एक ऑस्ट्रेलियाई खोज जिसने बचाई हजारों जानें

जापान में मंगलवार को हुए विमान हादसे में 379 लोगों की जान बच गई.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जापान में मंगलवार को हुए विमान हादसे में 379 लोगों की जान बच गई. इसमें एक बड़ी भूमिका एक ऐसी चीज की रही, जो मामूली दिखती है लेकिन अब तक बहुत बार जानें बचा चुकी है.मंगलवार शाम को जापान एयरलाइंस के एक विमान में आग लग जाने के बाद सभी 379 यात्रियों और चालकदल के सदस्यों की जान बचने को किसी चमत्कार से कम नहीं माना जा रहा है. टोक्यो के हानेदा हवाई अड्डे पर उतरने के तुरंत बाद यह विमान वहां खड़े कोस्ट गार्ड के एक विमान से टकरा गया जिसके बाद इसमें आग लग गई. कोस्ट गार्ड के विमान में छह लोग सवार थे जिनमें से एक की जान चली गई.

जब विमान में आग लगी तो कॉकपिट में पायलटों को उसका पता तक नहीं चला और आग का गोला बना विमान रनवे पर चलता रहा. जब विमान रुका तो चालक दल के सदस्यों ने पायलटों को आग के बारे में बताया और आनन-फानन में यात्रियों को विमान से बाहर निकाला गया.

इन यात्रियों को बचाने में चालक दल की फुर्ती तो काम आई ही, दशकों पहले की एक ऑस्ट्रेलियाई खोज ने भी जानें बचाने में अहम भूमिका निभाई. यह खोज एक स्लाइडर यानी रबर की बनी फिसलपट्टी है जिसके जरिए विमान से आपातकालीन स्थिति में यात्रियों को निकाला जाता है.

जैक ग्रांट को श्रेय

इस स्लाइडर की खोज ऑस्ट्रेलियाई खोजी जैक ग्रांट ने की थी. ग्रांट का जन्म 1921 में हुआ था. ग्रांट ऑस्ट्रेलिया की विमानन कंपनी क्वांतस में सुरक्षा निरीक्षक थे. 1975 में गिल्ड ऑफ एयर पायलट्स एंड एयर नेविगेटर्स द्वारा स्लाइड राफ्ट के खोजी के रूप में मान्यता दी गई थी. यह संस्था विमानन उद्योग में असाधारण उपलब्धियों के लिए लोगों को सम्मानित करती है.

इमरजेंसी लैंडिंग के वक्त स्लाइडर राफ्ट या इवैक्युएशन स्लाइडर हजारों लोगों की जानें बचा चुकी है. रबर की बनी यह फिसलपट्टी कुछ पलों में खुल जाती है और लोग विमान से बहुत तेजी से फिसलते हुए बाहर निकल सकते हैं.

2009 के मशहूर विमान हादसे के दौरान भी यह काम में आई थी जब एक पायलट ने विमान को न्यूयॉर्क की हडसन नदी पर उतारा था. यूएस एयरवेज फ्लाइट 1549 के उस हादसे पर क्लिंट ईस्टवुड ने एक चर्चित फिल्म सली बनाई थी, जिसे कई पुरस्कार मिले थे.

क्या है इतिहास?

वैसे, इवैक्युएशन स्लाइड जैक ग्रांट की खोज से पहले से इस्तेमाल होती रही हैं. 1954 में जेम्स एफ. बॉयल ने एक स्लाइड के लिए पेटेंट अर्जी दी थी और 1956 में उन्हें इसका पेटेंट मिला था. एयर क्रूजर्स कंपनी के मालिक बॉयल ने ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लाइफ वेस्ट की खोज भी की थी, जिसे माए वेस्ट कहा जाता है.

बॉयल ने जो स्लाइडिंग राफ्ट बनाई थी उसे हाथ से खोलना पड़ता था. वे राफ्ट केबिन क्रू अपने साथ लेकर चलते थे और पानी में लैंडिंग होने पर उन्हें खोलकर नाव की तरह इस्तेमाल किया जा सकता था. 1965 में उस डिजाइन में चालक दल स्लाइड को अपने साथ केबिन में ही रखते थे.

जैक ग्रांट ने उस स्लाइड में तकनीकी बदलाव कर राफ्ट जोड़ दी, जिससे उसे खोलना और इस्तेमाल करना चंद पलों का काम हो गया और विमान के सुरक्षा उपायों में यह एक बेहद अहम जोड़ बन गया है. अब नियम है कि 10 सेकंड्स में इवैक्युएशन राफ्ट खुल जानी चाहिए और चालक दल के पास सभी यात्रियों को बाहर निकालने के लिए 90 सेकंड्स का वक्त होता है.

अब भी हैं कुछ खतरे

हालांकि अब भी इवैक्युएशन राफ्ट पूरी तरह खतरों से मुक्त नहीं है. कई बार इनसे फिसल कर बाहर आने में लोगों को चोट लगी हैं. हालांकि सबसे आम चोटें घिसटने से लगती हैं. लेकिन विमान से कूदने से लगनी वाली चोटों के मुकाबले ये कहीं कम खतरनाक हैं.

जापान में हुए हादसे के बाद विशेषज्ञों ने कहा कि सभी जानें इसलिए बच सकीं क्योंकि यात्रियों ने चालक दल के दिशा-निर्देश सुने और उनका पालन किया. यहां तक कि उन्होंने अपना पूरा सामान विमान में ही छोड़ दिया, जिससे उनका निकलना आसान हो गया.

विमान में यात्रा शुरू करने से पहले चालक दल के सदस्य यात्रियों को जो निर्देश देते हैं उनमें बताया जाता है कि आपातकाल की स्थिति में यात्री सामान को साथ लाने की कोशिश ना करें. इसकी एक वजह यह भी है कि सामान स्लाइडिंग राफ्ट को फाड़ सकता है और ऐसा होना कहीं ज्यादा घातक होगा.

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