सनातन धर्म में सावन माह का विशेष महत्व बताया गया है. हिंदी पंचांग का पांचवां माह सावन भगवान शिव को समर्पित है. इस माह शिव-भक्ति की विशिष्ठ परंपरा का निर्वाह किया जाता है, जिसमें श्रावणी सोमवार का विशेष महत्व है. इस दिन श्रद्धालु भगवान शिव एवं देवी पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं. शिवलिंग पर जल एवं पंचामृत का अभिषेक करते हैं और अपने इष्ठ देव के प्रति श्रद्धा-भक्ति को व्यक्त करते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उनके सारे कष्ट कट जाते हैं. सावन का यह पवित्र महीना पूर्ण चंद्र चक्र तक चलता है. इस अवधि में कई महत्वपूर्ण हिंदू पर्व एवं व्रत रखे जाते हैं. आइये देखते हैं इस पवित्र माह में कब कौन-कौन से व्रत एवं मनाए जाएंगे.
सावन मास 2024 के पर्व एवं व्रतों का कैलेंडर
सावन शिवरात्रि: 02 अगस्त 2024, शुक्रवार को मासिक शिवरात्रि
नाग पंचमी: 09 अगस्त 2024, शुक्रवार
हरियाली तीज: 07 अगस्त 2024, बुधवार
रक्षा बंधन: 19 अगस्त 2024, सोमवार
कजरी तीज: 22 अगस्त 2024, गुरुवार
जन्माष्टमी: 26 अगस्त 2024, सोमवार
सावन 2024 के सोमवार एवं मंगला गौरी व्रत की तिथियां
सावन 2024 का पवित्र माह 22 जुलाई 2024 से शुरू हो चुका है, जो 19 अगस्त 2024 तक रहेगा. पुराणों के अनुसार भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है, इसलिए शिव भक्तों के लिए यह माह काफी महत्वपूर्ण होता है. इसलिए वे इस पर्व को अपने-अपने तरीके से सेलिब्रेट करते हैं. श्रावण मास में सोमवार के दिन भगवान शिव का और मंगलवार को भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के एक स्वरूप मंगला गौरी की विशेष पूजा-अनुष्ठान होता है. आइये जानते हैं श्रावण मास में किसी दिन कौन सा व्रत या पर्व पड़ रहा है.
इस साल 2024 सावन सोमवार व्रत एवं मंगला गौरी व्रत की तिथियां
पहला सावन सोमवार व्रत: 22 जुलाई 2024
पहला मंगला गौरी व्रतः 23 जुलाई 2024
दूसरा सावन सोमवार: 29 जुलाई 2024
दूसरा मंगला गौरी व्रतः 30 जुलाई 2024
तीसरा सावन सोमवार: 5 अगस्त 2024
तीसरा मंगला गौरी व्रत: 6 अगस्त 2024
चौथा सावन सोमवार: 12 अगस्त 2024
चौथा मंगला गौरी व्रत 13 अगस्त 2024
पांचवां सावन सोमवार: 19 अगस्त 2024
सावन मास की पौराणिक कथा
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार समुद्र-मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी और धन्वंतरि के अलावा बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुएं निकली, लेकिन मंथन के दौरान जब हलाहल नामक विष निकला था, तो उसके प्रभाव से चारों ओर त्राहिमाम् मच गई. जो भी व्यक्ति हलाहल के संपर्क में आता, उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती थी. तब पृथ्वी वासियों की सुरक्षा हेतु ब्रह्मा और विष्णु जी ने भगवान शिव से मदद मांगी. शिवजी ने सारा हलाहल पी लिया. इसके घातक प्रभाव से उनका संपूर्ण शरीर नीला पड़ गया. देवी पार्वती ने दैवीय शक्ति से विष को शिवजी के गले से नीचे नहीं आने दिया. इससे शिवजी का कंठ नीला पड़ गया, जिसके कारण उन्हें भगवान नीलकंठ कहा जाने लगा. कहते हैं कि हलाहल की तीव्र गर्मी को शीतल करने हेतु भक्त शिवलिंग पर गंगाजल डालने लगे. उन भक्तों को कांवड़ नाम दिया गया. कांवड़िये कांवड़-यात्रा के अंत में शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं. मान्यता है कि यह घटना सावन माह में हुईं थी.