Kabir Das Jayanti 2021: कबीर दास जयंती पर इन हिंदी मैसेजेस WhatsApp Stickers के जरिये लोगों को दें शुभकामनाएं

महान संत कबीर दास 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और समाज सुधारक थे. वे हिन्दू धर्म या इस्लाम को न मानते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और मानव सेवा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था. इसलिए प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है.

कबीर दास जयंती 2021 (Photo Credits: File Photo)

Kabir Das Jayanti 2021: महान संत कबीर दास (Kabir Das) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और समाज सुधारक थे. वे हिन्दू (Hinduism) धर्म या इस्लाम (Islam) को न मानते हुए धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और मानव सेवा के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा (Jyeshth Purnima) के दिन काशी में 1398 में हुआ था. इसलिए प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन उनकी जयंती मनाई जाती है. इस साल ज्येष्ठ पूर्णिमा 24 जून को पड़ रहा है. ऐसे में इस साल उनकी 644वीं जयंती आगामी गुरुवार को मनाई जा रही है.

गुरु कबीर ऐसे संत के रूप में पहचाने जाते हैं जिन्होंने हर धर्म, हर वर्ग के लिए अनमोल सीख दी है. कबीर दास की भाषा में हिंदी भाषा की सभी बोलियों की समावेश होता था, लेकिन उनके दोहों में राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता साफ झलकती है. कबीर दास के 644वीं जयंती पर उनके कुछ प्रमुख दोहे इस प्रकार हैं-

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥

कबीर दास जयंती 2021 (Photo Credits: File Photo)

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।

जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय ॥

कबीर दास जयंती 2021 (Photo Credits: File Photo)

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ॥

कबीर दास जयंती 2021 (Photo Credits: File Photo)

चलती चाकी देखकर, कबीरा दिया रोय ।

दुइ पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय ॥

कबीर दास जयंती 2021 (Photo Credits: File Photo)

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ॥

कबीर दास जयंती 2021 (Photo Credits: File Photo)

देह त्यागते हुए भी दे गये संदेश:

हिंदुओं में यह कथन बहुत प्रचलित है कि काशी (Varanasi) में देह त्यागने वाले को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. शायद इसी धारणा को गलत साबित करने के लिए कबीर दास जी को जब जीवन के अंत का अहसास हुआ तो काशी में रहते हुए वे काशी छोड़ बस्ती (Basti) के करीब मगहर (Maghar) जैसे छोटे ग्राम की ओर प्रयाण कर गए.

कबीर दास के जीवन का अंत बहुत नाटकीय बताया जाता है. कहते हैं कि उनके निधन के पश्चात जब उनके देह को जलाने अथवा दफनाने के लिए हिंदू और मुसलमानों में विवाद हुआ तो, आपसी सहमति से उनके मृत देह से चादर हटाया गया तो वहां कुछ पुष्प ही नजर आए. कहा जाता है कि उन पुष्पों को हिंदू और मुसलमानों ने आपस में बांट लिया और अपने-अपने धर्मों के अनुरूप दोनों ही समुदाय ने उनका अंतिम संस्कार किया.

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