कब आएगा वो एक मिनट, जिसमें 59 सेकेंड होंगे
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

वैज्ञानिक इस बात को लेकर उलझन में हैं कि नेगेटिव लीप सेकंड को कब लाया जाए. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण धरती की गति पर भी असर हुआ है और वैज्ञानिक अब इस नेगेटिव लीप सेकेंड को टालने के बारे में सोच रहे हैं.जलवायु परिवर्तन का असर धरती के अपनी धुरी पर घूमने पर भी पड़ रहा है, इसलिए समय का आकलन भी प्रभावित हो रहा है. वैज्ञानिक कह रहे हैं कि अब नेगेटिव लीप सेकेंड आने में तीन साल तक की देरी हो सकती है.

27 मार्च को प्रकाशित एक शोध पत्र में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इतिहास के पहले नेगेटिव लीप सेकेंड में तीन साल तक की देरी हो सकती है. नेगेटिव लीप सेकेंड में एक बार ऐसा एक मिनट आना है, जिसमें 60 के बजाय 59 सेकेंड होंगे. विशेषज्ञों को डर है कि ऐसा करने से दुनियाभर के कंप्यूटर प्रोग्राम गड़बड़ा सकते हैं.

नेगेटिव लीप सेकेंड

1967 से पहले तक टाइम मापने के लिए धरती के अपनी धुरी पर घूमने को ही आधार बनाया जाता था. 1967 में वैज्ञानिकों ने सबसे पहले एटॉमिक घड़ियों का इस्तेमाल शुरू किया. ये घड़ियां टिक-टॉक के लिए अणुओं का इस्तेमाल करती हैं. इससे समय का आकलन और सटीक हो गया.

लेकिन कुछ नाविक और समुद्री यात्री धरती की गति और सूर्य व सितारों पर ही समय और दिशा के लिए निर्भर रहे. समस्या ये है कि धरती की गति पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता. यह एटॉमिक घड़ी से थोड़ी सी धीमी घूमती है. इसलिए दोनों वक्त एक जैसे नहीं रहते.

इसलिए एक हल निकाला गया. जब भी दोनों घड़ियों के बीच 0.9 सेकेंड का अंतर आए तो एक ‘लीप सेकेंड' जोड़ दिया जाता है. 1972 से अब तक 27 लीप सेकंड जोड़े जा चुके हैं. पिछली बार ऐसा 2016 में हुआ था.

लेकिन हाल के सालों में एक नई समस्या सामने आ गई है. अब धरती की गति एटॉमिक घड़ी से तेज हो गई है. इसलिए अब वैज्ञानिकों को दोनों घड़ियों में तालमेल बिठाने के लिए एक नेगेटिव लीप सेकेंड जोड़ने बारे में सोच रहे हैं. यह इतिहास में पहली बार होगा जब एटॉमिक घड़ी को उलटा घुमाया जाएगा और एक मिनट 59 सेकेंड का होगा.

ना हो तो अच्छा है

अमेरिका के सैनडिएगो में कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर डंकन एग्न्यू कहते हैं, "ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है. इसलिए चुनौतियां भी हैं कि सारी दुनिया में घड़ियां एक जैसा समय दिखाएं. बहुत से कंप्यूटर प्रोग्राम लीप सेकेंड का मतलब सिर्फ पॉजीटिव लीप सेकेंड समझते हैं. उन सारे प्रोग्रामों में बदलाव करना होगा.”

एग्नयू उस शोध का हिस्सा हैं जो साइंस पत्रिका ‘नेचर' में प्रकाशित हुआ है. सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल करके उन्होंने धरती की घूमने की गति और समय में संबंध स्थापित किया है. वह कहते हैं कि अगर जलवायु परिवर्तन का असर नहीं होता तो 2026 में ही नेगेटिव लीप सेकेंड लागू करना पड़ता.

शोध कहता है कि 1990 के बाद से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में बर्फ के पिघलने के कारण पृथ्वी की गति धीमी पड़ गई है. इससे नेगेटिव लीप सेकेंड कम से कम 2029 तक खिसक गया है.

एग्न्यू कहते हैं, "जब बर्फ पिघलती है तो पानी पूरे समुद्र में फैल जाता है. इससे जड़त्व बढ़ता है और पृथ्वी की गति धीमी हो जाती है.”

समय का मानक तय करने के लिए जिम्मेदार इंटरनेशनल ब्यूरो ऑफ वेट्स एंड मैजर्स की प्रमुख पैट्रिशिया टावेला कहती हैं कि अगर नेगेटिव लीप सेकेंड का आना टलता है तो यह एक अच्छी खबर होगी.

क्या होगा असर

कुछ अन्य वैज्ञानिक इस शोध के निष्कर्षों से पूरी तरह सहमत नहीं हैं. यूएस नेवल ऑब्जरवेटरी में मुख्य वैज्ञानिक रह चुके दिमित्रियोस मत्साकिस कहते हैं कि पृथ्वी की गति का अनुमान लगाना इतना आसान नहीं है और नेगेटिव लीप सेकेंड की जरूरत शायद अभी नहीं पड़ेगी.

फिर भी, यह 59 सेकेंड का मिनट जब भी आएगा, तो क्या होगा, इसे लेकर सब अनजान हैं. मत्साकिस कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि इससे मानव सभ्यता ही खत्म हो जाएगी और चूंकि इसके बारे में इतनी चर्चा हो रही है तो कुछ समस्याओं को टाला भी जा सकता है. लेकिन जब यह होगा, तब किसी विमान में सवार होने की सलाह तो मैं नहीं दूंगा.”

जब पॉजटिव लीप सेकेंड जोड़ा जाता है, तब भी कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. इसलिए 2022 में वैज्ञानिकों में इस बात पर सहमति बनी थी कि अब 2035 तक कोई पॉजीटिव लीप सकेंड नहीं जोड़ा जाएगा. तब से वैज्ञानिक एटॉमिक घड़ी में इस तरह के बदलावों की कोशिश कर रहे हैं कि उसका समय धरती की गति से पूरी तरह मेल खाए.

वीके/एए (एएफपी)