हिंदू विवाह में क्यों किया जाता है कन्यादान? जानें इसका धार्मिक महत्व एवं कैसे शुरू हुई यह प्रथा?
हिंदू धर्म के 16 संस्कारों का सबसे महत्वपूर्ण है विवाह संस्कार, जो एक विद्वान पुरोहित के निर्देशन में तमाम रस्मो-रिवाज पूरी करने के पश्चात ही संपन्न माना जाता है, और तभी विवाहित जोड़े को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है.
हिंदू धर्म के 16 संस्कारों का सबसे महत्वपूर्ण है विवाह संस्कार, जो एक विद्वान पुरोहित के निर्देशन में तमाम रस्मो-रिवाज पूरी करने के पश्चात ही संपन्न माना जाता है, और तभी विवाहित जोड़े को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है. वैसे तो हर रस्मो-रिवाज वैवाहिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण माने जाते हैं, लेकिन जो सबसे सबसे महत्वपूर्ण रस्म है, वह है माता-पिता द्वारा अपनी कन्या अर्थात बेटी का दान, जिसका मूल आशय है कि पिता जब कन्यादान करता है तो इसके बाद लड़की के जीवन से जुड़ी हर जिम्मेदारियों का निर्वहन वर (लड़के) को करनी होती है. Surya Grahan 2021: कब है साल का अंतिम सूर्य ग्रहण? भारत के लिए यह ग्रहण शुभ है या अशुभ? जानें क्या कहते हैं ज्योतिष शास्त्री!
कन्या का दान नहीं है कन्यादान?
कन्यादान का मूल आशय कन्या का आदान है ना कि कन्या को दान देना. कन्यादान पूजन के समय पिता वर से कहता है,-मैंने अब तक अपनी बेटी का समुचित पालन-पोषण किया, उसे बड़े नाजो-जतन से पाला है, अब आज से उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी मैं आपको सौंपता हूं. दरअसल दान उस वस्तु का करते हैं, जिसे आप अर्जित करते हैं, जबकि बेटी ईश्वर की दी हुई अनमोल धरोहर होती है, इसलिए उसका दान नहीं किया जा सकता.
कन्यादान का महात्म्य!
सनातन धर्म में कन्यादान को ‘सर्वश्रेष्ठ दान’ माना गया है. कन्या का पिता वर को भगवान विष्णु समान महत्व देते हुए धार्मिक अनुष्ठानों एवं रीति-रिवाजों के साथ अपनी कन्या का हाथ उसके हाथों में सौंपता है तो वर वैदिक रीति के अनुसार कन्या के पिता को आश्वासन देता है कि अब से उनकी बेटी का पूरा दायित्व वह संभालेगा और जीवन भर उसका ख्याल रखेगा. उसे समुचित सुरक्षा एवं सरंक्षण देगा. इसके बाद अमुक कन्या के लिए मायका पराया और पति का घर (ससुराल) अपना हो जाता है. कन्यादान के दौरान ही तमाम मंत्रोच्चारण के बीच वधु वर के धर्म, जाति एवं गोत्र आदि को अपनाती है. हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार कन्यादान करनेवाले पिता को सपत्नीक स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और उसे सहस्त्र यज्ञ कराने समान पुण्य की प्राप्ति होती है.
ऐसे शुरू हुई कन्यादान की परंपरा!
पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के बाद कन्यादान किया था. 27 नक्षत्रों को प्रजापति की पुत्री कहा गया है जिनका विवाह चंद्रमा से हुआ था. इन्होंने ही सबसे पहले अपनी कन्याओं को चंद्रमा को सौंपा था ताकि सृष्टि का संचालन आगे बढ़े और संस्कृति का विकास हो. राजा दक्ष की पुत्री देवी सती थीं, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था.