International Day of Education 2023: कब है अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस? जानें इसका इतिहास, उद्देश्य और वर्तमान में भारत का शैक्षिक स्तर!
शिक्षा हर व्यक्ति के लिए जरूरी और उसका मूलभूत अधिकार है. लेकिन त्रासदी यह है कि आज भी दुनिया भर में असंख्य बच्चे विभिन्न कारणों से शिक्षा प्राप्त कर पाने में असमर्थ हैं, और इसकी मुख्य वजह है गरीब बच्चों की शिक्षा का समुचित व्यवस्था का अभाव.
शिक्षा हर व्यक्ति के लिए जरूरी और उसका मूलभूत अधिकार है. लेकिन त्रासदी यह है कि आज भी दुनिया भर में असंख्य बच्चे विभिन्न कारणों से शिक्षा प्राप्त कर पाने में असमर्थ हैं, और इसकी मुख्य वजह है गरीब बच्चों की शिक्षा का समुचित व्यवस्था का अभाव. शिक्षा हासिल करने के लिए बच्चों एवं उनके अभिभावकों को तमाम संघर्ष करना पड़ता है, इसी वजह से उनका सही विकास नहीं हो पाता. शिक्षा एक मानवीय अधिकार है और सार्वजनिक जिम्मेदारी भी. शिक्षा के इस महत्व को देखते हुए प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी के दिन अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस धूमधाम के साथ मनाया जाता है. आज हम अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर शिक्षा के महत्व, इसके इतिहास एवं उद्देश्य आदि पर विस्तार से बात करेंगे.
अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का इतिहास
दुनिया भर में तमाम देश हैं, जहां बच्चों को समुचित शिक्षा प्राप्त नहीं होने से उनका भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्तर काफी हद तक प्रभावित हुआ है. बच्चों के मौलिक शैक्षिक अधिकार की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 दिसंबर 2018 को एक अहम फैसला लेते हुए 24 जनवरी को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया, इस अवसर पर नाइजीरिया समेत 58 से ज्यादा देश के अधिकारियों ने इस अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस में शामिल होकर अपनी सहमति दर्ज कराई. इसके बाद से प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को दुनिया भर के बच्चों को मुफ्त एवं बुनियादी शिक्षा देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस सेलिब्रेट किया जा रहा है.
क्यों मनाया जाता है अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस?
किसी भी देश के विकास का स्तर उस देश के शैक्षिक एवं बौद्धिक स्तर से मापा जा सकता है. विश्व शिक्षा दिवस की महत्ता को देखते हुए इस दिन को विभिन्न देशों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. इस अवसर पर तरह-तरह के वैश्विक ग्लोबल इवेंट्स आयोजित किये जाते हैं. इन आयोजनों को अमूमन तीन विषयों लर्निंग, इनोवेशन और फाइनेंसिंग में बांटा जाता है. इसे वैश्विक आयोजन के रूप में न्यूयार्क एवं पेरिस स्थित युनेस्को मुख्यालय में आयोजित किया जाता है. इस विविधरंगी आयोजन में शामिल अधिकारियों की कोशिश होती है कि दुनिया भर में शांति एवं विकास हेतु शिक्षा की भूमिका को बढ़ावा दिया जाये, और शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जाये.
शिक्षा के क्षेत्र में कहां है भारत
शिक्षा समृद्धि का एकमात्र माध्यम है. सौभाग्य से ब्रिटिश हुकूमत से आजाद होने के बाद आजाद भारत के कर्णधारों ने इसे समझा और इस पर काफी काम किया. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 1947 में आजाद भारत की कुल जनसंख्या करीब 36 करोड़ थी, जबकि साक्षरता दर सिर्फ 18 प्रतिशत थी, इसमें महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक थी. 8.9 प्रतिशत से भी कम महिलाएं शिक्षित थीं. जागरूकता और शैक्षिक योजनाओं के कारण साल 2021 में जहां कॉमन साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत तक बढ़ी, जिसमें पुरुष (84.7) और महिला में (70.3) प्रतिशत की उछाल देखने को मिली. इसकी वजह यह थी कि साल 1948 में जहां स्कूलों की कुल संख्या 1 लाख 52 हजार 814 थी, साल 2021 तक आते-आते यह संख्या 15 लाख 7 हजार 708 तक पहुंची.
आजादी के समय देश में केवल 36 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, जिसमें सालाना ढाई हजार बच्चे दाखिला ले पाते थे. साल 2021 तक करीब ढाई हजार इंजीनियरिंग कॉलेज, 14 सौ पॉली टेक्निकल और दो सौ प्लानिंग और आर्किटेक्ट कॉलेज सक्रिय हैं. आज देश में 23 आईआईटी, 20 आईआईएम और 25 एआईआईएमएस सक्रिय हैं.
अगर जनसंख्या के दृष्टिकोण से देखा जाये तो उपरोक्त आंकड़े पर्याप्त नहीं हैं. इसके अलावा उच्च शिक्षा में भी सरकार ने संख्या पर ज्यादा गुणवत्ता पर कम ध्यान रखा है. देश भर में थोक के भाव में विश्वविद्यालय खुले, मगर शिक्षा का स्तर चिंताजनक है. अच्छी पढ़ाई नहीं हो रही है. अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज तो महज कमाई का अड्डा बन चुका है. फैकल्टी भी अच्छी नहीं और कारगर लैब्स का भी अभाव है. शैक्षिक-ऋण की व्यवस्था भी तर्क एवं न्यायसंगत नहीं है. जरूरतमंद बच्चों की अपेक्षा समर्थ बच्चों को स्कॉलरशिप दिये जाते हैं.
हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो धीरे-धीरे ग्लोबल व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, हमें आने वाली पीढ़ियों को भारत में ही नहीं दुनिया भर में प्रतिस्पर्धी योग्य बनाना है. अंत में यही कह सकते हैं, ‘थोड़ा है थोड़े की जरूरत है.’