क्या महिलाओं में दो बार आती है प्यूबर्टी

टिकटॉक पर ऐसी महिलाओं की भरमार है, जो कहती हैं कि उन्होंने खुद को यौवन के दूसरे दौर में पाया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

टिकटॉक पर ऐसी महिलाओं की भरमार है, जो कहती हैं कि उन्होंने खुद को यौवन के दूसरे दौर में पाया है. लेकिन क्या ऐसा सच में हो सकता है?1930 के दशक में लंदन में आंशिक नसबंदी कराने के बाद, मशहूर कवि डब्ल्यूबी यीट्स शायद अंग्रेजी भाषा के इतिहास में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ‘सेकेंड प्यूबर्टी' महसूस करने का दावा किया. हालांकि वह ऐसा दावा करने वाले आखिरी व्यक्ति कतई नहीं थे. करीब 100 साल बाद यह विचित्र पंक्ति अब हैशटैग बन गई है और इसे टिकटॉक पर 57 मिलियन बार देखा गया है.

इतना तो तय है कि ‘सेकेंड प्यूबर्टी' से जुड़ी कहानियों की अदला-बदली कर रहे अधिकांश टिकटॉक यूजर्स ने, जिनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है, आंशिक नसबंदी नहीं करवाई है. एक ओर जहां यीट्स द्वारा जाहिर किए गए "सेकेंड प्यूबर्टी" का संदर्भ यौन इच्छाओं के दोबारा जगने से जुड़ा था, वहीं इन महिलाओं का कहना है कि उनका शरीर अलग-अलग किस्म के, अक्सर बहुत कम संतोषजनक तरीके वाले ऐसे बदलावों से गुजर रहा है, जिन्हें बयान नहीं किया जा सकता.

Madds.maxjesty नाम के एक यूजर ने एक वीडियो डाला, जिसमें कई अन्य लोगों द्वारा कही जा रही बातों का सारांश कुछ यूं जाहिर किया गया है, "जब लोग कहते हैं कि 'तुम हाई स्कूल के बाद से बड़ी हो गई हो,' तो यकीनन यह सही है कि महिलाएं सेकेंड प्यूबर्टी से गुजरती हैं."

इस दूसरे यौवन की बातें काफी हद तक वजन बढ़ने के इर्द-गिर्द घूमती मालूम होती हैं, लेकिन कुछ महिलाएं अपनी त्वचा या बालों में बदलाव की भी बात करती हैं. ऐसे वीडियो की खासियत यह है कि इनमें एक ऐसी भावना जाहिर की जा रही है, जो टिकटॉक पर असामान्य नहीं है- महिलाएं इस बात पर जोर देती हैं कि इसके बारे में ‘कोई भी बात नहीं कर रहा है'.

एक 26 साल की महिला के तौर पर मैंने इस विषय पर थोड़ी रिसर्च करने का फैसला किया. मैंने एक इंस्टाग्राम पोल बनाकर अपनी महिला मित्रों से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि उन्होंने "सेकेंड प्यूबर्टी" महसूस किया है. मैंने उन्हें इस वाक्य का तात्पर्य नहीं बताया. जवाब देने वालों में से 46 फीसद ने ‘हां' कहा और सात फीसद ने ‘न' कहा. बाकियों का कहना था कि वो नहीं जानतीं मैं किस बारे में बात कर रही हूं.

तो शायद इस दावे में कुछ तो बात है, है न?

इसमें सच्चाई नहीं है

यहां स्पष्ट कर देते हैं कि ‘सेकेंड प्यूबर्टी' जैसी किसी अवस्था को चिकित्सा विज्ञान मान्यता नहीं देता है. लोग अपने जीवन में सिर्फ एक बार ही प्यूबर्टी से गुजरते हैं. हां, इसमें कुछ बारीकियां जरूर हैं. ऐसे ट्रांस लोग जो हार्मोन थैरपी से गुजरते हैं, वे ऐसा कुछ महसूस कर सकते हैं जो उस ‘सेकेंड प्यूबर्टी' के बहुत करीब हो सकता है, जिसके बारे में सिसजेंडर महिलाएं सोशल मीडिया पर चर्चा कर रही हैं.

लेकिन सिसजेंडर महिलाओं के साथ ऐसा नहीं होता. सिसजेंडर यानी, शरीर की संरचना के मुताबिक जो जेंडर है, वही महसूस करना. अमेरिका में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रजनन एंडोक्राइनोलॉजी और इनफर्टिलिटी की प्रोफेसर ईव फीनबर्ग कहती हैं, "ऐसा कोई चिकित्सकीय कारण नहीं, जिसकी वजह से 20 साल की उम्र में सभी महिलाओं का वजन बढ़े.”

वह कहती हैं कि यदि वजन बढ़ रहा है, तो ऐसा जीवनशैली में बदलाव के कारण हो सकता है. फीनबर्ग कहती हैं, "अक्सर ऐसा पहली बार तब होता है, जब लोग 20 साल की उम्र के आस-पास अलग रहना शुरू करते हैं. शायद इस वजह से कि लोग बाहर ज्यादा खाने लगते हैं, ज्यादा शराब पीने लगते हैं, 'जिंदगी का ज्यादा मजा' लेने लगते हैं और कसरत कम हो जाती है.”

