Sankashti Chaturthi 2021: जानें कब है नववर्ष की पहली संकष्टी चतुर्थी व्रत! पूजा विधान, महत्व एवं मुहूर्त!

सनातन धर्म में किसी भी कार्य का शुभारंभ अथवा देवी-देवता की व्रत-पूजा से पूर्व श्रीगणेश जी की पूजा का विधान है. मान्यता है कि श्रीगणेश की पूजा करने के बाद ही जातक की अन्य पूजा संपूर्ण मानी जाती है, और तभी उसकी इच्छित मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

प्रतिकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

संकष्टी चतुर्थी व्रत : सनातन धर्म में किसी भी कार्य का शुभारंभ अथवा देवी-देवता की व्रत-पूजा से पूर्व श्रीगणेश जी की पूजा का विधान है. मान्यता है कि श्रीगणेश की पूजा करने के बाद ही जातक की अन्य पूजा संपूर्ण मानी जाती है, और तभी उसकी इच्छित मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस नववर्ष 2021 को पहले पर्व के रूप में संकष्टी चतुर्थी व्रत 2 जनवरी (शनिवार) 2021, के दिन श्रीगणेश जी की व्रत एवं पूजा का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है. क्योंकि संकष्टी का यह व्रत श्रीगणेशजी को समर्पित है. इसलिए हिंदू धर्म में इस संकष्टी चतुर्थी पूजा का विशेष महत्व माना जा रहा है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

हिंदी पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी का व्रत रखा जाता है. महत्वः पौष मास के कृष्णपक्ष की संकष्टि चतुर्थी को गणाधिपति संकष्टि संकष्टि चतुर्थी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान श्रीगणेश जी की के नाम का व्रत रखते हुए षोडशोपचार विधि से पूजा करने का विधान है. मान्यता है कि इस व्रत के साथ श्रीगणेश जी की सुबह शाम पूजा-अर्चना करने से घर में सुख-शांति के साथ शुभता आती है. कार्य में पड़ रहा बार-बार का विघ्न दूर होता है. इस व्रत को करने से श्रीगणेश की कृपा से कोर्ट में चल रहे विवाद दूर होते हैं. फंसा हुआ धन अथवा स्थाई प्रॉपर्टी प्राप्त होती है. जो माँ यह व्रत रखती है, उसकी संतान को किसी तरह का कष्ट नहीं होता.यह भी पढ़ें : Margashirsha Guruvar Vrat 2020: आज है मार्गशीर्ष मास का पहला गुरुवार, जानें महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि और महत्व

पूजा विधान :

प्रातःकाल स्नान-दान करने के पश्चात पीले रंग का स्वच्छ अथवा नया वस्त्र पहनें. इसके पश्चात श्रीगणेश जी के व्रत-पूजा का संकल्प लेते हुए अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करें. अब एक स्वच्छ चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर गंगाजल छिड़कें और उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित कर लाल अथवा पीले रंग के पुष्पों की माला चढाएं. गणेश जी की पूजा में दूब अवश्य चढाएं. इसके अलावा दूब, अक्षत, रोली एवं मोदक का प्रसाद अर्पित करें. सुहागन स्त्रियां रोली की जगह सिंदूर चढाएं. तत्पश्चात श्रीगणेश मंत्र का जाप करने के पश्चात गणेश चालीसा का पाठ करें. पूजा के पश्चात श्रीगणेश जी की आरती उतारें. इसी तरह संध्याकाल के मुहूर्त पर पुनः श्रीगणेश जी की विधिवत पूजा करें और आरती उतारें. इसके पश्चात चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दें और अर्घ्य के पश्चात व्रत का पारण करें. अच्छा होगा कि पारण से पूर्व किसी ब्राह्मण को भोजन एवं मुद्रा दान करें. संकष्टि चतुर्थी की पूजा सुबह और शाम के वक्त किया जाता है.

शुभ मुहूर्त सुबह की पूजा :

05.24 से 06.21 बजे तक शाम की पूजाः 05.35 से 06.57 बजे तक

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