Eid Milad-un-Nabi 2019: पैगंबर मुहम्मद ने हिंसा और नफरत को दूर कर शांति की राह पर चलने की इस्लामिक शिक्षा दी

मुसलमानों के प्रमुख पर्वों में एक है 'बारावफात', जिसे 'ईद ए मिलाद' और 'मिलाद-उन-नबी' के नाम से भी जाना जाता है, कहते हैं कि शांति, सच्चाई एवं धर्म का संदेश देनेवाले पैंगबर मुहम्मद का जन्म इसी दिन हुआ था. दुर्भाग्यवश इसी दिन उनका इंतकाल भी हुआ था. ‘बारावफात’ में ‘बारा’ का आशय 12 और ‘वफात’ का अर्थ इंतकाल से है.

नमाज/प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

Eid-e-Milad-un-Nabi 2019: मुसलमानों के प्रमुख पर्वों में एक है 'बारावफात' (Barawafat), जिसे 'ईद ए मिलाद' और 'मिलाद-उन-नबी' के नाम से भी जाना जाता है, कहते हैं कि शांति, सच्चाई एवं धर्म का संदेश देनेवाले पैंगबर मुहम्मद ( Prophet Muhammad ) का जन्म इसी दिन हुआ था. दुर्भाग्यवश इसी दिन उनका इंतकाल भी हुआ था. ‘बारावफात’ में ‘बारा’ का आशय 12 और ‘वफात’ का अर्थ इंतकाल से है. यानी पैगंबर मुहम्मद 12 दिन की बीमारी के बाद चल बसे थे. इस दिन को शिया समाज जन्मदिन यानी खुशी के रूप में मनाता है, जबकि सुन्नी समाज पैगंबर की मृत्यु के कारण गमी के साथ उन्हें याद करता है. मान्यता है कि इस दिन मुहम्मद पैगंबर की शिक्षा को सुना जाये, तो इंसान मौत के पश्चात स्वर्ग को जाता है.

बारावफात रीति एवं रिवाज

इस पर्व को लेकर शिया एवं सुन्नी दोनों के अलग-अलग मत हैं, इसीलिए इस पर्व को मनाने का उनका अंदाज भी अलहदा होता है. हालांकि दोनों ही समुदाय मुहम्मद साहब के बताये शांति एवं धर्म के मार्ग पर चलने के उनके विचारों को याद करते हैं और कुरान का पाठ करते हैं. इस दिन काफी मुसलमान मक्का-मदीना अथवा दरगाहों जैसे इस्लामिक तीर्थों के लिए निकलते हैं. कहते हैं कि जो भी मुसलमान इस दिन को नियमों के साथ जीता है, उसे अल्लाह की विशेष कृपा प्राप्त होती है.

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सुन्नी संदेश मानते हैं और शोक मनाते हैं

सुन्नी समुदाय इसी दिन मुहम्मद साहब की मृत्य होने के कारण इसे शोक के रूप में मनाते हैं. रात्रि भर चलने वाले मुहम्मद पैगंबर की शिक्षा वे बड़ी शिद्दत से सुनते हैं, उन्हें याद करते हैं. इसके बाद मस्जिदों में जाते हैं, और मुहम्मद साहब की शिक्षा का जीवन भर अनुसरण करने का प्रण लेते हैं, ताकि मुहम्मद पैगंबर के सपनों को साकार किया जा सके.

शिया इसे पैगंबर के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं

शिया समुदाय इस पर्व को मुहम्मद पैगंबर के जन्म दिन के रूप में मनाते हैं, इसलिए इस दिन वे पूरे जोश और उत्साह के साथ इसे सेलीब्रेट करते हैं. उनका मत यही होता है कि इसी दिन पैगंबर मुहम्मद ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में हजरत अली का चुनाव किया था. कहने का आशय शिया समुदाय के लिए यह दिन एक नये नेता के चुनाव की खुशी में मनाया जाता है. इसके साथ ही वे पैगंबर मुहम्मद का जन्म दिन भी सेलीब्रेट करते हैं. यानी उनके लिए यह दिन दोहरी खुशियों वाला होता है.

पर्व की परंपराओं को ना भूलें युवा

पूर्व में यह पर्व काफी शांति, सौहार्द एवं सादगी के साथ मनाया जाता था, लेकिन बदलते दौर के साथ इस पर्व में भी कुछ बदलाव देखने को मिलता है. विशेष रूप से मॉर्डन विचार वाले युवा इन दिनों अनावश्यक हुल्लड़बाजी एवं बाइक पर स्टंट आदि कर खुद के साथ दूसरों की जान भी जोखिम में डालते हैं. हालांकि पुराने खयालों वाले आज भी इस पर्व को अपनी उसी सादगी और शांति के साथ परंपरानुरूप तरीके से मनाते हैं. क्योंकि उनकी नजर में मुहम्मद पैगंबर साहब ने अपनी शिक्षा में शांति एवं सादगी को अपनाते हुए नेकी का कार्य करने का संदेश दिया था. बुजुर्गों का मानना है कि पर्व की खुशी तभी मिलती है जब उसकी परंपराओं को न भूला जाए.

पैगंबर मुहम्मद ने दिया था विश्व को शानदार तोहफा

मुहम्मद पैगंबर ने दुनिया को इस्लाम के रूप में एक शानदार तोहफा दिया था. क्योंकि इससे पूर्व अरब समाज में किस्म-किस्म की बुराइयां व्याप्त थीं. लोग अपनी बेटियों को जिंदा जला देते थे. जरा सी बात पर म्यान से तलवारें निकलना और किसी को भी मौत की नींद सुला देना आम था. मुहम्मद पैगंबर ने इस्लाम के द्वारा लोगों को जीने का नया तरीका सिखाया. इस्लाम के उदय होने के बाद अरब के बर्बर कबीलों में ना सिर्फ सभ्यता का उदय हुआ बल्कि भाई-चारे का भी विकास हुआ और यह सब संभव सिर्फ इस्लाम और कुरान के संदेश के कारण हो पाया.

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