बर्लिन में बिखरती दुनिया को साथ लाने की कोशिश

दुनिया पिछले कई दशकों से इतनी बंटी हुई नहीं थी, जितनी आज है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

दुनिया पिछले कई दशकों से इतनी बंटी हुई नहीं थी, जितनी आज है. इसे बदलने की कोशिश में बर्लिन में हो रही एक वैश्विक बातचीत में एक जैसे हित तलाशने की कोशिश हो रही है.रूस के सामने यूक्रेन युद्ध में टिका रहे, इसके लिए पश्चिमी देश अरबों यूरो खर्च कर रहे हैं. फिलहाल चीन, रूस का सबसे बड़ा सहयोगी है और आज चीन ही रूसी अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना हुआ है. फिर भी पश्चिमी देश सीधे चीन को इस मामले में जिम्मेदार ठहराने से कतरा रहे हैं.

दुनिया, जीवाश्म ईंधनों को छोड़कर ग्रीन एनर्जी की ओर जाना चाहती है. ऐसे में इलेक्ट्रिक कारों का इस्तेमाल एक अहम कदम हो सकता है. लेकिन जब यह इलेक्ट्रिक कारें भारी मात्रा में चीन से आने लगती हैं तो पश्चिमी देशों को उन पर टैरिफ लगाना पड़ता है और अपनी ई-कार इंडस्ट्री को बचाने के लिए संरक्षणवादी कदम उठाने पड़ते हैं. ऐसे मामले में ग्रीन एनर्जी को लेकर तय लक्ष्यों से ऊपर राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला आ जाता है?

जर्मन अर्थव्यवस्था और प्लानिंग की दुनिया में मिसाल दी जाती है लेकिन उसी जर्मनी के नागरिक जब अपने सुपरमार्केट में जाते हैं तो असंतुष्टि से भर जा रहे हैं. कई चीजों की कीमतें बहुत ज्यादा तेजी से बढ़ी हैं और अन्य बहुत सारी चीजों के लिए आज भी जर्मनी, चीन पर निर्भर है.

पूरी दुनिया को मथ रहे ऐसे सवालों के साथ बर्लिन ग्लोबल डायलॉग की शुरुआत हुई. फिलहाल देश दुनिया के बारे में खबर रखने वाला ऐसा शायद ही कोई होगा, जो यह नहीं जानता होगा कि दुनिया अभी जितनी बंटी हुई है, शायद पिछले कई दशकों में यह उतनी बंटी हुई कभी नहीं थी.

व्यापारिक युद्ध और असल युद्ध दोनों ही लोगों को और इस दुनिया को परेशान कर रहे हैं. ऐसे में दुनियाभर के राजनीतिक, आर्थिक, बौद्धिक और सामाजिक नेता बर्लिन में यह जानने के लिए जुटे हैं कि वो कौन से हित हैं, वो कौन से मुद्दे हैं, जिनपर दो देश या कुछ देशों का एक समूह एक साथ आ सकते हैं और मिलकर काम कर सकते हैं. इसीलिए बातचीत को नाम दिया गया है, "बिल्डिंग कॉमन ग्राउंड."

चीन के प्रति कैसा हो बर्ताव?

फिलहाल दुनियाभर में चर्चा इस्राएल, लेबनान और यमन की है लेकिन बर्लिन ग्लोबल डायलॉग में इसका बहुत ज्यादा जिक्र सुनने को नहीं मिला. उसके बजाए वैश्विक नेता और विशेषज्ञ चीन और उसके मंसूबों को लेकर ज्यादा चिंतित दिखे. चीन के एक उप मंत्री लोंग गुओकियांग के साथ चीनी अर्थव्यवस्था को लेकर नए पहलुओं पर भी बंद कमरे में भी बात हुई.

ग्लोबल असेट मैनेजमेंट कंपनी ब्लैकरॉक के चेयरमैन और सीईओ लैरी फिंक ने कहा, "हम सभी को फिर से सोचना होगा कि हम चीन का साथ कैसे दे सकते हैं. जबकि चीन, रूस का साथ दे रहा है. जो यूरोप का दुश्मन बना हुआ है."

सिर्फ सस्ती ऊर्जा नहीं हो सकता पैमाना

सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल-जदान की ओर से जर्मनी की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को सऊदी अरब आने का न्यौता दिया गया. उनका कहना था कि सऊदी अरब के पास इसके लिए पर्याप्त जगह है और वह इन कंपनियों के लिए सस्ती ग्रीन एनर्जी उपलब्ध करा सकता है. इस पर मार्सेगागलिया इंवेस्टमेंट ग्रुप की सीईओ एमा मार्सेगागलिया ने जर्मन वित्त मंत्री को याद दिलाया कि कैसे जर्मनी और अन्य पश्चिमी यूरोपीय देशों पर रूस की सस्ती गैस के चलते उसकी आक्रामकता को नजरअंदाज करने के आरोप लगते हैं.

इस पर जर्मन वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर का जवाब था कि हम सिर्फ सस्ती ऊर्जा के चक्कर में नहीं पड़ सकते. हमें एक बेहतर संतुलन बनाना होगा. सब कुछ बाहर से लेने पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता. पश्चिमी देश आपूर्ति की सुरक्षा के बारे में भी सोचने लगे हैं. पश्चिमी देशों पर सरकारी खर्च बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को सहारा देने के सवाल पर जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने कहा, "जो पैसा है उसे बेहतर खर्च करें बजाए कि खर्च बढ़ाने को कहा जाए." उन्होंने कहा कि सरकार पहले से ही अपने खर्च बढ़ा चुकी है.

महिला सशक्तिकरण जैसी चीजें दिखा सकती हैं रास्ता

भारत से महिंद्रा ग्रुप के सीईओ अनीश शाह बर्लिन ग्लोबल डायलॉग में शिरकत कर रहे हैं. भारत से आईं दुर्गा रवींद्रन तेलंगाना सरकार के साथ महिलाओं एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देने के कार्यक्रम में काम कर चुकीं हैं. दुर्गा रवींद्रन ने डीडब्ल्यू से बात करते हुए कहा कि तमाम मतभेदों और टकरावों के बाद भी कई ऐसे मुद्दे हैं, जैसे महिला सशक्तिकरण, जिस पर देश ही नहीं बल्कि पूरा पूरा ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ साथ आ सकता है. बस ग्लोबल नॉर्थ को यह जिद छोड़नी होगी कि उनकी सशक्त महिला की जो छवि है, वही सशक्त महिला की एकमात्र छवि है.

बर्लिन ग्लोबल डायलॉग का यह दूसरा संस्करण है. इस बार के संस्करण में यूरोपीय देशों के अलावा मध्य-पूर्व और अफ्रीका के देशों का बेहतर प्रतिनिधित्व देखने को मिला.

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