Kartik Pooja 2023: कब है कार्तिक पूजा? जानें इसका महत्व, मुहूर्त एवं पूजा विधि!

आश्विन मास की नवरात्रि में दुर्गा पूजा के साथ भगवान शिव एवं माँ पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है. हालांकि पश्चिम बंगाल में कार्तिक टैगोर पूजा की एक अलग परंपरा लंबे अर्से से की जा रही है. इस दिन स्वामी कार्तिकेय की बडी धूमधाम से पूजा की जाती है.

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आश्विन मास की नवरात्रि में दुर्गा पूजा के साथ भगवान शिव एवं माँ पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है. हालांकि पश्चिम बंगाल में कार्तिक टैगोर पूजा की एक अलग परंपरा लंबे अर्से से की जा रही है. इस दिन स्वामी कार्तिकेय की बडी धूमधाम से पूजा की जाती है. स्वामी कार्तिकेय को कहीं मुरुगन तो कहीं सुब्रमण्यम के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में स्वामी कार्तिकेय को देव सेनापति, युद्ध के देवता और भगवान कार्तिकेय को अत्यंत पूजनीय एवं महाशक्तिशाली बताया गया है, स्वामी कार्तिकेय की पूजा कार्तिक मास की संक्रांति में की जाती है. इस वर्ष कार्तिक नवमी का पर्व 17 नवंबर 2023, शुक्रवार को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं, कार्तिकेय पूजा के बारे में कुछ रोचक जानकारियां

कार्तिक पूजा का महत्व!

सृष्टि के पूर्व निर्धारित नियमों के अनुसार महाबलशाली योद्धा कार्तिकेय का जन्म शिव परिवार में हुआ था, जिसका मुख्य उद्देश्य महाबली असुरराज तारकासुर का संहार करना था, क्योंकि तारकासुर ने भगवान ब्रह्मा से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर लिया था. अंततः कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने बालपन में ही अजेय कहे जाने वाले तारकासुर को मारकर देवलोक एवं पृथ्वी वासियों को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाया, और उन्हें देवलोक का सेनापति बनाया गया. इसलिए बहुत सारे लोग कार्तिक टैगोर को देव सेनापति के नाम से जानते हैं. यह भी पढ़ें : Bhai Dooj 2023 Wishes: भाई दूज पर ये WhatsApp Status, Greetings, HD Photos और Wallpapers से बनाएं अपने त्यौहार को खास

कब है कार्तिक पूजा?

कार्तिक नवमी प्रारंभः 04.33 AM (17 नवंबर 2023, शुक्रवार)

कार्तिक नवमी समाप्त 06.00AM (18 नवंबर 2023, शुक्रवार)

उदया तिथि के अनुसार 17 नवंबर को स्वामी कार्तिकेय की पूजा-अर्चना की जाएगी

क्यों की जाती है कार्तिक पूजा?

स्कंद पुराण में किये गये उल्लेख के अनुसार तारकासुर नामक एक राक्षस था, जिसने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसका संहार भगवान शिव के शुक्र से उत्पन्न पुत्र से ही हो. क्योंकि तारकासुर अच्छी तरह जानता था, कि शिव योगी हैं, इसलिए वे विवाह नहीं करेंगे, इस तरह वह हमेशा अजेय बना रहेगा. शंकरजी ने पार्वती से विवाह तो किया, मगर वे संतान उत्पन्न नहीं कर सकीं. अंततः देवताओं के सामूहिक प्रयास के बाद भगवान शिव के शुक्राणु से कार्तिकेय का जन्म हुआ, मगर शिवजी ने अपना तपस्वी रूप नहीं त्यागा. पार्वती धर्म माता बनीं, बच्चे का नाम कार्तिकेय रखा गया. कार्तिकेय ने काफी कम उम्र में तारकासुर का वध कर दिया. स्वामी कार्तिकेय की पूजा-अर्चना संतान की दीर्घायु एवं अच्छी सेहत के लिए किया जाता है.

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