कौन थे रणजी ट्रॉफी के प्रणेता? जाने इस धुरंधर क्रिकेटर ने किस शैली को बनाया लोकप्रिय?
रणजीत सिंह जडेजा (Photo Credits: Twitter)

हर युवा क्रिकेटर नेशनल टीम का हिस्सा बनने के सपने देखता है, इस सपने को साकार करने से पूर्व उन्हें रणजी क्रिकेट टूर्नामेंट की लक्ष्मण रेखा पार करनी पड़ती है, यद्यपि रणजी तक भी पहुंचने के लिए तमाम पापड़ बेलने पड़ते हैं. रणजी क्रिकेट के बाद ही सुनील गावस्कर, कपिल देव और सचिन जैसे क्रिकेटर्स नेशनल टीम में जगह बना सके थे. इससे रणजी क्रिकेट टूर्नामेंट की अहमियत का तो पता चलता है. लेकिन ये 'रणजी' क्या है? कौन थे इसके प्रणेता? शायद कम लोग ही इनके बारे में जानते होंगे. जी हां, हम जिस 'रणजी' का जिक्र कर रहे हैं, वे वास्तव में रणजीत सिंह जडेजा थे, जिनकी आज 87वीं पुण्य तिथि (2 अप्रैल) मनाई जा रही है. आइये जानें कौन थे, रणजीत सिंह और क्रिकेट से उनका कब और कैसे नाता जुड़ा?

कौन थे रणजीत सिंह जडेजा:

रणजीत सिंह विभाजी जडेजा का जन्म 10 सितंबर 1872 में गुजरात के नवानगर में एक शाही परिवार में हुआ था. इनका पूरा नाम कुमार रणजीत सिंह जडेजा था. बताया जाता है कि वह वस्तुतः नवानगर के महाराजा भी रहे हैं. रणजीत सिंह इंग्लिश क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी एवं ससेक्स के लिए भी काउंटी मैच खेलते थे. वह तत्कालीन क्रिकेट टीम के बेहतरीन बल्लेबाज माने जाते थे, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट के विकास में अहम भूमिका निभाई थी. नेविल कार्डस ने उन्हें 'द मिडसमर नाइट्स ड्रीम ऑफ़ क्रिकेट' के सम्मान से नवाजा था. अपनी उत्कृष्ट बल्लेबाजी से उन्होंने क्रिकेट जगत में एक नई क्रांति लाई थी. रणजीत सिंह को भारत का पहला टेस्ट क्रिकेटर भी माना जाता है. कालांतर में उन्हें सम्मान देने के लिए भारत के प्रथम श्रेणी क्रिकेट टूर्नामेंट का नाम 'रणजी ट्रॉफी' उन्हीं के नाम पर रखा गया था.

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रणजीत सिंह का क्रिकेट करियर:

मात्र 11 वर्ष की आयु में उन्होंने क्रिकेट में कदम रखा था. साल 1883 में रणजीत सिंह ने पहली बार स्कूल का प्रतिनिधित्व किया. 1884 में उन्हें कप्तान नियुक्त कर दिया गया. उन्होंने बल्लेबाजी और खेल में नई क्रांति लाने के लिए एक नई शैली को विकसित किया था. रणजी ने तत्कालीन युग में पिचों की गुणवत्ता में सुधार लाते हुए रक्षा और आक्रमण दोनों में, अपने पिछले पैरों पर अधिक खेला. उन्होंने एक विशेष शॉट को विकसित किया था. 16 जुलाई 1896 को रणजीतसिंह ने अपने जीवन का पहला टेस्ट क्रिकेट खेला था. पहली पारी में उन्होंने 62 रन बनाए, लेकिन 181 रन की अंतर में, इंग्लैंड टीम फॉलो-ऑन का सामना करते हुए दुबारा पर बल्लेबाजी कर रही है. दूसरे दिन के अंत में, वे 42 रन पर नॉट आउट रहे. अंतिम दिन, उन्होंने दोपहर के भोजन से पहले 113 रन बनाए. ऑस्ट्रेलियाई टीम के दौरे में उन्होंने अपना पहला शतक 154 नाबाद बनाया. उन्होंने अपने पूरे करियर में 15 टेस्ट मैचों में भाग लिया. उन दिनों सभी टेस्ट ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले जाते हैं उन्होंने 44.96 के औसत से कुल 989 रन बनाए थे.

रणजीत सिंह के निधन के बाद शुरु हुई रणजी ट्रॉफी:

2 अप्रैल 1933 में रणजीतसिंह की हृदय गति रुकने के कारण मृत्यु हो गई थी. उनकी मृत्यु के पश्चात साल 1934 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने उनके नाम से क्रिकेट टूर्नामेंट शुरु किया तो ट्रॉफी का नाम रणजी ट्रॉफी रखा. इस ट्रॉफी के तहत 1934-35 में पहला मैच हुआ. ट्रॉफी को पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने दान किया था, उन्होंने ही इस टूर्नामेंट का उद्घाटन भी किया था.