. गत 30 अगस्त को, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने सभी राजनीतिक दलों से एक सर्वदलीय सरकार में शामिल होने की अपील की थी ताकि द्वीपीय देश को सबसे खराब आर्थिक संकट से निकालने में मदद की जा सके.
विक्रमसिंघे ने किसी देश का नाम लिए बिना कहा, ‘‘हम अब ऋण सहायता पर निर्भर राष्ट्र नहीं रह सकते हैं. हमें अब मजबूत अर्थव्यवस्था वाले अन्य देशों द्वारा हस्तक्षेप के साधन के रूप में भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.’’
विक्रमसिंघे ने यह भी कहा कि श्रीलंका किसी भी बड़ी शक्ति प्रतिद्वंद्विता से बाहर रहेगा। उन्होंने कहा कि देश को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रतिद्वंद्विता हिंद महासागर में संघर्ष का कारण न बने.
एक ऑनलाइन पोर्टल ‘न्यूज फर्स्ट’ ने विक्रमसिंघे के हवाले से कहा, ‘‘यह एक ऐसी चीज है जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते.’’
श्रीलंका ने 16 से 22 अगस्त तक चीनी पोत को बंदरगाह पर रुकने की अनुमति प्रदान की थी. भारत में इस बात की आशंका थी कि चीनी पोत के ट्रैकिंग सिस्टम श्रीलंकाई बंदरगाह के रास्ते में भारतीय रक्षा प्रतिष्ठानों की जासूसी करने का प्रयास कर सकते हैं.
भारत ने पिछले महीने चीन पर यह आरोप लगाने के लिए पलटवार किया कि वह श्रीलंका के आंतरिक मामलों में "हस्तक्षेप" कर रहा है. भारत ने बीजिंग से दृढ़ता से कहा कि कोलंबो को अब किसी अन्य देश के एजेंडे की पूर्ति के लिए ‘‘अवांछित दबाव या अनावश्यक विवाद नहीं’’ बल्कि समर्थन की आवश्यकता है.
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