Swami Vivekanand Punyatithi 2022: युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से जुड़े कुछ प्रेरक प्रसंग!

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे, मां भुवनेश्वरी देवी भगवान शिव की उपासक थीं. माता-पिता के धार्मिक, प्रगतिशील एवं तर्कपूर्ण सोच नरेंद्र दत्त को विरासत में मिली. उनका रुझान बचपन से अध्यात्म की ओर था. 25 वर्ष की आयु में घर-बार छोड़ वे संन्यासी बन गये.

स्वामी विवेकानंद जयंती 2022 (Photo Credits: File Image)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे, मां भुवनेश्वरी देवी भगवान शिव की उपासक थीं. माता-पिता के धार्मिक, प्रगतिशील एवं तर्कपूर्ण सोच नरेंद्र दत्त को विरासत में मिली. उनका रुझान बचपन से अध्यात्म की ओर था. 25 वर्ष की आयु में घर-बार छोड़ वे संन्यासी बन गये. उन्होंने देश भर में भ्रमण कर धर्म, दर्शन, इतिहास, सामाजिक, विज्ञान, कला एवं साहित्यों साथ वेद, उपनिषद, भागवद् गीता, रामायण, महाभारत और पुराण पर अध्ययन किया. 1882 में वह दक्षिणेश्वर स्थित काली-भक्त रामकृष्ण परमहंस से मिले. यहीं से नरेंद्र का स्वामी विवेकानंद बनने का सफर शुरु हुआ. मान्यता है कि स्वामी जी के एक दर्शन पर भी कोई अमल कर ले तो उसका जीवन सफल हो जाये. जानें विवेकानंद के जीवन से जुड़े कुछ प्रेरक प्रसंग.

जुल्म सहना भी जुर्म है

अंग्रेजी हुकूमत के दौरान विवेकानंद रेल में यात्रा कर रहे थे. उनके सामने एक महिला अपने बच्चे संग बैठी थी. एक स्टेशन पर दो अंग्रेज अफसर चढ़े और महिला के सामने की सीट पर बैठ गये. वे महिला पर कटाक्ष करने लगे. महिला अंग्रेजी नहीं जानती थी, लिहाजा खामोश थी. उन दिनों लोग अंग्रेजों से उलझते नहीं थे. महिला की खामोशी से अंग्रेजों की हिम्मत बढ़ी, वे महिला को शारीरिक प्रताड़ना देने लगे. महिला ने गश्त कर रहे भारतीय सिपाहियों से शिकायत की. सिपाही अंग्रेजों का विरोध किये बिना आगे बढ़ गये. अंग्रेजों की हरकतें बढ़ने लगी. स्वामीजी उठे और अंग्रेजों के सामने खड़े हो कुर्ते की बांह उठाई और मांसपेशियां दिखाते हुए घूरा. स्वामीजी की कद-काठी देख अंग्रेज अगले स्टेशन पर उतर गये.

सबक

एक बार विवेकानंद ट्रेन में सफर कर रहे थे. उनकी कलाई में काफी कीमती घड़ी थी. पास बैठी लड़कियों ने विवेकानंद का मजाक उड़ाया. एक की नजर विवेकानंद की महंगी घड़ी पर नजर पड़ी. उन्होंने फुसफुसा कर घड़ी हासिल करने की योजना बनाई. उन्होंने स्वामीजी से कहा कि यह घड़ी उन्हें सौंप दें, नहीं तो वे सुरक्षाकर्मियों से कहेंगी कि आप मेरे साथ बदतमीजी कर रहे थे. स्वामीजी ने बहरा होने का अभिनय करते हुए इशारे से कहा कि एक पेपर पर लिखकर दें, तो समझ लेंगे. लड़कियों ने वैसा ही किया. स्वामी जी ने उनसे कहा कि अब सिक्यूरिटी को बुलाइये मुझे आपकी शिकायत करनी है.  यह भी पढ़ें : Maharashtra Krishi Din 2022 HD Images: महाराष्ट्र कृषी दिन पर ये ग्रीटिंग्स HD Wallpapers और GIF Images के जरिए भेजकर मनाएं वसंतराव नाईक की जयंती को

लक्ष्य हासिल करने का मंत्र

एक बार विवेकानंद हिमालय की यात्रा पर थे. रास्ते में उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति दिखा. वह कभी अपने पैरों को देखता तो कभी सामने को देखता. उसने कहा, श्रीमान मैं चल नहीं सकता, मेरे सीने में भी दर्द है, मैं अपना लक्ष्य कैसे हासिल करूं? विवेकानंद ने कहा, -तुम अपने पैरों के नीचे देखो, यहां तक तुम पहुंच चुके हो, तुम्हारा अगला लक्ष्य भी, बहुत जल्दी तुम्हारे पैरों के नीचे होगा. वृद्ध व्यक्ति विवेकानंद का आशय समझ गया. अगले ही पल उसने स्वयं को अपने लक्ष्य पर खड़ा पाया.

शांति का मार्ग

एक दिन एक साधु स्वामी विवेकानंद के पास आये. उन्होंने कहा, स्वामीजी, मुझे शांति नहीं मिल रही. मैं सारे मोह, माया त्याग चुका हूं. मैं गुरु की शरण में गया. उन्होंने एक मंत्र का जाप करने को कहा, पर मेरा मन अभी भी अशांत है. आप कोई समाधान बतायें. स्वामीजी ने साधु की बात सुनने के बाद कहा, आप सारे कार्य छोड़कर जाइये भूखों को भोजन कराइये, प्यासे को पानी पिलाइये, विद्यार्थियों को शिक्षा दीजिये, दीन-दुखियों एवं रोगियों की तन-मन-धन से सेवा कीजिये. साधु समझ गये कि मानव जाति की निस्वार्थ सेवा से ही सच्ची शांति प्राप्त हो सकती है.

क्या विवेकानंद की अपनी ही मृत्यु की भविष्यवाणी सच साबित हुई?

एक बार स्वामी विवेकानंद ने जॉन पी फॉक्स को पत्र लिखते हुए बताया था, -मैं ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहूंगा. मेरी चेतना निरंतर बढ़ रही है, एक वक्त आयेगा जब मेरा शरीर इस चेतना को संभाल नहीं सकेगा, और मैं 40 की आयु पार करने से पहले मृत्यु को आलिंगन कर लूंगा. 39 वर्ष की आयु तक आते-आते स्वामी जी को गले में दर्द, किडनी एवं लीवर की समस्या, डायबिटीज, माइग्रेन टॉन्सिल, अस्थमा, मलेरिया, बुखार, अपच, गैस्ट्रोएन्टेरिटिस, ब्लोटिंग, डायरिया, डिस्पेप्सिया, गॉल्स्टोन जैसी 30 बड़ी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थे. 4 जुलाई 1902  के दिन उन्होंने गहरी समाधि के साथ देह त्याग दिया. उस समय उनकी उम्र 39 साल थी.

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