और सोशल मीडिया पर कई महिलाओं के दावे के विपरीत, फीनबर्ग कहती हैं कि इसकी वजह शायद महिला हार्मोन नहीं है.

वह कहती हैं, "हालांकि लोगों को बढ़ते वजन के लिए 'हार्मोन' को दोष देना पसंद है, लेकिन असल में जो दोषी हार्मोन आहार से जुड़े हैं. यानी इनके लिए इंसुलिन, घ्रेलिन और लेप्टिन जैसी चीजें दोषी हैं, न कि एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे महिला प्रजनन हार्मोन.”

ग्लासगो विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ कार्डियोवैस्कुलर एंड मेडिकल साइंसेज संस्थान में मेटाबॉलिक मेडिसिन के प्रोफेसर नवीद सत्तार भी इस बात से सहमत हैं. वह कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि इससे हार्मोन का कोई लेना-देना है.”

फीनबर्ग की तरह, सत्तार भी कहते हैं कि ये सब शारीरिक बदलाव, ज्यादातर जीवनशैली से जुड़े बदलावों के कारण हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि आंकड़ों से पता चलता है कि महिलाओं में अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में वजन बढ़ने या मोटापे की संभावना ज्यादा होती है, लेकिन इसका आनुवंशिकी या ‘सेकेंड प्यूबर्टी' जैसी चीजों से बहुत ज्यादा लेना-देना नहीं है.

सत्तार कहते हैं, "युवा महिलाओं में वजन बढ़ने का संबंध जीवन के तनाव से हो सकता है, जो इस उम्र में पुरुषों के मुकाबले काम की अधिक मात्रा, घरेलू और व्यावसायिक वजहों और अवसरों की कमी के कारण वयस्क होने पर महिलाओं पर अधिक तेजी से प्रभाव डालता है. यदि ये अटकलें सही हैं, तो हमें महिलाओं के लिए अधिक लचीले कामकाज के तरीकों की जरूरत है. यानी उन्हें काम के ज्यादा अवसर मुहैया कराने चाहिए और घरेलू जिम्मेदारियों में भी उनकी हिस्सेदारी बढ़ानी चाहिए.”

टिकटॉक और महिलाओं का स्वास्थ्य

दोस्तों से होने वाली सीधी बातचीत. या, महिलाओं की सेहत से जुड़ी पत्रिकाएं. या फिर डॉक्टर का क्लिनिक. उम्र के दूसरे दशक में वजन बढ़ने या शरीर में आ रहे अन्य बदलावों से जुड़ी चर्चा का दायरा पहले इतना ही होता था. लेकिन इंटरनेट ने इस बातचीत को पूरी दुनिया के लिए खोल दिया है. हर किसी को अपनी राय या अनुभव साझा करने की अनुमति मिल गई है, फिर चाहे उनके पास विषय को समझने-समझाने की योग्यता हो या ना हो.

सच तो यह है कि 20 की उम्र में महिलाओं का वजन बढ़ना बहुत आम बात है और ऐसा कई वजहों से हो सकता है. 20 से लेकर करीब 29 साल की उम्र के बीच की महिलाएं गर्भावस्था के अलावा भी ऐसी कई गतिविधियों में हिस्सा लेती हैं, जिनके कारण वजन बढ़ सकता है. मसलन, धूमपान छोड़ना, शराब का नियमित सेवन करना, पार्टनर्स के साथ रहना, विश्वविद्यालय जाना और गर्भनिरोधक तरीकों को बदलना. कुछ महिलाओं में 20 की उम्र तक शारीरिक विकास जारी रहता है.

साल 2022 में छपा एक शोध इस विषय पर कुछ रोशनी डालता है. 13 हजार से ज्यादा प्रतिभागियों पर हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने की कोशिश की कि उम्र, लिंग और नस्ल के आधार पर एक दशक के दौरान किसी इंसान के वजन में किस तरह के बदलाव आते हैं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले दस वर्षों के दौरान जिन लोगों का वजन सबसे अधिक बढ़ा, वे सबसे कम उम्र की प्रतिभागी थीं. यानी ये वो महिलाएं थीं, जिनकी उम्र 36 से 39 वर्ष के बीच थी. अश्वेत महिलाएं और मैक्सिकन अमेरिकी महिलाओं में (अध्ययन अमेरिका में आयोजित किया गया था) वजन बढ़ने की संभावना श्वेत महिलाओं की तुलना में ज्यादा थी. वहीं पुरुषों के सभी समूहों की तुलना में महिलाओं के सभी समूहों में वजन बढ़ने की संभावना ज्यादा पाई गई.

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में 36 वर्ष से कम उम्र के लोगों को ना शामिल करने का फैसला किया. उन्होंने लिखा, "यदि 30 साल के व्यक्तियों को शामिल किया जाए, तो 20 साल की उम्र से शुरू होने वाले वजन बढ़ने की गणना चाहिए होगी. ऐसा करने से दिक्कतें आएंगी क्योंकि 20-साल के लोग बढ़ ही रहे होते हैं और उनमें शारीरिक विकास हो रहा होता है.”

तो अब आपको जवाब मिल गया है. सेकेंड प्यूबर्टी भले ही असलियत ना हो, लेकिन उम्र के दूसरे दशक में शरीर के भीतर बदलाव जरूर होते हैं.

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