Bhadrakali Ekadashi 2020: भद्रकाली पूजा से मिलती है भूत-प्रेत योनि से मुक्ति

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास में कृष्णपक्ष की एकादशी (11वें दिन) को भद्रकाली (देवी भवानी) की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान की परंपरा है. अलग-अलग स्थानों पर इसे ‘अचला एकादशी', ‘जल क्रीड़ा एकादशी' एवं ‘अपरा एकादशी', भी कहते हैं. इस एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करने के बाद एकादशी व्रत का संकल्प लें.

भद्रकाली (Photo Credits: Facebook)

हिन्दू पंचांग (Hindu Calendar) के अनुसार ज्येष्ठ मास में कृष्णपक्ष की एकादशी (11वें दिन) को भद्रकाली (देवी भवानी) की पूजा-अर्चना और अनुष्ठान की परंपरा है. अलग-अलग स्थानों पर इसे ‘अचला एकादशी', ‘जल क्रीड़ा एकादशी' एवं ‘अपरा एकादशी', भी कहते हैं.

पद्म पुराण में वर्णित है कि भद्रकाली एकादशी (Ekadashi) का व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान पूरे विधि-विधान से करने से ब्रह्म-हत्या, पर-निंदा, भूत-प्रेत योनि जैसे बुरे परिणामों से मुक्ति मिलती है, तथा घर में सुख-शांति एवं समृद्धि का वास होता है, तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष 18 मई 2020 को भद्रकाली एकादशी का व्रत एवं पूजा-अनुष्ठान की जाएगी.

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भद्रकाली का प्रकट होना

पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भगवान शिव क्रोधावेश में सती के मृत शरीर को कंधे पर लेकर ब्रह्माण्ड में विचरण कर रहे थे तो ज्येष्ठ मास की एकादशी के दिन ही शिवजी के बालों से मां भद्रकाली प्रकट हुईं. इनके प्रकाट्य का मुख्य कारण पृथ्वी से सभी को सभी दुष्ट राक्षसों का संहार करना था.

देवी भद्रकाली के इस प्रकाट्य के कारण ही इस दिन को भद्रकाली एकादशी कहा जाता है, अगर किसी व्यक्ति विशेष से कभी जाने-अंजाने में कोई पाप हुआ है और वह इससे मुक्ति पाना चाहता है तो उसे भद्रकाली एकादशी का व्रत एवं पूजा अवश्य करनी चाहिए. इस दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा का विधान है.

दक्षिण भारत में आज के दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा-अर्चना की जाती है. इस एकादशी के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करने के बाद एकादशी व्रत का संकल्प लें. व्रत के दौरान चावल अथवा इससे बने खाद्य- पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए और न ही तुलसी का पत्ता तोड़ना चाहिए.

ऐसे करें पूजा-अनुष्ठान

स्नान-ध्यान के पश्चात एक साफ चौकी पर स्वच्छ अथवा नया पीले रंग का आसन बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें. पूजा प्रारंभ से पूर्व विष्णुजी की प्रतिमा को पहले पंचामृत और इसके बाद गंगाजल से स्नान करवाकर स्वच्छ वस्त्र से प्रतिमा को पोछकर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय' अथवा 'ओम ब्रह्म बृहस्पताय' नम का जाप करते हुए चौकी पर स्थापित करें. अब गाय के शुद्ध घी का दीप एवं धूप प्रज्जवलित करें. अब प्रतिमा पर रोली से तिलक लगाकर लाल पुष्प एवं अक्षत अर्पित करें. भगवान को खोये का मिष्ठान एवं तुलसी का पत्ता चढ़ाएं.

सहस्त्रनाम का पाठ करें. इस दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है.

भद्रकाली व्रत-अनुष्ठान का महात्म्य

मान्यता है कि जो फल, कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर में करने, गंगा-तट पर पिंडदान करने गोमती में स्नान करने, शिवरात्रि व्रत, कुंभ में केदारनाथ एवं बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान तथा हैस्वर्ण-दान से मिलता है, वही फल भद्रकाली एकादशी के दिन उपवास और अनुष्ठान करने से मिलता है.

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