हॉर्मोन आधारित गर्भनिरोधक बढ़ाते हैं कैंसर का खतरा
हॉर्मोन आधारित सभी गर्भनिरोधक स्तन कैंसर के खतरे को थोड़ा सा बढ़ा देते हैं.
हॉर्मोन आधारित सभी गर्भनिरोधक स्तन कैंसर के खतरे को थोड़ा सा बढ़ा देते हैं. इनमें केवल प्रोजेस्टोजेन से बने गर्भनिरोधक भी हैं जिनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है. यह खुलासा एक ताजा अध्ययन में हुआ है.शोधकर्ताओं का कहना है कि हॉर्मोन पर आधारित गर्भनिरोधक स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं. मंगलवार को प्रकाशित एक अध्ययन में विशेषज्ञों ने कहा है कि हॉर्मोन आधारित गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के वक्त स्तन कैंसर के खतरे को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए और साथ ही, ऐसा करते वक्त इनके फायदों पर भी विचार होना चाहिए जैसे कि ये महिलाओं में कई तरह के कैंसर के खतरे कम करते हैं.
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अब तक हुए अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि दो हॉर्मोन का इस्तेमाल करके बनाए गए गर्भनिरोधक स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं, जो एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजन हैं. हाल के दिनों में सिर्फ प्रोजेस्टोजन से बनी गर्भनिरोधक गोलियों का चलन बढ़ा है. पिछले एक दशक में इसमें काफी तेजी देखी गई है. लेकिन इसे लेकर स्तन कैंसर पर कम ही अध्ययन हुए हैं.
पीएलओएस मेडिसन नामक पत्रिका में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों हॉर्मोन मिलाकर या एक ही हॉर्मोन से बने, दोनों ही तरह के गर्भनिरोधकों से स्तन कैंसर का खतरा बराबर बढ़ता है. शोध के मुताबिक हॉर्मोन आधारित गर्भनिरोधक लेने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर होने का खतरा इन्हें ना लेने वाली महिलाओं के मुकाबले 20-30 फीसदी ज्यादा होता है. 1996 में इस संबंध में एक विस्तृत अध्ययन हुआ था जिसमें ऐसे ही निष्कर्ष सामने आए थे.
उम्र बढ़ने का असर
शोध में यह भी स्पष्ट हुआ कि गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल के तरीके से खतरा कम या ज्यादा नहीं होता. यानी गोली खाई जाए, उसे इंजेक्शन से लिया जाए या फिर इंप्लांट कराया जाए, या किसी अन्य तरह से लिया जाए, हर मामले में स्तन कैंसर का खतरा बराबर होता है.
शोध करते वक्त विशेषज्ञों ने इस बात का भी ध्यान रखा कि आयु बढ़ने के साथ-साथ महिलाओं में स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता जाता है. उन्होंने इस बात की गणना की कि बढ़ती उम्र के साथ हॉर्मोन आधारित गर्भनिरोधक लेने से खतरा कितना बढ़ता है.
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इस शोध में शामिल रहीं जिलियन रीव्स ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी में सांख्यिकीय महामारी विज्ञान की विशेषज्ञ हैं. वह कहती हैं, "ऐसा कोई नहीं सुनना चाहता कि जिस चीज को वे ले रही हैं, उससे स्तन कैंसर का खतरा 25 फीसदी तक बढ़ जाएगा. हम यहां पक्के खतरे में मामूली वृद्धि की बात कर रहे हैं.”
रीव्स यह भी कहती हैं कि इस खतरे को हॉर्मोन आधारित गर्भनिरोधकों के बहुत सारे फायदों के संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए. वह बताती हैं, "सिर्फ गर्भ नियंत्रण ही एक फायदा नहीं है बल्कि गोलियों से महिलाओं को कई अन्य तरह के कैंसर के खतरे लंबे समय तक और पक्की सुरक्षा मिलती हैं.”
10,000 महिलाओं पर अध्ययन
इस अध्ययन में इस बात की भी पुष्टि हुई कि जब महिलाएं ये गर्भनिरोधक लेना बंद कर देती हैं तो स्तन कैंसर का खतरा घटता जाता है. लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में प्रोफसर स्टीफन डफी, जो खुद इस शोध का हिस्सा नहीं थीं, कहती हैं कि इस निष्कर्ष से तसल्ली मिलती है कि प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं है.
यह अध्ययन 50 वर्ष से कम आयु की करीब 10 हजार महिलाओं पर किया गया. ब्रिटेन में 1996 से 2017 के बीच यह अध्ययन चला. ब्रिटेन में सिर्फ प्रोजेस्टोजेन आधारित गर्भनिरोधकों का काफी चलन है. रीव्स कहती हैं कि इस चलन के बढ़ने की कई वजह हो सकती हैं. ये ऐसी महिलाओं को देने की सिफारिश की जाती है जो बच्चे को दूध पिला रही हों, 35 वर्ष से ऊपर की हों और धूम्रपान करती हों या फिर जिन्हें दिल संबंधी बीमारियां होने का खतरा हो.
रीव्स ने कहा, "ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि महिलाएं बाद के वर्षों में हॉर्मोन आधारित गर्भनिरोधक ले रही हों. इसलिए वे तो कुदरती रूप से ही ऐसी चीजों के खतरे में हो सकती हैं जो गर्भनिरोधकों के साथ मिलकर खतरे को बढ़ा दें.”
वीके/एए (एएफपी)