जर्मन लोगों की थाली से गायब हो रहा है मांस

मांस खाने वाले लोगों की संख्या तो कम हो ही रही है, लोग खाने में मांस का इस्तेमाल भी घटाते जा रहे हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मांस खाने वाले लोगों की संख्या तो कम हो ही रही है, लोग खाने में मांस का इस्तेमाल भी घटाते जा रहे हैं. पर्यावरण की चिंता, पशु कल्याण की भावना और महंगाई ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई है.फ्लोरियान बुसमान को गर्मियों में बारबेक्यू पर सॉसेज और स्टेक का मजा लेना खूब भाता है. हालांकि इन दिनों वो मांस के विकल्पों के साथ ही बैगन और शिमला मिर्च जैसी सब्जियों का इस्तेमाल ज्यादा कर रहे हैं.

बर्लिन के वीगन समर फेस्टिवल में पहुंचे 28 साल के स्थानीय सरकारी कर्मचारी बुसमान का कहना है, "कम मीट खाना निश्चित रूप से पर्यावरण और जंतुओं के लिए एक योगदान होगा और यह सेहतमंद भी है." वीगन वह खाना है जिसमें जानवरों से मिलने वाली कोई भी चीज इस्तेमाल नहीं होती. इसमें मांस और अंडे के अलावा दूध, दही या घी भी शामिल नहीं किया जाता.

इतना मीट क्यों खाता है इंसान

शाकाहार की ओर बढ़ता जर्मनी

जर्मन लोगों का सॉसेज और श्नित्सेल प्रेम विख्यात है लेकिन बीते कुछ सालों से उनके खाने की थाली से मांस नदारद होता जा रहा है. जर्मन कृषि मंत्रालय के आंकड़े दिखाते हैं कि 2022 में जर्मनी में मांस का उपयोग 52 किलो प्रति व्यक्ति तक गिर गया है. महज पांच साल पहले मांस की यह खपत 61 किलो प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष तक थी. पशु कल्याण की भावना, जलवायु की चिंता और ऊंची कीमतों ने लोगों को मीट के विकल्पों से अपनी प्लेट भरने की ओर ले जा रहा है.

कृषि मंत्रालय के मुताबिक जर्मनी में शाकाहारी लोगों की आबादी में हिस्सेदारी अब 10 फीसदी तक हो गई है जो 2018 में 6 फीसदी थी. 2021 से तो जर्मनी में कृषि मंत्री भी शाकाहारी हैं. ग्रीन पार्टी के जेम ओज्देमीर का कृषि मंत्री होना मांस उद्योग से जुड़े कुछ लोगों को हतोत्साहित भी करता है.

ओज्जेमीर ने किशोरावस्था में ही शाकाहार की तरफ बढ़ने का फैसला कर लिया. उन्हें उस वक्त पशु कल्याण की चिंता थी हालांकि वो मांस उद्योग के लिए अब भी एक भूमिका देखते हैं. उनके लिए ये जरूरी है कि मांस उत्पादन में सुधार को जलवायु परिवर्तन से निपटने के तरीके के रूप में देखा जाना चाहिए. समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में ओज्देमीर ने कहा कि पशुपालन कृषि में कार्बन उत्सर्जन के "सबसे बड़े कारकों में से एक है." ऐसे में जरूरी है कि जलवायु के हिसाब से ज्यादा उपयुक्त तरीके अपनाये जाएं. ओज्देमीर ने कहा, "उदाहरण के लिए हम किसानों को कम लेकिन बेहतर मवेशी पालने के लिए मदद दे देंगे."

कृषि मंत्री का मानना है कि जर्मन लोगों का कम मांस खाना एक "दीर्घकालीन रुझान" है और निजी तौर पर उनसे इसका कोई लेना देना नहीं. कृषि मंत्री ने कहा, "लोग जलवायु के बारे में चिंतित हैं और बेहतर पशु कल्याण चाहते हैं वो उनकी सेहत पर भी ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जो मेरे ख्याल में अच्छा है."

मीट खाना या नहीं खाना केवल निजी मामला नहीं है

मांस के बढ़ते विकल्प

मीट के विकल्पों का बढ़ता बाजार भी एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. गैरसरकारी संगठन प्रोवेज इंटरनेशनल के प्रमुख सेबास्टियन जॉय का कहना है, "आप इसके बावजूद अपना बर्गर, स्नित्सेल, सॉसेज का सकते हैं और इसके लिए किसी जानवर को मारने की जरूरत नहीं." बर्लिन में वेगान फेस्टिवल का आयोजन यही संगठन करता है.

जर्मनी के ज्यादा सुपरस्टोर में मीट का विकल्प पेश करने वाले खाने के शेल्फ बढ़ते जा रहे हैं और लोगों को यह पसंद आ रहा है. बहुत सी कंपनियां उसमें स्वाद का भी ध्यान रखने की कोशिश कर रही हैं.

जर्मनी का कृषि मंत्रालय एक पोषण रणनीति पर काम कर रहा है जो जर्मन लोगों को ज्यादा सेहतमंद खाने में मदद करेगा. मंत्रालय ने इसे इस साल के आखिर तक पेश करने की योजना बनाई है. मंत्रालय के मुताबिक लोगों को ज्यादा शाकाहारी और टिकाऊ भोजन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा.

हालांकि जर्मनी के सारे लोग कम मांस वाले भविष्य के लिए उतनी सकारात्मक सोच नहीं रखते. स्थानीय मीडिया में ऐसी खबरें आईं कि जर्मन न्यूट्रीशन सोसायटी, डीजीई 10 ग्राम मीट प्रति दिन खाने की सलाह देने की योजना बना रही है. यह संगठन सरकार को सेहतमंद खाने को बढ़ावा देने के तरीकों के बारे में सलाह देता है. इन खबरों पर लोगों की काफी प्रतिक्रियाएं सामने आईं. इसके मीम भी बनाए गए जिसमें मीट की छोटी मात्रा को तराजू पर तौलते दिखाया गया. डीजीई ने बाद में कहा कि पूरे मामले को गलत तरीके से समझा गया है हालांकि इस पर छिड़ी बहस थमने का नाम नहीं ले रही है.

हाल ही में जर्मन अखबार बिल्ड डेली ने एक सर्वे किया था. इसमें शामिल लोगों में 57 फीसदी ने कहा कि वो इस बात के सख्त खिलाफ हैं कि सरकार मांस का उपयोग घटाने के लिए कदम उठाए. जर्मन मांस उद्योग संघ वीडीएफ की प्रवक्ता का कहना है, "सरकार को लोगों की प्लेट से दूर रहना चाहिए. 90 फीसदी जर्मन मांस खाना पसंद करते हैं. कोई किसी शाकाहारी को नहीं कहना चाहता कि विटामिन और पोषण की अच्छी सप्लाई के लिए उसे मांस खाना चाहिए. यह बात दूसरी तरफ से भी लागू होती है." वीडीएफ का मानना है कि मांस का उपयोग घटने के पीछे बढ़ती कीमतें हैं और ग्राहकों पर महंगाई की पड़ती मार है.

एनआर/एसबी (एएफपी)

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