Heramb Sankashti Chaturthi 2025: क्या है हेरंब संकष्टी चतुर्थी? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा विधि इत्यादि!

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर माह की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है. भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हेरंब संकष्टी चतुर्थी या अंगारक गणेश संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. हेरंब का अर्थ है गणेश. इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से सारे संकट और विघ्न दूर हो जाते हैं.

   हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर माह की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित होती है. भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हेरंब संकष्टी चतुर्थी या अंगारक गणेश संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं. हेरंब का अर्थ है गणेश. इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से सारे संकट और विघ्न दूर हो जाते हैं. भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि बनी रहती है. इस वर्ष हेरंब संकष्टी चतुर्थी का व्रत 12 अगस्त 2025, मंगलवार को रखा जाएगा. आइये जानते हैं हेरंब संकष्टी चतुर्थी की मूल तिथि, महत्व, मंत्र एवं पूजा विधि आदि के बारे में...

संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व

गणेश जी का एक नाम विघ्नहर्ता भी है. मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास की हेरंब संकष्टी चतुर्थी का व्रत एवं पूजा करनेवाले जातकों के जीवन के सारे कष्ट एवं बाधाएं भगवान गणेश हर लेते हैं. जिस घर में इनकी नियमित पूजा होती है, वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है, नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश नहीं कर पातीं, जिसकी वजह से घर-परिवार में खुशहाली बनी रहती है. इस व्रत से जहां संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है, वहीं निसंतानों को गणपति बप्पा की कृपा से संतान प्राप्ति होती है. ज्योतिषियों का यहां तक मानना है कि संकष्टी चतुर्थी को गणेश जी की पूजा करने से कुंडली दोष मिट जाते हैं. यह भी पढ़ें : Raksha Bandhan 2025: बॉलीवुड के लोकप्रिय ऑन-स्क्रीन भाई-बहन! जिन्होंने परदे पर भाई-बहन के अनोखे रिश्ते को जिंदादिली से जीया!

मूल तिथि एवं मुहूर्त

भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 08.40 AM, 12 अगस्त 2025मंगलवार

भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 06.35 AM, 13 अगस्त 2025बुधवार

चूंकि यह व्रत चंद्रमा की पूजा के साथ समाप्त होता है, इसलिए 12 अगस्त 2025 को हेरंब संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी

चंद्रोदयः 08.59 PM

भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा-विधि

  भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करें. सूर्य को अर्घ्य दें. हाथ में पुष्प एवं अक्षत लेकर भगवान गणेश का ध्यान करें औऱ व्रत एवं पूजन का संकल्प लें. अब सूर्यास्त से पूर्व संध्याकाल के समय मंदिर के आसपास की जगह साफ करें. एक चौकी बिछाकर उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं, इस पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें. उन पर गंगाजल छिड़ककर प्रतीकात्मक स्नान कराएं. धूप-दीप प्रज्वलित करने के बाद निम्न मंत्र का जाप करते हुए पूजा शुरू करें.

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

गणेश जी को दूर्वा, लाल पुष्प, रोली, सिंदूर, हल्दी, अक्षत एवं लाल चंदन अर्पित. भोग में मोदक अथवा लड्डू तथा फल चढ़ाएं. गणेश चालीसा का पाठ करें. इसके बाद गणेश जी की आरती उतारें. चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य दें एवं पूजा करें. इसके बाद व्रत का पारण करें.

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