Parshwanath Jayanti 2021: जानें श्री पार्श्वनाथ ने किन-किन 10 रूपों में जन्म लिया? भगवान पार्श्वनाथ जी के संदर्भ में ऐसे ही कुछ रोचक एवं प्रेरक बातें!

प्रत्येक वर्ष पौष कृष्णपक्ष की दशमी के दिन भगवान पार्श्वनाथ की जयंती मनाई जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार साल के अंतिम सप्ताह यानी 29 दिसंबर 2021, बुधवार को दुनिया भर में भगवान पार्श्वनाथ जी की जयंती सेलीब्रेट की जाएगी.

भगवान पार्श्वनाथ (Photo Credits: Wikimedia Commons)

प्रत्येक वर्ष पौष कृष्णपक्ष की दशमी के दिन भगवान पार्श्वनाथ की जयंती मनाई जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार साल के अंतिम सप्ताह यानी 29 दिसंबर 2021, बुधवार को दुनिया भर में भगवान पार्श्वनाथ जी की जयंती सेलीब्रेट की जाएगी. जैन धर्म के मतानुसार पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर के रूप में पूजे जाते हैं. इनका जन्म अरष्टिनेमि के एक हजार वर्ष पश्चात पौष माह के कृष्‍णपक्ष की एकादशी के दिन इक्ष्‍वाकु वंश में हुआ था. भगवान पार्श्वनाथ बचपन से ही चिंतनशील और दयालु स्वभाव के एवं सभी विद्याओं में प्रवीण थे. मान्यता है कि उन्होंने 30 वर्ष की आयु में वैराग्य धारण कर लिया था. शांत, शील एवं क्षमा के प्रतीक तथा सामाजिक क्रांति के प्रणेता पार्श्वनाथ ने अभूतपूर्व क्रांति का परिचय देते हुए अहिंसा को आम जनमानस के जीवन का हिस्सा बनाया. उन्होंने अपने अधिकांश उपदेशों में कहा है कि हर व्यक्ति को आम मानव के प्रति सहज, करुणा और कल्याण का भाव रखना ही सच्ची मानवता है. आइए जानें भगवान पार्श्वनाथ के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प एवं प्रेरक बातें.

* भगवान पार्श्वनाथ का जन्म एवं माता-पिता!

भगवान पार्श्वनाथ का जन्म लगभग 872 ईसा पूर्व हुआ था. पिता का नाम राजा अग्रसेन एवं माँ का नाम वामा था. पिता वाराणसी के सम्राट थे औऱ इनका प्रारंभिक जीवन राजकुमारों की तरह गुजरा. इनका विवाह कुशस्थल देश की राजकुमारी प्रभावती के साथ हुआ था

* भगवान पार्श्वनाथ के संदर्भ में कुछ भ्रांतियां हैं दिगंबर एवं श्वेतांबर में

पार्श्वनाथ के बारे में दिगंबर धर्म के माननेवालों के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ बाल ब्रह्मचारी थे, जबकि दो मतों में बंटे श्वेतांबर मतावलंबियों का एक धड़ा उन्हें विवाहित मानता है. इसी तरह पार्श्वनाथजी की जन्म तिथि, माता-पिता के नाम आदि के संदर्भ में भी एकमत नहीं है.

* इस वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ ज्ञान!

जैन धर्मानुसार 84 दिन तक कठिन तपस्या करने के बाद चैत्र मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन पार्श्वनाथजी ने काशी (अब वाराणसी) में 'घातकी वृक्ष' के नीचे 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त किया. इनका निर्वाण पारसनाथ की पहाड़ियों पर हुआ था. इस पहाड़ को सम्मेद शिखर कहते हैं. यह स्थान झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन में स्थित है.

* भगवान पार्श्वनाथ का प्रतीक चिह्न!

जैन धर्मावलंबियों के अनुसार भगवान पार्श्वनाथ का प्रतीक चिह्न सर्प, चैत्य वृक्ष-धव, यक्ष-मातंग, यक्षिणी-कुष्माडी हैं. इनके शरीर का रंग नीला और चिह्न सर्प का है.

* 10 जन्‍म लेने पड़े 23वां तीर्थंकर बनने के लिए!

जैन धर्मानुसार भगवान पार्श्वनाथ को 23वां 'तीर्थंकर' बनने के लिए 10वां जन्म लेना पड़ा था. प्रत्येक जन्म के पुण्यों और दसवें जन्म में कठोर तपस्या के पश्चात ही वे 23वें तीर्थंकर बनें. भगवान पार्श्वनाथ ने ताउम्र लोगों को अहिंसा का दर्शन दिया. उनका कहना था, सभी को जीने का अधिकार है.

* भगवान श्री पार्श्वनाथ ने इन रूपों में लिये 10 जन्म!

- पहले जन्म में मरुभूमि ब्राह्मण,

- दूसरे जन्म में वज्रघोष हाथी,

- तीसरे जन्म में स्वर्ग के देवता,

- चौथे जन्म में राजा रश्मि

- पांचवें जन्म में देव,

- छठे जन्म में वज्रनाभि चक्रवर्ती सम्राट,

- सातवें जन्म में देवता,

- आठवें जन्म में राजा आनंद

- नौवें जन्म में स्वर्ग के राजा इंद्र

- दसवें जन्म में तीर्थंकर

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