कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि का सनातन धर्म में विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यतानुसार इस दिन भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार लिया था. मनुष्यों द्वारा दीपावली पर्व मनाने के पश्चात आज के दिन देवतागण दीपावली मनाने पृथ्वी पर काशी में उतरते हैं, इसी दिन सिखों के पहले गुरु श्रीगुरुनानक जी ने जन्म लिया था, मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक महाबलशाली त्रिपुरासुर का संहार किया था. इसीलिए इस दिन को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. सर्वप्रथम हम बात करेंगे कि कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन देव दीवाली क्यों मनाई जाती है. November 17, 2021 Horoscope: जानें कैसा होगा आज का दिन और किस राशि की चमकेगी किस्मत
क्यों मनाते हैं देव दीवाली?
कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन देव दीवाली मनाने का विधान आदिकाल से जारी है. मान्यता है कि इस दिन स्वर्ग से समस्त देवतागण शिवजी की प्रिय नगरी काशी के गंगा तट पर अवतरित होकर दीवाली मनाते हैं. पौराणिक कथाओं में उल्लेखित है कि इस दिन भगवान शिव ने महाबलशाली असुर त्रिपुरासुर का संहार कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्त कराया था, इसी खुशी में स्वर्ग से समस्त देवगण काशी में गंगा तट पर अवतरित होकर भगवान शिवजी की स्तुतिगान एवं आह्वान करते हुए दीवाली मनाते हैं. इस दिन काशी नगरी दीपों से दमक उठती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
देव दीवाली की पूजा विधान!
कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त पर उठकर गंगा नदी पर स्नान करना चाहिए, अगर गंगा अथवा अन्य नदी या सरोवर उपलब्ध नहीं है तो स्नान के जल में कुछ बूंदे गंगाजल की मिलाकर स्नान करने से भी गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त होता है. इसके पश्चात भगवान शिव एवं श्रीहरि का ध्यान करते हुए व्रत-पूजा का संकल्प लें.
संध्याकाल के समय किसी नदी पर जाकर घी के कम से कम पांच दीप प्रज्जवलित करें. अगर नदी सुलभ नहीं है तो मंदिर अथवा घर के मंदिर में दीपक प्रज्जवलित करें. इसके पश्चात सर्वप्रथम प्रथम आराध्य गणेशजी की पूजा अर्चना करें. इसके बाद भगवान शिव एवं श्रीहरि की विधिवत तरीके से पूजा करें. इस अवसर पर शिवजी को सफेद पुष्प, प्रसाद एवं बिल्व पत्र तथा भगवान श्रीहरि को पीला पुष्प, प्रसाद स्वरूप दूध की मिठाई एवं तुलसी का पत्ता अर्पित करें. मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान, दीपदान, पूजा, आरती, हवन और दान-पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.
देव दीवाली (18 नवंबर, 2021) का शुभ मुहूर्त
देव दीवाली आरंभ रात्रि 12.02 AM से
देव दीवाली समाप्त अपराह्न 02.30 PM तक
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ये शुभ कार्य किये जा सकते हैं.
* इस दिन भगवान श्री सत्यनारायण की कथा पढ़नी अथवा सुननी चाहिए.
* गरीब एवं अन्य जरूरतमंदों को भोजन, फल, गरम वस्त्र एवं जूते का दान करना चाहिए.
* अगर आपके घर के करीब को पवित्र नदी नहीं है तो प्रातःकाल जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें. स्नान करते समय गंगा, यमुना, गोदावरी आदि नदियों एवं प्रमुख तीर्थो का ध्यान अवश्य कर लें.
* स्नान के पश्चात सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल अर्पित करते हुए इस मंत्र का जाप करें.
ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।
ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।
* किसी गौशाला में हरी घास एवं धन का दान करें.
* इस दिन शिवलिंग पर बिल्व पत्र के साथ जल चढ़ाएं एवं ‘ऊँ नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करें, इसके पश्चात कपूर जलाकर आरती करें.
* हनुमान जी के सामने दीप प्रज्जवलित कर हनुमान चालीसा अथवा सुंदरकाण्ड का पाठ करें.