Teacher's Day 2020: 20वीं सदी के तुलनात्मक धर्म के विद्वानों में से एक थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन

आजाद भारत के अस्तित्व को विश्व पटल पर पहुंचाने में देश के कई विद्वानों का नाम शामिल हैं, जिन्होंने भारत की संस्कृति, वेद, दर्शन, उपनिषद से पूरे विश्व को परिचित कराया है. उनमें से ही एक नाम है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जो भारत के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति होने से पहले एक विद्वान, महान शिक्षक, वक्ता, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री रहे.

द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Photo Credits: File Photo)

आजाद भारत के अस्तित्व को विश्व पटल पर पहुंचाने में देश के कई विद्वानों का नाम शामिल हैं, जिन्होंने भारत की संस्कृति, वेद, दर्शन, उपनिषद से पूरे विश्व को परिचित कराया है. उनमें से ही एक नाम है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, जो भारत के पहले उप राष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति होने से पहले एक विद्वान, महान शिक्षक, वक्ता, देशभक्त और शिक्षा शास्त्री रहे. इसके साथ ही उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति धर्म, ज्ञान और सत्य पर आधारित है जो प्राणी को जीवन का सच्चा संदेश देती है. डॉ. राधाकृष्णन के इन्हीं विचारों और दर्शनशास्त्र जैसे-जैसे गंभीर विषय को भी वह अपनी शैली से सरल, रोचक और प्रिय बना देते थे. जिससे छात्र और शिक्षक का रिश्ता और गहरा हो गया और उनके जन्मदिवस को शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा. कुशल विद्वान और शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति और 1962 से 1967 तक भारत के दूसरे राष्ट्रपति भी रहे.

जन्मदिन बन गया शिक्षक दिवस:

आजाद भारत में शिक्षा को एक नया आयाम देने में डॉ. राधाकृष्णन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1962 में राधाकृष्णन जब भारत के राष्ट्रपति थे, उन दिनों उनके कुछ पुराने छात्र और दोस्त उनके पास पहुंचे और उनके जन्मदिवस को मनाने का निवेदन करने लगे. जिसके बाद डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अनुमति देने के साथ ही कहा कि वो अपने जन्मदिन को सभी शिक्षकों के साथ मनाना चाहते हैं. जिसके बाद से सरकार ने 5 सितंबर को शिक्षक दिवस की घोषणा कर दिया.

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व्याख्यानों और लेख पुस्तकों के रूप में मौजूद:

राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी मे हुआ था. डॉ. राधाकृष्णन एक दार्शनिक, विद्वान, शिक्षक और राजनेता थे. वह प्राध्यापक भी रहे, डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचित कराया. सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई. राधाकृष्णन के कई व्याख्यानों, लेखों की अनेक पुस्तकें आज भी शिक्षा जगत में प्रभावी है. 20 वीं सदी के महानतम विचारकों में से एक होने के साथ-साथ भारतीय समाज में पश्चिमी दर्शन को पेश करने के लिए भी याद किया जाता है.

डॉ. राधाकृष्णन समूचे विश्व को एक विद्यालय मानते थे. उनका मानना था कि शिक्षा के द्वारा ही मानव मस्तिष्क का सदुपयोग किया जा सकता है. अत: विश्व को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का प्रबंधन करना चाहिए. वह भारत के सबसे अच्छे और सबसे प्रभावशाली 20वीं सदी के तुलनात्मक धर्म के विद्वानों में से एक थे. जितनें लोकप्रिय वह भारत में रहे उतना ही विदेशों में भी उनके दर्शन पर व्याखानों से लोग प्रभावित हुये.

पुरस्कार और सम्मान:

1954 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए 27 बार नामित किया गया. साहित्य में नोबेल पुरस्कार के लिए सोलह बार और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए ग्यारह बार. मार्च 1975 में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है. इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले यह प्रथम गैर-ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे.

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शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियां:

डॉक्टर राधाकृष्णन वाल्टेयर विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश के 1931 से 1936 तक वाइस चांसलर रहे.

आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के 1936 से 1952 तक प्रोफेसर रहे.

कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर के रूप में 1937 से 1941 तक कार्य किया.

1939 से 1948 तक बनारस के हिन्दू विश्वविद्यालय के चांसलर रहे.

1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर रहे.

1940 में प्रथम भारतीय के रूप में ब्रिटिश अकादमी में चुने गए.

1948 में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में सेवा दी.

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