बर्फ के गोले में कैसे बदल गई थी पृथ्वी, मिल गया जवाब

70 करोड़ साल पहले पृथ्वी बर्फ के गोले में बदल गई थी.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

70 करोड़ साल पहले पृथ्वी बर्फ के गोले में बदल गई थी. ऐसा क्यों और कैसे हुआ, यह एक रहस्य है जिसे ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने सुलझा लिया है.एक शोध के सिलसिले में जब डॉ. एड्रियाना डुट्कीविच ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स पहाड़ियों में घूम रही थीं तो उनके मन में यह उत्सुकता जगी कि ज्वालामुखियोंने कैसे पानी से भरपूर ग्रह पृथ्वी को बर्फ से लिपटा एक ठंडा ग्रह बना दिया था.

डुट्कीविच ने अपने साथी प्रोफेसर डीटमार म्युलर के साथ मिलकर इस सवाल का जवाब खोज लिया है. इस सवाल का जवाब उन्हें ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स पहाड़ियों में 60-70 करोड़ पहले जमा हुए तलछट में मिला.

इन वैज्ञानिकों ने प्लेट टेक्टोनिक मॉडलिंग तकनीक का इस्तेमाल कर यह पता लगाया कि 70 करोड़ साल पहले ऐसा क्या हुआ कि धरती का तापमान एकाएक इतना कम हो गया कि वह बर्फ का गोला बन गई.

कैसे आया हिमयुग

विज्ञान पत्रिका ‘जियोलॉजी' में प्रकाशित यह शोध वैज्ञानिकों की यह समझने में मदद करता है कि पृथ्वी का अपना एक तंत्र कैसे उसे अत्यधिक गर्म होने से बचाने में मदद करता है. साथ ही, इससे यह भी पता चलता है कि पृथ्वी की जलवायु वातावरण में मौजूद कार्बन के प्रति किस हद तक संवेदनशील है.

मुख्य शोधकर्ता एआरसी फ्यूचर फेलो डॉ. एड्रियाना डुट्कीविच कहती हैं, "कल्पना कीजिए कि पूरी धरती पर बर्फ ही बर्फ है. लगभग 70 करोड़ साल पहले ऐसा ही हुआ था. ध्रुवों से लेकर भूमध्य रेखा तक हर जगह बर्फ की चादर जम गई थी. लेकिन ऐसा क्यों हुआ, यह एक बड़ा सवाल है. हमें लगता है कि हमने यह रहस्य सुलझा लिया है. ऐसा हुआ ज्वालामुखियों से ऐतिहासिक रूप से कम कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन से. और इसमें ज्वालामुखीय चट्टानों के विशाल भंडार ने भी भूमिका निभाई जिसे आज हम कनाडा कहते हैं. यह भंडार कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख लेती है.”

वैज्ञानिकों ने दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया की फ्लिंडर्स पहाड़ियों में मौजूद हिमयुगीय चट्टानों के इस अध्ययन में अर्थबाइट कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया.

कैसे हुआ शोध

हिमयुग को वैज्ञानिक भाषा में स्टर्टियन गैलसिएशन भी कहते हैं. यह नाम 19वीं सदी के यूरोपीय खोजी चार्ल्स स्ट्रट के नाम पर रखा गया है जिन्होंने मध्य ऑस्ट्रेलिया की यात्रा की थी. 71.1 करोड़ साल से 66 करोड़ साल पहले तक के युग को यह नाम दिया गया है. तब पृथ्वी पर ना डायनासॉर थे और ना पेड़-पौधे.

डॉ. डुट्कीविच कहती हैं, "इस उग्र हिमयुग की शुरुआत और अंत को लेकर कई तरह के सिद्धांत दिए गए हैं लेकिन सबसे बड़ा रहस्य यह रहा है कि यह युग 5.7 करोड़ साल तक कैसे जारी रहा. हम इंसान तो इतने समय की कल्पना भी नहीं कर सकते.”

अपने शोध के लिए वैज्ञानिकों ने उस प्लेट टैक्टोनिक मॉडल का इस्तेमाल किया जो महाद्वीपों के बनने की प्रक्रिया दिखाता है. उन्होंने इसे उस कंप्यूटर मॉडल से जोड़ा जो पानी के भीतर मौजूद ज्वालामुखीयों में कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन की गणना करता है.

कार्बन डाई ऑक्साइड घट गई

इस अध्ययन के दौरान उन्हें अहसास हुआ कि स्टर्टियन आइस एज ठीक उस वक्त आई थी जब कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन सबसे कम था. साथ ही यह भी पता चला कि पूरे हिम युग में कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन तुलनात्मक रूप से बहुत कम रहा.

डॉ. डुट्कीविच समझाती हैं, "उस वक्त पृथ्वी पर कोई बहुकोशिकीय जीव या पेड़ पौधे नहीं थे. इसलिए ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा पूरी तरह ज्वालामुखीयों से निकलने वाली कार्बन डाई ऑक्साइड और सिलिका चट्टानों के इस गैस को सोखने पर निर्भर थी. ”

सिडनी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डीटमार म्युलर इस शोध में सहायक थे. वह बताते हैं, "जलवायु हमेशा भूगोल पर निर्भर करता है. हमें लगता है कि स्टर्टियन हिम युग दो कारणों से शुरू हुआ. एक तो टेक्टोनिक प्लेटों में बदलाव से गैसों का उत्सर्जन बेहद कम हो गया और कनाडा में ज्वालामुखीय चट्टानों का क्षरण हुआ, जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड का सोखा जाना बढ़ गया. नतीजा यह निकला कि वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड इतनी कम हो गई कि तापमान गिरने लगा और हिमयुग शुरू हो गया.”

इस शोध के आधार पर पृथ्वी के सुदूर भविष्य का भी अनुमान लगाया जा रहा है. हाल ही में एक शोध में यह कहा गया कि अगले 25 करोड़ साल में पृथ्वी पर गर्म-युग शुरू होगा, यानी धरती इतनी गर्म हो जाएगी कि यहां जीवन का रहना असंभव हो जाएगा. लेकिन डॉ. डुट्कीविच कहती हैं कि कुदरती तौर पर जो जलवायु परिवर्तन होता है, वह अत्यधिक धीमा होता है जबकि नासा ने हाल ही में कहा था कि इंसानी कारणों से जो जलवायु परिवर्तन हो रहा है, वह पहले के मुकाबले दस गुना ज्यादा तेजी से हो रहा है.

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