खास तरह के एक एमआरआई स्कैन के जरिए वैज्ञानिकों ने यह समझने की कोशिश की है कि मस्तिष्क अपने भीतर जमा कचरा कैसे साफ करता है.वैज्ञानिकों ने मानव मस्तिष्क के भीतर झांक कर देखा है. यह एक अनोखी झलक है जो यह समझने में मदद कर सकती है कि मस्तिष्क अपने भीतर जमा होने वाले कचरे को कैसे साफ करता है. यह कचरा जमा होकर अल्जाइमर जैसी बीमारियों का कारण बनता है.
मस्तिष्क की कोशिकाएं बहुत सारे पोषक तत्वों का उपयोग करती हैं, जिससे बहुत सारा कचरा बनता है. विज्ञान को लंबे समय से लगता था कि मस्तिष्क में इस कचरे को बाहर निकालने के लिए एक खास सिस्टम होता है. यह खासकर तब काम करता है, जब हम सो रहे होते हैं. उन्होंने इस सिस्टम को चूहों में काम करते देखा भी था. लेकिन इंसान में इसी तरह के सिस्टम के केवल अप्रत्यक्ष प्रमाण ही मिले थे.
अब शोधकर्ताओं ने जीवित लोगों के मस्तिष्क में कचरा साफ करने वाले उस छोटे से नेटवर्क को देखा है. यह एक विशेष प्रकार की इमेजिंग तकनीक की मदद से संभव हो पाया है.
ऑरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के डॉ. हुआन पियान्टिनो ने कहा, "मुझे इसका अनुमान तो था लेकिन हमें यह साबित करने की जरूरत थी कि यह (सिस्टम) इंसानों में भी होता है." उनकी टीम ने सोमवार को इस खोज की रिपोर्ट प्रकाशित की. यह अध्ययन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की पत्रिका में छपा है.
शोध के मुताबिक सोते समय मस्तिष्क बहुत सक्रिय होता है. इसका एक कारण यह है कि यह समय मस्तिष्क की गहरी सफाई का होता है. इस बात पर ध्यान इसलिए दिया गया है क्योंकि अच्छी नींद न लेना लोगों की सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करता है और लंबे समय तक नींद की कमी को डिमेंशिया का खतरा माना जाता है. कुछ शोध बताते हैं कि नींद की कमी से महिलाओं में डाइबिटीज का खतरा भी बढ़ता है.
कैसे काम करता है नेटवर्क
तो मस्तिष्क खुद को कैसे साफ करता है? करीब दस साल पहले, रोचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक नेटवर्क खोजा था जिसे उन्होंने "ग्लाइन्फैटिक सिस्टम" नाम दिया. शोध बताता है कि सेरेब्रल स्पाइनल फ्लूइड (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में बहने वाला तरल) रक्त वाहिकाओं के चारों ओर स्थित छोटी-छोटी धाराओं का उपयोग करके मस्तिष्क के गहरे ऊतकों तक पहुंचता है और कचरे को वहां से बाहर निकालता है. जब चूहों को अल्जाइमर से संबंधित प्रमुख तत्व बीटा-अमाइलॉइड का इंजेक्शन लगाया गया, तो यह तत्व जल्दी साफ हो गया, खासकर तब जब चूहे सो रहे थे.
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि यह नेटवर्क कैसे काम करता है, लेकिन कुछ शोध बताते हैं कि रक्त वाहिकाओं की धड़कन इस सफाई प्रणाली में मदद करती है. लेकिन यह प्रणाली इंसानों में खोज पाना मुश्किल था. पियान्टिनो बताते हैं कि नियमित एमआरआई स्कैन इन तरल-भरी धाराओं को दिखा सकता है, लेकिन इससे उनके काम करने का तरीका देखना संभव नहीं था.
ऑरेगन में उनकी टीम ने पांच ऐसे मरीजों को एक ट्रेसर का इंजेक्शन दिया, जिन्हें ब्रेन सर्जरी की जरूरत थी. इस सर्जरी के लिए एक अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित एमआरआई की जरूरत थी. 24 से 48 घंटे बाद यह चमकता हुआ ट्रेसर मस्तिष्क के अंदर इधर-उधर नहीं घूम रहा था, बल्कि ठीक उन्हीं धाराओं से होकर गुजर रहा था जैसा कि पहले चूहों में देखा गया था.
कैसे बेहतर हो दिमाग की सफाई
यह एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण अध्ययन है, जिसकी भविष्यवाणी रोचेस्टर के डॉ. मैकेन नेडरगार्ड ने की थी. इस नेटवर्क की खोज से जुड़े शुरुआती शोधों में शामिल रहे वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के डॉ. जेफ इलिफ कहते हैं कि यह पता लगाने के लिए कि बेहतर नींद या अन्य इलाज इस सफाई को बढ़ावा दे सकते हैं और स्वास्थ्य में सुधार ला सकते हैं, "यह मापने की क्षमता होनी चाहिए कि ग्लाइन्फैटिक सिस्टम कितनी अच्छी तरह काम कर रहा है."
नींद ही एकमात्र सवाल नहीं है. उदाहरण के लिए, पशुओं पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि ब्लड प्रेशर की एक पुरानी दवा, जिसे अब पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर (पीटीएसडी) के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, ग्लाइन्फैटिक सिस्टम में सुधार ला सकती है. इलिफ और उनकी सहयोगी डॉ. एलेन पेस्किंड इस दवा का कुछ खास मरीजों पर अध्ययन करने वाले हैं.
वैज्ञानिक कहते हैं कि स्वस्थ लोगों पर ज्यादा बड़े अध्ययन की जरूरत है. नींद के स्वास्थ्य पर काम करने वाले पियान्टिनो एक ऐसा टेस्ट खोज रहे हैं जिसमें इंजेक्शन लगाने की जरूरत ना पड़े. वह कहते हैं, "हम हर किसी का अध्ययन इंजेक्शन लगाकर नहीं कर सकते."
वीके/सीके (एपी)