COVID-19: सांस से जुड़ी बिमारियों से पीड़ित लोगों के लिए इस साल की सर्दी है बहुत संवेदनशील

देश में कोरोना की स्थिति पर नज़र डालें तो सितम्‍बर में जहां प्रति दिन हज़ार से ऊपर लोगों की मृत्यु हो रही थी, आज यह संख्‍या में काफी कमी आयी है. हालांकि हर एक मृत्‍यु दु:खद होती है. स्वस्थ्‍य होने की दर 88 प्रतिशत और सबसे बड़ी बात यह कि भारत में कोविड से मृत्‍यु की दर विश्‍व में सबसे कम 1.52 है.

सर्दी का मौसम (Photo Credits: PTI)

नई दिल्ली: देश में कोरोना की स्थिति पर नज़र डालें तो सितम्‍बर में जहां प्रति दिन हज़ार से ऊपर लोगों की मृत्यु हो रही थी, आज यह संख्‍या में काफी कमी आयी है. हालांकि हर एक मृत्‍यु दु:खद होती है. स्वस्थ्‍य होने की दर 88 प्रतिशत और सबसे बड़ी बात यह कि भारत में कोविड से मृत्‍यु की दर विश्‍व में सबसे कम 1.52 है. लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली के डॉ. तन्मय तालुकदार का कहना है कि बड़े देशों से तुलना करें तो हर चीज में हम पहले से काफी अच्‍छा कर रहे हैं. लेकिन ढील देना खतरे से खाली नहीं है. यह समय सांस के मरीजों के लिए सबसे संवेदनशील है.

सर्दियों के मौसम में संक्रमण का कितना खतरा है?

प्रसार भारती से बातचीत में डॉ. तन्‍मय ने कहा कि सर्दियों में हमें वायरस के साथ-साथ प्रदूषण से भी बचना है. ऐसा पाया गया है कि प्रदूषण के कारण वायरस से फैलने वाली बीमारियों के फैलने की आशंका बढ़ जाती है. सर्दियों में श्‍वसन संबंधी बीमारियां भी बढ़ती हैं. इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण है त्योहारों का मौसम, जिसमें सभी को बहुत सावधानी रखनी है. अभी से लेकर दिसम्बर तक एक के बाद एक त्योहार आयेंगे. हमें ज़रा भी लापरवाही नहीं बरतनी है.

उन्‍होंने कहा कि सर्दियों में दमे के अटैक ज्यादा होते हैं, इसलिए दवाओं का खास ध्‍यान रखना है. अगर समय पर दवा नहीं ली, और लक्षण आये, तो हमें यह कंफ्यूजन (confusion) हो जाएगा कि कहीं कोरोना तो नहीं. और अगर ऐसे में कोविड हुआ तो परिवार के दूसरे सदस्यों को संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है.

डॉ. तन्‍मय ने कहा, "चूंकि सर्दियों में श्‍वास संबंधी बीमारियां अधिक होती हैं और उनके लक्षण काफी हद तक कोविड-19 के लक्षण से मिलते-जुलते हैं. इस समय सबसे कॉमन सीज़नल फ्लू होता है. इसके अलावा आम सर्दी-खांसी होती है. वो भी कोरोना वायरस से ही होती है, जो पहले से हमारे वातावरण में रहे हैं. इस वक्‍त चार और कोरोना वायरस हैं जो सर्दी जुकाम करने में माहिर हैं. ये चारों कोविड-19 कोरोना वायरस से अलग होते हैं. कोविड-19 में लक्षण गंभीर होने पर सांस फूलने लगती है, ऑक्‍सीजन का स्‍तर कम होने लगता है. वो इमरजेंसी लक्षण होते हैं. "

इस वक्त तम्‍बाकू का सेवन करने वालों में क्या परिवर्तन दिखे हैं? 

डॉ. तन्मय के मुताबिक कोरोना काल उनके लिए वरदान बनकर आया है, जो वाकई में तम्‍बाकू छोड़ना चाहते हैं. दरअसल लोगों और सिगरेट, बीड़ी, खैनी, गुटखा आदि के बीच मास्क रूपी दीवार आ गई है. बहुत लोग संक्रमण के डर से सेवन नहीं कर रहे हैं. अगर किसी ने अभी तम्‍बाकू का सेवन नहीं छोड़ा तो क्या छोड़ा. अभी नहीं तो कभी नहीं. तम्‍बाकू कितनी नुकसानदेह है, यह सभी को पता है, यह बताने की जरूरत नहीं. समय आ गया है कि इस बुरी आदत को हमेशा के लिए छोड़ दें.

उन्‍होंने आगे कहा कि अब तक हम यह जान चुके हैं कि कोरोना के अधिकांश मरीज एसिम्‍प्टोमेटिक या माइल्‍ड सिम्‍प्‍टोमेटिक होते हैं. जब वो स्मोकिंग करते हैं, तो थूक के सूक्ष्‍म कणों और धुएं के साथ वायरस हवा में फैलता है. स्मोकर्स  को खांसी ज्यादा आती है तो उन्‍हें खुद भी नहीं पता चलता कि वे संक्रमित हैं. उनके साथ अगर कोई नॉन-स्‍मोकर भी खड़ा है तो वह संक्रमित हो सकता है. इसलिए अब समय आ गया है Say No to Smoking.

अगर वायरस म्यूटेट हो गया तो क्या वैक्‍सीन पर कोई फर्क पड़ेगा?

आम तौर पर इंफ्लुएंजा वायरस में तेज़ी से म्यूटेशन होता है. इसे एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं. अगर वायरस में छोटे-छोटे बदलाव होते हैं तो वैक्सीन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. कई बार वायरस के एंटीजेन शिफ्ट होने में 10 से अधिक वर्ष लग जाते हैं. कोविड-19 में इतना मेजर म्यूटेशन अभी नहीं हुआ है कि वैक्सीन का असर उसपर नहीं हो.

Share Now

\