महसा अमीनी की मौत ने ईरान समेत पूरी दुनिया को झकझोर दिया. इस घटना को दो साल हो चुके हैं. ईरान में "इज्जत" के नाम पर लड़कियों और महिलाओं के मारे जाने की घटनाओं की अक्सर अनदेखी होती है.ईरान में महिला अधिकारों की स्थिति यहां कई लोगों के लिए शर्मिंदगी और गुस्से का विषय है. दो साल पहले 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद हुए "महिलाएं, जिंदगी, आजादी" प्रदर्शनों में यह बात स्पष्ट नजर आई. महसा अमीनी की मौत 16 सितंबर 2022 को हुई थी. हिजाब से जुड़े कानूनों के कथित उल्लंघन पर ईरान की नैतिकता पुलिस ने तीन दिन पहले ही उन्हें हिरासत में लिया था.
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इतने बड़े प्रदर्शनों के बावजूद अब भी "इज्जत" या अन्य कारणों से अपने पतियों, पिताओं और भाईयों द्वारा महिलाओं की हत्या के मामले शायद ही कभी ईरानी या अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनते हैं. न्यूयॉर्क स्थित एक गैर-सरकारी संगठन 'स्टॉप फेमिसाइड ईरान' के अनुसार, पिछले साल ईरान में 150 से अधिक महिलाएं फेमिसाइड की शिकार हुईं.
इस संगठन ने फेमिसाइड को 'लिंग संबंधी मकसदों' के साथ की गई हत्या को तौर पर परिभाषित किया है. इसमें 'महिलाओं पर ताकत का इस्तेमाल करने की इच्छा, उन्हें ऐसी गतिविधियों से रोकना या उनके लिए सजा देना जिन्हें सामाजिक तौर पर गलत माना जाता है, महिलाओं और लड़कियों पर अधिकार और स्वामित्व की धारणा, आनंद या महिलाओं को पीड़ा पहुंचाने की इच्छाएं' शामिल हो सकती हैं.
'स्टॉप फेमिसाइड ईरान' का कहना है कि पिछले साल ईरान में जितनी महिलाओं की हत्या हुई, उनमें एक चौथाई से ज्यादा मामलों में आरोपी को 'सम्मान' के नाम पर माफ कर दिया गया और लगभग आधे को 'पारिवारिक विवाद' माना गया.
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परिवार के लोग ही कर रहे हत्या
जब 'ऑनर किलिंग' की बात आती है, तो एनजीओ का कहना है कि अपराधी "आमतौर पर परिवार के पुरुष सदस्य होते हैं. ये कभी-कभी घर की बड़ी-बूढ़ी महिलाओं या मुखिया के समर्थन से परिवार की किसी अन्य महिला की हत्या कर देते हैं. जिन महिलाओं की हत्या की जाती है, उनके बारे में कहा जाता है कि वे सामाजिक परंपराओं या धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन नहीं करती थीं या परिवार की प्रतिष्ठा के खिलाफ कोई काम करती थीं."
संगठन ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, "ऐसे मामलों में कथित यौन या व्यवहार से जुड़ी गलतियां या अनाचार और बलात्कार के मामले शामिल हो सकते हैं." ईरान में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि 'ऑनर किलिंग' के कई मामलों की खबर मीडिया में आती ही नहीं है. इससे यह संभावना बनती है कि ऐसे मामलों की वास्तविक संख्या काफी ज्यादा हो सकती है.
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आधुनिक समाज के साथ तालमेल नहीं बना पा रहे रूढ़िवादी पुरुष
डीडब्ल्यू से बात करते हुए तेहरान विश्वविद्यालय के एक समाजशास्त्री और शोधकर्ता ने बताया कि 'समय के साथ समाज में परिवर्तन' घातक हिंसा के पीछे की मुख्य वजहों में से एक है. उन्होंने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, "1990 के दशक में विश्वविद्यालयों की संख्या में वृद्धि हुई. यहां तक कि महिलाएं भी राजधानी तेहरान से छोटे शहरों में चली गईं. वे अपने बदले हुए मूल्यों या विचारों को अपने साथ उन छोटे शहरों में ले गईं. इनमें 'गैर-धार्मिक विचार और अपने हिसाब से कपड़े पहनने की आजादी' शामिल है."
