शादी से पहले क्यों मिलाई जाती है लड़के और लड़की की कुंडली? जानिए इसका महत्व
ईश्वर ने स्त्री-पुरुष दोनों में ही कुछ खूबियां तो कुछ खामियां दी हैं. विवाह-संस्कार के पश्चात दोनों आपसी सूझ-बूझ से एक दूसरे की खामियों को खूबियों में बदलकर पूर्णता हासिल करते हैं. इसके लिए कुण्डलियों के मिलान की प्रासंगिकता अहम भूमिका निभाती है.
भारतीय संस्कृति (Indian Culture) में विवाह-संस्कार (Marriage) दो आत्माओं का मिलन माना गया है. ईश्वर ने स्त्री-पुरुष दोनों में ही कुछ खूबियां तो कुछ खामियां दी हैं. विवाह-संस्कार के पश्चात दोनों आपसी सूझ-बूझ से एक दूसरे की खामियों को खूबियों में बदलकर पूर्णता हासिल करते हैं. इसके लिए कुण्डलियों के मिलान (Kundali Match) की प्रासंगिकता अहम भूमिका निभाती है. आइये जानें इस संदर्भ में सुविख्यात ज्योतिषाचार्य रविंद्र पाण्डेय (Astrologer Ravindra Pandey) क्या कहते हैं.
आज भी भारतीय समाज में प्रेम-विवाह की तुलना में अरेंज मैरेज का चलन ज्यादा है. इससे हमारी ‘विवाह संस्कृति’ के प्रति विश्वसनीयता पुख्ता होती है. अरेन्ज मैरिज में एक परिवार के लोग दूसरे परिवार के खानदान, खानपान, कल्चर, स्टेटस और कुण्डली मिलान के आधार पर वैवाहिक सम्बन्ध बनाते है. इसमें कुण्डली मिलान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार यदि लड़के और लड़की के गुण-दोषों का मिलान ठीक नहीं बैठ रहा है तो इनके वैवाहिक जीवन के सुखमय होने पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो सकता है.
हिंदू धर्म में विवाह-संस्कार के सभी कर्मों में सप्तपदी सर्वोपरि होती है, और यह सप्तपदी होती है मंडप में वर-वधु द्वारा लिये गये सात फेरे. हमारी संस्कृति और हमारी परंपराओं में वैवाहिक बंधन को धर्म का बंधन माना गया है. जिस तरह धर्म को किसी भी स्थिति में त्यागा नहीं जा सकता, उसी प्रकार विवाह का बंधन भी किसी भी कीमत में खंडित नहीं किया जा सकता. पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है.
कुण्डली की प्रासंगिकता
विवाह-संस्कार को गंभीर स्वरूप देने के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने ज्योतिष अनुसंधान से कुछ सूत्र स्पष्ट किये हैं, जिन्हें जीवन में अपनाने के बाद दाम्पत्य जीवन सुखद और खुशहाल होता है. इसी के तहत वर-वधु की कुंडलियां मिलाने की आवश्यकता पर बल दिया गया. इस प्रक्रिया में लड़के-लड़की की रुचियां, प्राकृतिक समानता, उनके ग्रहों में साम्यता, जीवन के पक्षों में आपसी पूरकता जैसे संवेदनशील मुद्दों पर विचार करने के लिए मेलापक की ज्योतिष शास्त्रीय परंपरा है, जो ज्यादातर सटीक व महत्वपूर्ण साबित होती है.
मेलापक पद्धति का महत्व
विवाह से पूर्व वर-वधु की कुण्डलियों के मिलान करने की प्रक्रिया को 'मेलन-पद्धति' कहा गया था. आगे चलकर यही पद्धति 'मिलान पत्रक', 'गुण मिलान', 'मिलान' तथा 'मेलापक' आदि नाम से प्रचलित हुई. सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए वर-वधु की कुण्डलियों को मिलाकर निम्न पाँच बिन्दुओं पर विचार किया जाता है.
- दोनों प्राणियों की सेहत अच्छी रहे.
- परिवार के संचालन में पर्याप्त भोग उपलब्ध रहे.
- दोनों को संतोषजनक काम सुख प्राप्त हो.
- दोनों में से किसी का भी अनिष्ट न हो.
- पारिवारिक व्यय के लिए पर्याप्त अर्थ व्यवस्था हो. यह भी पढ़ें: क्यों बोलते हैं हवन करते समय ‘स्वाहा’, जानिए इससे जुड़ी प्रचलित मान्यताएं
यदि इन पाँच भावों में दुष्ट ग्रह सक्रिय हों या यह पाँच भाव पाप ग्रहों से दृष्ट हों व युतिसंबंध रखते हों, तो इससे दाम्पत्य जीवन का 40 प्रतिशत से अधिक जीवन प्रभावित होता है, इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने सुखी, समृद्ध तथा आनंदमय दाम्पत्य जीवन व्यतीत करने के लिए कुण्डली मिलान करने की परंपरा प्रारंभ की होगी.
मेलापक के दो आधार हैं. नक्षत्र मेलापक और ग्रह मेलापक. नक्षत्र मेलापक के आधार पर भावी वर-वधु के जन्म नक्षत्र व जन्म राशि के माध्यम से अष्टकूट मिलान किया जाता है. इससे उनकी प्रकृति और रुचि के समानता का मूल्यांकन किया जाता है. वर-वधु की कुण्डलियों में मंगल, सूर्य, शनि, राहु, केतु की स्थिति के परस्पर मूल्यांकन के आधार पर दोनों की परस्पर, अनुकूलता व प्रतिकूलता का विचार एक पहलू है. इन्हीं पापी ग्रहों की स्थिति के आधार पर मांगलिक मिलान किया जाता है. ग्रह मेलापक का दूसरा पहलू है. भावी वर-वधु की कुण्डलियों नवग्रहों की स्थिति का परस्पर मूल्यांकन करती हैं.