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अंतरिक्ष से लौटने के बाद हड्डियों की कमजोरी से जूझेंगी सुनीता विलियम्सस, धरती पर इन परेशानियों से होगा सामना

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर 9 महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद जब धरती पर लौटेंगे, तो उनके लिए चलना और सामान्य जीवन में लौटना आसान नहीं होगा. अंतरिक्ष में रहने से उनकी हड्डियां कमजोर हो गई होंगी, मांसपेशियां ढीली पड़ गई होंगी और पैरों की त्वचा इतनी नाजुक हो चुकी होगी कि चलना दर्दनाक हो सकता है.

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अंतरिक्ष से लौटने के बाद हड्डियों की कमजोरी से जूझेंगी सुनीता विलियम्सस, धरती पर इन परेशानियों से होगा सामना

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर 9 महीने अंतरिक्ष में बिताने के बाद जब धरती पर लौटेंगे, तो उनके लिए चलना और सामान्य जीवन में लौटना आसान नहीं होगा. अंतरिक्ष में रहने से उनकी हड्डियां कमजोर हो गई होंगी, मांसपेशियां ढीली पड़ गई होंगी और पैरों की त्वचा इतनी नाजुक हो चुकी होगी कि चलना दर्दनाक हो सकता है.

साइंस Shubham Rai|
अंतरिक्ष से लौटने के बाद हड्डियों की कमजोरी से जूझेंगी सुनीता विलियम्सस, धरती पर इन परेशानियों से होगा सामना

Sunita Wlliams Return News: अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर के लिए धरती पर वापसी आसान नहीं होगी. उनका मिशन सिर्फ आठ दिन का था, लेकिन तकनीकी दिक्कतों की वजह से वे पूरे नौ महीने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में फंसे रहे. अब नासा के क्रू-10 के सदस्य रविवार (16 मार्च) को ISS में एंट्री करेंगे, जो शुक्रवार (14 मार्च) को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए लॉन्च होंगे.

"बेबी फीट" की परेशानी

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर के पैरों की त्वचा इतनी नाजुक हो गई होगी कि उनके लिए चलना मुश्किल हो सकता है. इसे "बेबी फीट" कहा जाता है. धरती पर हमारे पैर लगातार घर्षण और गुरुत्वाकर्षण झेलते हैं, जिससे त्वचा थोड़ी सख्त बनी रहती है. लेकिन अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के बाद पैर की कठोर त्वचा निकल जाती है और नई त्वचा बेहद मुलायम हो जाती है. ऐसे में जब ये अंतरिक्ष यात्री वापस आएंगे, तो उनके लिए चलना दर्दनाक हो सकता है. दोबारा सख्त त्वचा बनने में कुछ हफ्ते या महीने भी लग सकते हैं.

हड्डियों और मांसपेशियों पर असर

अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होता, जिससे हड्डियों पर दबाव नहीं पड़ता. नासा के मुताबिक, हर महीने अंतरिक्ष में रहने से हड्डियों की घनत्व लगभग 1% तक कम हो जाती है. इससे हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और टूटने का खतरा बढ़ सकता है.

मांसपेशियां भी कमजोर हो जाती हैं क्योंकि उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. धरती पर तो हम चलते-फिरते रहते हैं, लेकिन अंतरिक्ष में फ्लोट करने के कारण मांसपेशियों का काम कम हो जाता है. यही वजह है कि अंतरिक्ष यात्री धरती पर लौटने के बाद कई हफ्तों तक कमजोरी महसूस करते हैं.

ब्लड सर्कुलेशन और नजर पर असर

अंतरिक्ष में दिल को खून पंप करने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, क्योंकि वहां गुरुत्वाकर्षण नहीं होता. इस वजह से शरीर में खून की मात्रा कम हो सकती है. कई बार खून का प्रवाह धीमा होने से ब्लड क्लॉट यानी खून के थक्के जमने का खतरा भी बढ़ जाता है.

इसके अलावा, अंतरिक्ष में तरल पदार्थ शरीर के ऊपरी हिस्से में इकट्ठा हो जाते हैं, जिससे आंखों का आकार बदल सकता है और नजर कमजोर हो सकती है. यही वजह है कि ज्यादातर अंतरिक्ष यात्री चश्मा पहनते हैं.

खतरनाक विकिरण का असर

अंतरिक्ष में सबसे बड़ा खतरा होता है रेडिएशन (विकिरण). धरती का वातावरण और चुंबकीय क्षेत्र हमें खतरनाक रेडिएशन से बचाते हैं, लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा कोई सुरक्षा कवच नहीं होता. नासा के मुताबिक, अंतरिक्ष यात्रियों को तीन तरह के रेडिएशन का सामना करना पड़ता है:

  • पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में फंसे चार्ज्ड पार्टिकल्स
  • सूर्य से आने वाले सौर ऊर्जा कण
  • ब्रह्मांड से आने वाली कॉस्मिक किरणें
  • ये रेडिएशन डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है.

वापसी के बाद की चुनौती

सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर के लिए धरती पर लौटना सिर्फ एक भावनात्मक पल नहीं होगा, बल्कि उनके शरीर के लिए भी एक बड़ी चुनौती होगी. हालांकि, नासा की मेडिकल टीम और वैज्ञानिक उन्हें रिकवरी में मदद करेंगे. उन्हें धीरे-धीरे एक्सरसाइज और फिजिकल थेरेपी से सामान्य जीवन में लौटने की कोशिश करनी होगी.

जल्द ही ये दोनों अंतरिक्ष से धरती पर वापस आएंगे, लेकिन उनकी असली परीक्षा तब शुरू होगी जब वे दोबारा सामान्य जीवन में ढलने की कोशिश करेंगे.

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