भारी मुश्किल में जर्मनी की पहचान फोल्क्सवागन
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में अब भी ऐसी पीढ़ियां हैं जिनके खुशहाल परिवार की फोटो में कहीं न कहीं एक फोल्क्सवागन कार जरूर दिखेगी. लेकिन अब यह कंपनी भारी मुश्किल में है और इसे बचाने के लिए जर्मनी के वाइस चांसलर को कमर कसनी पड़ रही है.चमकदार आंकड़े हमेशा सच नहीं बोलते. जर्मनी की दिग्गज कार कंपनी इसका ताजा उदाहरण है. सेल्स के मामले में टोयोटा के बाद फोल्क्सवागन, दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कार कंपनी है. कंपनी के पास पोर्शे, बेंटली, लाम्बॉर्गिनी, डुकाटी और ऑउडी से एलीट ब्रांड हैं तो फोक्ल्सवागन, स्कोडा, कुप्रा, मान, स्कैनिया और सिएट जैसे सेल्स चैंपियन भी.

लेकिन 2015 के डीजलगेट कांड के बाद से जर्मनी की ये दिग्गज कार कंपनी मुश्किल में है. करीब एक दशक पहले अमेरिकी रिसर्चरों ने फोल्क्सवागन की गाड़ियों में उत्सर्जन की फर्जी रीडिंग देने वाले सॉफ्टवेयर को पकड़ लिया. इसके बाद अमेरिका और जर्मनी में फोल्क्सवागन पर मुकदमे शुरू हुए. जांच में पता चला कि चिटिंग का ये तरीका फोल्क्सवागन ग्रुप के तत्कालीन हेड और उस समय डायनैमिक बिजनेस लीडर कहे जाने वाले मार्टिन विंटरकॉर्न के नेतृत्व में लागू किया गया था.

कंपनी ने अमेरिकी मुकदमों के बदले 14.7 अरब डॉलर की सेटलमेंट राशि चुकाने पर हामी भरी. जर्मनी में मुकदमा जारी है. डीजलगेट की फजीहत से बचने के लिए कंपनी ने विंटरकॉर्न समेत कई अधिकारियों की छुट्टी कर दी.

इलेक्ट्रिक राह पर कैसे पिछड़ गईं जर्मन कारें

डीजलगेट कांड की रिपोर्टिंग के दौरान ही फोल्क्सवागन ने एलान किया कि अब वह इलेक्ट्रिक कारों पर फोकस करेगी. फोल्क्सवागन काफी हद तक ऐसा करने में कामयाब भी होने लगी. इसके पीछे ग्राहकों को ई कारों की खरीद पर दी जा रही सरकारी रियायत भी बड़ी वजह थी. लेकिन तभी फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ. उसने महंगाई पैदा की और जर्मनी को अपना सैन्य खर्च कई गुना बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा.

जर्मन सरकार ने सैन्य खर्च बढ़ाने और 100 अरब यूरो का फंड बनाने का एलान तो कर दिया लेकिन उसके लिए जरूरी पैसा जुटाने के लिए ई कारों की खरीद पर दी जा रही सब्सिडी बंद कर दी. इसके बाद दूसरी कंपनियों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा और चीन के साथ पश्चिमी देशों के टकराव ने फोल्क्सवागन समेत अन्य जर्मन कार निर्माताओं की परेशानी और बढ़ा दी.

जर्मन भाषा में फाउवे (VW) कही जाने वाली फोल्क्सावागन अपने सबसे बड़े बाजार चीन में काफी पिछड़ गई. चाइनीज कार मार्केट में चीन की सस्ती इलेक्ट्रिक कारें खूब बिकने लगीं. महंगाई और इलेक्ट्रिक कारों से जुड़े असमंजस के चलते यूरोप में नई कारों की बिक्री बहुत गिर गई. जर्मनी के सेकेंडहैंड कार मार्केट में अब भी पुरानी गाड़ियों की कीमत काफी ऊपर है.

इन समीकरणों का असर जर्मन कार कंपनियों की बैलेंस शीट पर दिख रहा है.

2024 की पहली छमाही में फोल्क्सवागन के शुद्ध मुनाफे में 14 फीसदी की कमी आई. इसी अवधि में 15 फीसदी का झटका बीएमडब्ल्यू और तकरीबन 16 परसेंट की कमी मर्सिडीज बेंज ने भी झेली. अब इस संकट की चोट सप्लाई चेन तक भी पहुंच चुकी है. फोल्क्सवागन का कहना है कि ई कारों पर ज्यादा ध्यान देने के लिए उसे पेट्रोल और डीजल कार की असेंबली लाइन में कटौती करनी होगी.

फोल्क्सवागन में हजारों नौकरियों पर तलवार

फोल्क्सवागन जर्मनी में रोजगार देने वाली सबसे बड़ी प्राइवेट कंपनी है. 87 साल के इतिहास में पहली बार फोल्क्सवागन कुछ मैन्युफैचरिंग प्लांट्स बंद करने जा रही है. जर्मनी में इसके चलते करीब 30 हजार नौकरियां जा सकती हैं. इन कड़वे कदमों से कंपनी 10 अरब यूरो का खर्चा बचाना चाहती है. बिजनेस पत्रिका फॉर्च्यून के मुताबिक दुनिया भर में 6,50,000 लोग फोल्क्सवागन के लिए काम करते हैं. इनमें से तीन लाख लोग जर्मनी में जॉब करते हैं.

फोल्क्सवागन संकट का असर जर्मन समाज और जर्मन राजनीति पर दिख रहा है. रॉबर्ट हाबेक, जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री हैं और वाइस चांसलर भी. वह पर्यावरण के मुद्दों पर कड़ा रुख रखने वाली ग्रीन पार्टी के प्रमुख नेता हैं और अगले साल होने वाले संसदीय चुनावों में अपनी पार्टी के चांसलर पद के उम्मीदवार हो सकते हैं. हाबेक पर्यावरण सुरक्षा के लिए कड़े और अलोकप्रिय कदमों के हिमायती हैं. लेकिन अब उनके सामने लाखों नौकरियों, उनसे जुड़ी जिंदगियों और पूरे सामाजिक सिस्टम को झकझोरता मुद्दा है. गुरुवार को हाबेक ने कहा, "फोल्क्सवागन जर्मनी में अहमियत के केंद्र में है." उन्होंने संकेत दिए जर्मन सरकार कंपनी की मदद करेगी.

जर्मन कार उद्योग के संकट से निपटने के लिए हाबेक, 23 सितंबर को एक "कार सम्मेलन" भी आयोजित कर रहे हैं. इस सम्मेलन में जर्मन कार उद्योग के सभी हितधारकों को बुलाया गया है. शानदार इंजीनियरिंग के लिए मशहूर जर्मन कार इंडस्ट्री को इस सम्मेलन में कुछ अचूक रणनीतियों पर माथापच्ची करनी ही होगी.

ओंकार सिंह जनौटी (डीपीए)