उन्होंने आगे कहा, "सोशल और वर्चुअल नेटवर्क की बढ़ती उपयोगिता ने इन बदलावों को गति दी. 'ऑनर किलिंग' की घटनाएं यहीं से शुरू हुईं, क्योंकि पुरुष इन सांस्कृतिक बदलावों के साथ-साथ रूढ़िवादी से धर्मनिरपेक्ष एवं स्वतंत्र ख्याल वाले बन रहे समाज के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ थे."
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कई मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि जो बच्चे बड़े होते समय अपने परिवार में हिंसा देखते हैं, उनमें अगली पीढ़ी में भी हिंसा की संभावना ज्यादा होती है. इसी तरह ईरान में महिलाएं जब हिजाब नहीं पहनना चाहतीं या अपनी मर्जी से जीना चाहती हैं, तो सरकार उन्हें कठोर सजा देती है. इस तरह की सख्त कार्रवाई से कुछ पुरुषों को यह गलत संदेश मिलता है कि वे भी अपनी पत्नी या बहनों के साथ बुरा व्यवहार कर सकते हैं.
अनुच्छेद 630 के तहत 'व्यभिचार' के लिए पत्नियों की हत्या वैध है
ईरानी कानून इस्लामिक शरिया नियमों और प्रथाओं पर आधारित है. इन नियमों से अक्सर पिता और पतियों को यह तय करने का अधिकार मिलता है कि उनके परिवार में महिलाओं की हत्या करने वाले लोगों को अपराध के लिए सजा मिलनी चाहिए या नहीं या किस तरह की सजा मिलनी चाहिए. अगर सजा तय करने वाले लोग हत्या में शामिल हैं या उसे बढ़ावा दे रहे हैं, तो उन्हें कम सजा दी जा सकती है.
जेल में बंद नोबेल पुरस्कार विजेता नरगिस मोहम्मदी सहित अन्य सामाजिक कार्यकर्ता लंबे समय से चेतावनी दे रहे हैं कि सरकार ने जिन कानूनों को लागू किया है, उनसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होता है. साथ ही, इससे महिलाओं के खिलाफ गंभीर हिंसा होने की आशंका बढ़ गई है.
शायद सबसे गंभीर कानूनी नियम, दंड संहिता का अनुच्छेद 630 है. इसमें कहा गया है, "जब भी कोई पुरुष अपनी पत्नी को किसी व्यक्ति के साथ व्यभिचार करते देखता है और पता चलता है कि पत्नी ने इसके लिए सहमति दी है, तो वह उन दोनों को एक साथ मार सकता है. अगर महिला निर्दोष है, तो वह सिर्फ उस व्यक्ति को मार सकता है."
वकील और मानवाधिकार विशेषज्ञ सईद देहगान ने डीडब्ल्यू को दिए एक इंटरव्यू में इस कानून की आलोचना की. उन्होंने कहा, "इस अनुच्छेद के अनुसार, इस तरह की 'ऑनर किलिंग' के लिए सजा नहीं दी जा सकती. पीठासीन न्यायाधीश आमतौर पर ऐसी हत्याओं के मुकदमे के दौरान 'सम्मान की रक्षा के लिए एक सम्मानजनक मकसद' पंक्ति का इस्तेमाल करते हैं."
देहगान आगाह करते हैं कि ईरान के इस्लामिक शासन के साये में महिलाओं की जिंदगी हमेशा खतरे में रहती है. उनका दावा है कि यह सरकार ही है, जो महिलाओं को धमकाने के लिए पुरुषों को जरिया देती है. देहगान कहते हैं कि जब तक ईरानी संविधान यह आदेश देता रहेगा कि "सभी क्षेत्रों में सभी कानून" शरिया और उसके मानदंडों पर आधारित होने चाहिए, तब तक महिलाओं की हत्या के मामले कम होने की उम्मीद नहीं है.