Chaitra Navratri 2019: तंत्र साधना का केंद्र है कामाख्या देवी मंदिर, जहां प्रसाद में मिलते हैं रक्त से भीगे वस्त्र

कामाख्या देवी मंदिर तंत्र साधना के लिए मशहूर है. 51 सती पीठों में यह अकेला मंदिर है, जहां सती की मूर्ति नहीं स्थापित है. चैत्रीय नवरात्रि पर यहां विशाल मेला का आयोजन किया जाता है. सबसे हैरानी की बात यह है कि यहां प्रसाद स्वरूप रक्त से भीगे कपड़े दिये जाते हैं.

कामाख्या मंदिर (Photo Credits: Facebook)

Chaitra Navratri 2019: शिव पुराण (Shiv Puran) एवं दूसरे सभी बड़े धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जहां-जहां सती देवी (Devi Sati) के शरीर के अंग, आभूषण, एवं वस्त्र गिरे, वे सभी स्थान शक्ति पीठ (Shaktipeeth) के रूप में चर्चित हुए. इसी कड़ी का सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है, कामाख्या देवी. मान्यता है कि यहां पर माता सती की जननांग (योनि) गिरा था. वस्तुतः कामाख्या देवी मंदिर तंत्र साधना के लिए मशहूर है. 51 सती पीठों में यह अकेला मंदिर है, जहां सती की मूर्ति नहीं स्थापित है. चैत्रीय नवरात्रि (Chaitra Navratri) पर यहां विशाल मेला का आयोजन किया जाता है. सबसे हैरानी की बात यह है कि यहां प्रसाद स्वरूप रक्त से भीगे कपड़े दिये जाते हैं. आइए जाने इस मंदिर के बारे में ऐसी ही कुछ रहस्यमयी बातें..

चैत्रीय नवरात्रि इस वर्ष 6 अप्रैल से शुरू हो रहा है, लेकिन यहां भक्तों की भीड़ काफी पहले से जुटनी शुरू हो जाती है. हिन्दू मतानुसार कामाख्या शक्ति पीठ (Kamakhya Devi Mandir) में माता सती की योनि गिरी थी. कहते हैं कामदेव माता सती के गर्भाशय और जननांगों को ढूढ़ कर लाए थे, तभी उन्हें श्राप से मुक्ति मिली थी. उसी समय से देवी को कामाख्या नाम मिला था. कालांतर में यह स्थान कामाख्या शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ.

यहां नहीं है सती की मूर्ति

असम की राजधानी दिसपुर से गुवाहाटी 8 किमी की दूरी पर स्थित है. 51 शक्ति पीठों में कामाख्या देवी शक्ति पीठ का सबसे ज्यादा महात्म्य है. कामाख्या मंदिर से 10 किमी नीलांचल पर्वत पर स्थित है. यहां भगवती की महामुद्रा (योनि कुंड) स्थापित है. शक्ति मन्दिर होने के कारण इसका तांत्रिक महत्व बहुत ज्यादा है. यहां देवी की योनि की पूजा होती है. जो मनुष्य इस शिला का पूजन करता है, दर्शन करता है, उसे देवी की विशेष कृपा हासिल होती है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: माता सती के 4 अज्ञात शक्तिपीठ, जिनको लेकर आज भी रहस्य है बरकरार

मंदिर के मध्य में एक कुंड है. इसे ‘सौभाग्य कुंड’ कहते हैं. यहां योनिरूप की पूजा होती है. यहां सती की कोई प्रतिमा नहीं है. अलबत्ता योनि के आकार का एक शिलाखंड है, जो लाल रंग के वस्त्र से ढका रहता है. कहा जाता है कि पत्थर की इस योनि में माता सती वास करती हैं. कामाख्या देवी मंदिर के परिसर में अन्य 10 महा विद्याओं काली, तारा, बगला, छिन्न मस्ता, भुवनेश्वरी, भैरवी और धुमवती के भी मंदिर हैं.

शक्ति के इस मंदिर के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. कुछ कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कामदेव ने करवाया था. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार वर्तमान के मंदिर को कच्छ वंश के राजा चिला रॉय ने बनवाया था. बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के हमलों में यह नष्ट हो गया था. 1656 में इस मंदिर का पुनर्निर्माण राजा नर नारायण ने करवाया था.

यहां माता होती हैं रजस्वला

जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है कि जहां यह मंदिर बना है, यहां सती माता योनि भाग गिरा था. यहां साल में तीन दिन माता रजस्वला होती हैं. इस दौरान मंदिर के कपाट बन्द कर दिये जाते हैं. तीन दिन बाद जब मंदिर खोला जाता है, तो सभी उत्साह से भरे होते हैं.

प्रसाद में मिलता है रक्त में भीगे वस्त्र

यहां आनेवाले श्रद्धालुओं को पुजारी द्वारा रक्त में भीगा वस्त्र देने का विधान है. इसे ‘अंबुवाची वस्त्र’ कहते हैं. स्थानीय पुरोहितों के अनुसार देवी मां के रजस्वला होने से पूर्व मंदिर के भीतर सफेद कपड़ा रखा जाता है. 3 दिन बाद जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तब वे वस्त्र माता के रज से लाल हो जाते हैं. सुहागिन स्त्रियां प्रसाद में यह कपड़े पाकर स्वयं को धन्य मानती हैं.

मंदिर का निर्माण

16 वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राजाओं में आए दिन युद्ध होने लगे थे, जिसमें कूच बिहार के राजा विश्व सिंह जीत गएं. लेकिन इस युद्ध में विश्व सिंह के भाई लापता हो गए थे. अपने भाई को जगह जगह घूमते नीलांचल पर्वत पहुंच गए. यहां उन्हें एक महिला दिखाई दी. उस महिला ने राजा को इस जगह कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया. महिला की बात की सच्चाई जानने के लिए उस जगह की खुदाई करवाई. खुदाई करवाने पर कामदेव का बनवाया मूल मन्दिर का निचला हिस्सा नजर आया. राजा ने उसी मंदिर के उपर एक और मंदिर बनवाया. मान्यता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमण करियों ने इस मन्दिर को तोड़ दिया था, जिसे अगले साल राजा विश्व सिंह के पुत्र नर नारायण ने बनवाया. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2019: 6 अप्रैल से शुरू हो रही है चैत्र नवरात्रि, जानें किस दिन करनी चाहिए किस शक्ति की पूजा

भैरव दर्शन बिना अधूरी है यात्रा

कामाख्या मंदिर से कुछ ही दूरी पर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में उमा नन्द भैरव का मन्दिर है. उमा नन्द भैरव ही इस शक्ति पीठ के मुख्य भैरव हैं. कहा जाता है कि अगर आप कामाख्या देवी का दर्शन कर वापस चले जाते हैं तो, पूजन का अभीष्ट फल नहीं मिलता. इसलिए माता शक्ति की पूजा और परिक्रमा करने के बाद भैरव जी का दर्शन अवश्य करना चाहिए. यह अनिवार्य है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की अपनी निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं.

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