जर्मनी में भ्रामक सूचनाएं फैलाने का रूसी अभियान
जर्मनी की संघीय खुफिया एजेंसी का कहना है कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जर्मनी में रूस का डिसइन्फॉर्मेशन कैंपेन बहुत उग्र तरीके से चल रहा है.
जर्मनी की संघीय खुफिया एजेंसी का कहना है कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से जर्मनी में रूस का डिसइन्फॉर्मेशन कैंपेन बहुत उग्र तरीके से चल रहा है.फेडरल ऑफिस फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ द कॉन्स्टीट्यूशन ने बताया है कि पिछले डेढ़ साल के दौरान सूचनाओं की दुनिया में मॉस्को का रवैया काफी बदला हुआ है. एजेंसी में जासूसी-विरोधी गतिविधियों के विशेषज्ञ बोडो बेकर इसे रूस की एप्रोच में बदलाव बताते हुए कहते हैं, "कुल मिलाकर रवैया अब काफी उग्र और झगड़ालू है." बर्लिन में डिजिटल मीडिया माध्यमों से आम राय बनाने में नॉन-स्टेट ऐक्टरों की भूमिका पर एजेंसी की तरफ से आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में हिस्सेदारी के लिए पहुंचे बेकर ने इस बारे में विस्तार से बात की. उन्होंने कहा कि रूस ने इस तरह की भ्रामक सामग्री का कैंपेन अपने यूक्रेन युद्ध के हिसाब से तो डिजाइन किया ही है, उसे जर्मनी और दुनियाभर में चल रही बहसों के लिए भी तैयार किया है.
बेकर का मानना है कि रूस के भीतर भ्रामक प्रचार राष्ट्रपति पुतिन को सत्ता में बने रहने में मदद करता है जबकि देश की सीमाओं से बाहर इस तरह की गतिविधियों के जरिए रूस आम राय को प्रभावित करने का भरसक प्रयास कर रहा है. उन्होंने कहा, जर्मनी में इसका लक्ष्य है राजनीति, प्रशासन और आजाद मीडिया में जनता का विश्वास घटाना. इसी तरह ईयू और नाटो के साथ मूल्यों पर आधारित साझेदारियों को बदनाम और कमजोर करना.
कैसे होता है भ्रामक प्रचार
यह लक्ष्य हासिल करने के लिए रूस ताजा विवादास्पद मुद्दों को उठाकर उनका इस्तेमाल अपने मकसद के लिए करता है. बेकर बताते हैं, "रूसी सरकार भ्रामक सूचनाएं फैलाने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से कई तरीकों का इस्तेमाल करती है." यह कई स्तरों पर लगातार चलता रहता है. पुतिन के आधिकारिक बयानों समेत दूसरी तमाम सरकारी एजेंसियां, संसद, सरकारी मीडिया, सूचना देने वाले बहुत से पोर्टल जिन्हें खुफिया एजेंसियां चलाती हैं और सोशल मीडिया, यह सभी इसका हिस्सा हैं.
बेकर कहते हैं, इन विविध चैनलों पर चलने वाले बहुत सारे छोटे-छोटे प्रौपेगैंडा अपने आप में मामूली से लगते हैं और सुरक्षा की नजर से उनकी कोई खास अहमियत भी नहीं होती लेकिन जब इन्हें मिलाकर एक साथ देखा जाए तो जो तस्वीर उभरती है उसका असर अहम है क्योंकि इन्हीं की मदद से राज्य संदेह, बहिष्कार और अविश्वास का माहौल तैयार कर सकता है. हालांकि जर्मनी में आम राय को प्रभावित करने का प्रयास नया नहीं है. शीत युद्ध के समय से ही जर्मनी, सोवियत रूस के सूचना अभियानों का मुख्य निशाना रहा है. पिछले दस सालों में सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ने से यह बहुत सशक्त माध्यम बन चुका है.
एसबी/ओएसजे (एएफपी, डीपीए)