अगले साल होने वाला फीफा वर्ल्ड कप अब तक का सबसे महंगा, सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाला और सबसे राजनीतिक टूर्नामेंट होने वाला है.एक तरफ जहां फीफा का सबसे बड़ा मेजबान देश, अमेरिका पूरे साल आप्रवासन, निर्वासन और जलवायु जैसी समस्याओं से जूझ रहा है. वहीं दूसरी तरफ, टिकट की बेहद महंगी कीमतों ने फैंस को असमंजस में डाल रखा है.
अगले साल के फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन, उत्तरी अमेरिका के तीन देश कनाडा, मेक्सिको और अमेरिका मिलकर करेंगे. इसका आयोजन जून और जुलाई के महीनों में किया जाएगा. लेकिन 2026 का फीफा वर्ल्ड कप बहुत सारी मुसीबतों में घिरा नजर आ रहा है.
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आप्रवासन की बढ़ती मुश्किलें
डॉनल्ड ट्रंप की सत्ता में हुई वापसी के बाद से ही अमेरिका में प्रवेश करना कई लोगों के लिए मुसीबत बन गया है. वीजा स्वीकृति को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता और सीमा पर बढ़ी हिरासत की घटनाओं से फैंस में चिंता है.
पिछले दो वर्ल्ड कप के लिए वीजा प्रक्रिया तेज की गई थी. लेकिन अमेरिका ने अभी तक ऐसी कोई तेज प्रक्रिया शुरू नहीं की है. इसके अलावा, मैच के कार्यक्रम पूरी तरह से साल के अंत तक ही तय हो पाएंगे. जिस कारण फैंस में यह भी चिंता है कि वह टिकट कैसे बुक करेंगे और इसके लिए उनका कितने दिन का वीजा लेना सही रहेगा.
कुछ लोगों के लिए तो टूर्नामेंट में आना लगभग असंभव हो चुका है. गर्मियों की शुरुआत में ट्रंप ने ऐसे कुछ देशों की सूची जारी कर दी थी, जिनके नागरिक अमेरिका नहीं आ सकेंगे. हालांकि, खिलाड़ियों और टीम के स्टाफ को इस प्रतिबंध से छूट दी गई है. लेकिन यह छूट फैंस के लिए नहीं है.
इस सूची में ईरान भी शामिल हैं. जबकि ब्राजील के इस सूची में जुड़ने की भी आशंका है. हालांकि, ब्राजील एकमात्र ऐसा देश है, जो अब तक हर वर्ल्ड कप का हिस्सा रहा है.
बड़े पैमाने पर हो रहा निर्वासन
पिछले कई महीनों से इमिग्रेशन एजेंसियां देशभर में डिपोर्टेशन के लिए छापे मार रही है. इन एजेंसियों के निशाने पर लॉस एंजेलेस और शिकागो जैसे बड़े शहर हैं, जहां अगले साल वर्ल्ड कप के मैच खेले जाने तय हैं.
गर्मियों में हुए क्लब वर्ल्ड कप के दौरान इमिग्रेशन एजेंसी ने ‘X' पर पोस्ट किया कि उनके अधिकारी "सुरक्षा के लिए पूरी तरह तैयार हैं.” और दर्शकों को पहचान के लिए दस्तावेज साथ रखने की सलाह दी. हालांकि पोस्ट बाद में हटा दी गई. लेकिन इस तरह के बयानों से फैंस में डर पैदा हो गया और बहुत से लोग मैच देखने ही नहीं गए.
भारी वित्तीय और पर्यावरणीय बोझ
इन सब के अलावा वर्ल्ड कप का आर्थिक बोझ भी फैंस पर भारी पड़ रहा है. 2026 फाइनल की सबसे महंगी टिकट अब तक की रिकॉर्ड कीमत पर है. इसकी कीमत 2022 के मुकाबले लगभग चार गुनी हो गई है. यानी साल 2022 की कीमत ₹1.3 लाख से बढ़कर, टिकट के दाम अब ₹5.2 लाख तक पहुंच गए हैं. यहां तक कि ग्रुप स्टेज और शुरुआती मैचों के टिकट भी लगभग तीन गुना महंगे हो गए हैं.
ऊपर से रीसेल पोर्टल्स के चलते केवल टिकट खरीदने में ही हजारों डॉलर का खर्च आ रहा है. यात्रा और ठहरने का खर्च जोड़ देने पर तो यह सफर और भी महंगा बन जाता है.
वित्तीय बोझ के साथ-साथ यह वर्ल्ड कप पर्यावरण पर भी बुरा असर डालने वाला है. चूंकि 2026 में होने वाला यह टूर्नामेंट तीन बड़े उत्तर-अमेरिकी देशों में खेला जाना है तो टीम और फैंस दोनों ही अपनी आवाजाही के लिए हवाई यात्रा पर निर्भर होंगे. जो कि सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाती है. जैसे कि अमेरिकी टीम अपना पहला मैच लॉस एंजेलेस में, दूसरा सिएटल में और तीसरा फिर से लॉस एंजेलेस में खेलेगी. जिसके लिए उन्हें कुछ ही दिनों में लगभग 2,000 मील की उड़ान दूरी तय करनी होगी.
हालांकि, कार किराए पर लेना और राइड-शेयरिंग करना भी एक विकल्प हो सकता है. लेकिन सड़कों पर बहुत ज्यादा ट्रैफिक होने की संभावना है. जिसके चलते यह वर्ल्ड कप इतिहास का सबसे प्रदूषणकारी वर्ल्ड कप भी बन सकता है.
अब भी फीफा से उम्मीद
फीफा अध्यक्ष, जियानी इनफैनटिनो ने जनता को भरोसा दिलाया है कि आप्रवासन से जुड़ी समस्याएं चिंता का विषय नहीं होंगी.
उन्होंने अगस्त में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "अमेरिकी सरकार ने पूरी प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने का वादा किया है ताकि दुनिया भर के फैंस का अच्छे से स्वागत किया जा सके.” हालांकि, उन्होंने यह नहीं स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया लागू कैसे की जाएगी.
फीफा के मीडिया निदेशक, ब्रायन स्वानसन ने टिकटों की ऊंची कीमतों का बचाव किया. उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि ऐसा टिकट मॉडल हो, जो फैंस के बीच पहुंच को सुनिश्चित करे. और साथ ही जितना संभव हो उतना मूल्य खेल में वापस निवेश किया जाए, ताकि पूरी दुनिया में फुटबॉल के विकास में मदद मिल सके.
हालांकि, जब मानवाधिकार और नागरिक अधिकार समूहों ने फीफा को एक खुला पत्र लिखा और अमेरिका में बढ़ते दुर्व्यवहार को रोकने के लिए अपील की. तब फीफा ने इस पत्र पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया.













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