लक्ष्मी पंचमी: इस दिन पूजा-अर्चना से घर में होती है सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य की वर्षा, जानें व्रत कथा और पूजा विधि

चैत्र मास शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. परंपराओं के अनुसार मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन विधि-विधान पूर्वक व्रत रखते हुए पूजा-अर्चना की जाती है. इसलिए इस दिन को ‘लक्ष्मी पंचमी’ अथवा ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है. यद्यपि मां सरस्वती की उपासना ‘बसंत पंचमी’ के दिन भी की जाती है...

लक्ष्मी माता (Photo Credit: YouTube)

चैत्र मास शुक्लपक्ष की पंचमी के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. परंपराओं के अनुसार मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन विधि-विधान पूर्वक व्रत रखते हुए पूजा-अर्चना की जाती है. इसलिए इस दिन को लक्ष्मी पंचमी अथवा श्री पंचमी भी कहा जाता है. यद्यपि मां सरस्वती की उपासना बसंत पंचमी के दिन भी की जाती है. लेकिन मां लक्ष्मी को श्री भी कहा जाता है. इसलिए लक्ष्मी पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है. घर में सुख-समृद्धि व धन प्राप्ति की कामना के लिए मां लक्ष्मी की उपासना का यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण है.

 हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन माता लक्ष्मी की आराधना करने से सभी मनोवांछित कामनाएं पूरी होती हैं. नए वर्ष का यह पहला अवसर है, जब धन-धान्य एवं समृद्धि के लिए महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है. इसके पश्चात दीपावली पर लक्ष्मी पूजन होती है. लक्ष्मी पंचमी की पूजा की एक खास बात यह भी है कि जिसकी कुंडली में नाग दोष’ होता है उसे इस पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होता है.

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 विद्वानों का मानना है कि लक्ष्मी पंचमी की पूजा का लाभ श्रद्धालुओं को अवश्य मिलता है. जिन जातकों की कुंडली नाग दोष’ से ग्रस्त होती है, 'लक्ष्मी पंचमी' की रात नाग देवता का पूजन कर नाग दोष से मुक्ति मिल जाती है. पूजन के लिए गाय के कच्चे दूध का प्रसाद चढ़ाया जाता है. घी का दीप प्रज्जवलित कर मंशा देवी नाग स्त्रोत तथा सर्प सुक्त संस्कार का पाठ करते हुए मनोवांछित फल की प्राप्ति की मनोकामना की जाती है.

क्या है पूजा का विधान

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन प्रातः काल स्नान ध्यान के पश्चात स्वच्छ अथवा नए वस्त्र पहनते हैं. इसके पश्चात लक्ष्मी जी की प्रतिमा अथवा तस्वीर के सामने स्वर्ण, ताम्र या रजत और कमल का फूल चढ़ाया जाता है. प्रसाद में अनाज, हल्दी, गुड़ और अदरक अथवा इससे बने पकवान चढ़ाना चाहिए. कहीं-कहीं कमल का फूल, घी, बेल के टुकड़े से हवन का विधान है. रात को दही और पका हुआ चावल खाने की भी परंपरा है.

क्यों मनाते हैं लक्ष्मी पंचमी

भविष्यपुराण में उल्लेखित है कि इस व्रत को विधि-विधान से करनेवाली महिलाएं सौभाग्यरूसंतान और धन-धान्य से सम्पन्न हो जाती हैं तथा श्री पंचमी’ का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करने वालों को अपने संपूर्ण कुलों के साथ लक्ष्मी लोक में निवास करने का सुअवसर प्राप्त होता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां की पूजा करने व व्रत रखने से उपवास रखने वालों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. ऐसी भी मान्यता है कि जिनके जीवन में धन का अभावनौकरी अथवा व्यवसाय में कामयाबी नहीं मिलती है, उसे मां लक्ष्मी की विशेष मंत्रोच्चारण के साथ उपासना करनी चाहिए. ऐसा करने से उसके सारे कष्ट मिट जाते हैं.

श्री पंचमी की लोकप्रिय व्रत कथा

कहा जाता है कि एक बार माता लक्ष्मी किसी बात पर देवताओं से रूठकर क्षीर सागर में चली गईं थी. मां लक्ष्मी के इस तरह रुष्ठ होकर जाने से देवता स्वयं को लक्ष्मी विहीन महसूस करने लगे. तब सभी देवता देवराज इंद्र के साथ मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए व्रत के साथ कठोर तपस्या शुरू की. लक्ष्मी विहीन होने से असुर भी परेशान थे, उन्होंने भी मां लक्ष्मी की तपस्या एवं उपासना शुरू की. ऐसा बहुत कम होता है कि जब देवता और दानव सभी लक्ष्मी जी को खुश करने के लिए सामूहिक रूप से तपस्या एवं पूजन की हो. अततः भक्तों की पुकार के पश्चात श्री लक्ष्मी प्रकट हुईं, इसके पश्चात विष्णु भगवान जी के साथ उनका विवाह सम्पन्न हुआ और देवतागण श्री को पाकर प्रसन्न हो गए.

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