Navratri 2022 Barley Importance: नवरात्रि में जौ ही क्यों बोते हैं? जानें जौ कैसे बताएंगे कि किसे देवी माँ का कितना आशीर्वाद मिला?
चैत्रीय नवरात्रि हो या शारदीय नवरात्रि, कलश स्थापना से पूर्व मिट्टी के पात्र में जौ बोने की बहुत पुरानी परंपरा है. क्या आप जानते हैं कि धान, गेहूं, मक्का अथवा किसी अन्य अनाज के बजाय जौ का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है? आइये इस संदर्भ में विस्तार से जानते हैं.
चैत्रीय नवरात्रि हो या शारदीय नवरात्रि, कलश स्थापना से पूर्व मिट्टी के पात्र में जौ बोने की बहुत पुरानी परंपरा है. क्या आप जानते हैं कि धान, गेहूं, मक्का अथवा किसी अन्य अनाज के बजाय जौ का ही इस्तेमाल क्यों किया जाता है? आइये इस संदर्भ में विस्तार से जानते हैं.
जौ को ज्वार भी कहते हैं. सनातन धर्म में कैसी भी पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान आदि हो, जौ का इस्तेमाल जरूर किया जाता है. नवरात्रि (चैत्र मास या आश्विन मास की) व्रत में कलश स्थापना से पूर्व मिट्टी के पात्र में जौ बोया जाता है. कलश में पानी, सुपारी, सिक्के और रोली डालकर जौ युक्त मिट्टी पर स्थापित करते हैं. नौ दिनों तक अंकुरित होते जौ के बीच विभिन्न शक्तियों की पूजा की जाती है. नौवें दिन ये जौ हरे-भरे पौधों में बदल जाते हैं. इन्हें नौरते कहा जाता है. जौ का यह विकसित स्वरूप ही आपकी पूजा की सफलता का पर्याय माना जाता है. नौवें दिन इन्हें बहते हुए पानी में विसर्जित कर दिया जाता है, अथवा किसी पीपल के वृक्ष के नीचे रख देना चाहिए. यह भी पढ़ें : Health Benefits Of Going Barefoot in Navratri 2022: नवरात्रि में नंगे पैर क्यों चलते हैं? जाने यह सेहत के लिए कितने लाभकारी या हानिकारक हो सकते हैं!
पूजा-पाठ में जौ ही क्यों?
नवरात्रि ही नहीं बल्कि हर आध्यात्मिक कर्मकांडों में जौ का इस्तेमाल प्रमुखता से किया जाता है. वह चाहे नवरात्रि में जौ बोना हो, अथवा हवन सामग्री में जौ मिला हो. वास्तव में हमारे पौराणिक ग्रंथों में जौ को सृष्टि की पहली फसल माना जाता है, इसे पूर्ण फसल भी कहा जाता है. इसलिए हवन सामग्री में जौ को मिलाया जाना आवश्यक होता है. नवरात्रि में जौ बोने का मुख्य कारण यह है कि जौ अन्न ब्रह्म है, इसलिए अन्न का सम्मान करना चाहिए.
जौ प्रतीक हैं कि किसे माँ का कितना आशीर्वाद मिला
मिट्टी के पात्र में जौ बोने के बाद उस पर कलश स्थापित किया जाता है. कलश स्थापित करने के बाद जौ पर बाहर से पानी नहीं डाला जाता. मिट्टी निर्मित कलश के रंध्रों से ही जौ को पानी मिलता है. पहले तीन दिनों में जौ अंकुरित होने लगते हैं. प्रतिपदा से नवमी तक पूजा-अनुष्ठान करने के पश्चात जौ हरे-भरे फसल के रूप में लहलहाने लगते हैं. हरे-भरे जौ समृद्धि, शांति, उन्नति और खुशहाली का प्रतीक होते हैं.
हरे उगे जौ घर-परिवार में सुख एवं समृद्धि का वास होते हैं. पीले रंग के जौ को धर्म-अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है. हरे-पीले रंग के मिश्रित जौ के पौधे आर्थिक प्रगति एवं स्वस्थ संतान का प्रतीक समझा जाता है. लेकिन अगर ये जौ के पौधे श्वेत रंग के हों तो सबसे शुभ माना जाता है. ज्योतिषियों का मानना है कि इस तरह के जौ मां दुर्गा की पूर्ण संतुष्टि का प्रतीक होता है. उन जातकों पर साल भर माँ की असीम कृपा बनी रहती है. इसके विपरीत अगर जौ अंकुरित होने के बाद सूख जाये अथवा जौ के फसल काले-काले दिखें तो इसे अशुभता का संकेत माना जाता है. ज्योतिषियों के अनुसार ऐसी स्थिति में माँ दुर्गा की सप्तशती का पाठ आपको सकारात्मक परिणाम दे सकता है.