World Hindi Day 2020: भाषा-श्रृंगार की बिंदी है हिंदी, जानें कैसे हिंदी ने शख्सियतों को तराशा
हिंदी भाषा को दुनिया भर में गौरवान्वित करने का श्रेय कई लोगों को जाता है, मगर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने जिस तरह विदेशों में हिंदी का परचम लहराया, उसकी प्रशंसा कुछ शब्दों में कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं हो सकता.
World Hindi Day 2020: संपूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीन भाषाओं में एक है हिंदी. हिंदी बोलने और समझने वाली जनता करोड़ों में है. हिंदी ने हमें संपूर्ण विश्व में एक विशेष पहचान दिलाई है. शायद इसलिए आज हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की पहचान बनकर उभरी है हमारी भाषा-श्रृंगार की बिंदी बनकर हिंदी. यूं तो 14 सितंबर 1949 को हिंदुस्तान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था, उसी आधार पर 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है, लेकिन विश्व में हिंदी की बढ़ती शक्ति एवं लोकप्रियता को देखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को विश्व हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की थी ताकि संपूर्ण विश्व को हिंदी के माध्यम से जोड़ा जा सके.
हिंदी ने महात्मा गांधी के आंदोलन को गति प्रदान की:
15 अगस्त 1947... एक तरफ सारा हिंदुस्तान अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों से आजाद होकर पहले स्वतंत्रता दिवस का जश्न मना रहा था, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बीबीसी से हिंदी भाषा में बातचीत करते हुए कह रहे थे, ‘जाओ दुनिया से कह दो गांधी अंग्रेजी नहीं जानता. राष्ट्रीय एकता, जातीय उन्नति एवं एकता के लिए किसी भी देश की राजभाषा महत्वपूर्ण स्थान रखती है. किसी अन्य देश की भाषा को ग्रहण करना परतंत्रता की परंपरा को बढ़ावा देना है! और अब तो हम आजाद हैं!’ गांधी जी के इस ओजस्वी बयान को तब बहुतों ने उनका घमंड माना था, लेकिन आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हिंदी संपूर्ण भाषा ही नहीं एक संपूर्ण विज्ञान बन चुकी है, जिसका लोहा विश्व का सबसे शक्ति कहा जाने वाला देश अमेरिका भी मानता है.
महात्मा गांधी गुजरातीभाषी थे, लेकिन हिंदी भाषा को लेकर उनका योगदान अतुलनीय था. वे जब दक्षिण अफ्रीका से हिंदुस्तान आये तो साल 1917 में उनका पहला आंदोलन बिहार प्रदेश के चंपारण जिले से प्रारंभ हुआ था. चंपारण में उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भाषा को लेकर थी. क्योंकि वे गुजराती मिश्रित हिंदी बोल पाते थे, जो आम बिहारियों को आसानी से समझ में नहीं आती थी. उन्होंने बड़े मनोयोग से हिंदी सीखी. स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ने से पहले संपूर्ण देश का भ्रमण करते हुए गांधी जी को अहसास हो गया था कि पूरे देश को अगर कोई भाषा जोड़ कर रख सकती है तो वह हिंदी ही हो सकती है. अपने एक भाषण में उन्होंने कहा था कि उनके आंदोलन की सफलता में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसीलिए देश को आजादी मिलने के बाद गांधी जी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की वकालत की थी.
हिंदुस्तानी के लिए हिंदी की अहमियत:
देश के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के शब्दों में, हमारे देश में जितने भी महापुरुष आये, उन्हें अंग्रेजी भाषा से बाधाएं ही मिलीं, जब उन्होंने हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकारा तभी वे कामयाब हुए. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि हिंदी से ज्यादा सुगम भाषा और कोई नहीं हो सकती. उन्होंने एक बहुत खूबसूरत उदाहरण देते हुए कहा था, ‘अगर दुल्हन का श्रृंगार का मूल हिस्सा बिंदी है तो भाषा के श्रृंगार की बिंदी हिंदी ही हो सकती है.’ इसे एक कड़वा सच ही कहा जायेगा कि हिंदी न जानने वाला देश का प्रधानमंत्री, नेता, कलाकार, लेखक या पत्रकार संपूर्ण देश में तब तक लोकप्रियता हासिल नहीं कर सका, जब तक वह हिंदी से नहीं जुड़ा.
हिंदी ने बनाया ‘उपन्यास सम्राट’:
हिंदी की महत्ता के संदर्भ में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र ने भी स्वीकारा था कि उनका हिंदी एवं राष्ट्रीय आंदोलनों में हिस्सा लेना गांधी जी के कारण ही संभव हो सका था. प्रेमचंद्र के अनुसार गांधी जी जो हिंदी लिखते अथवा बोलते थे, उसे वह हिंदी नहीं बल्कि हिंदुस्तानी भाषा कहते थे. हिंदी की सरल और सहज भाषा थी. गांधी जी अधिकांशतया संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का ही इस्तेमाल करते थे. उनका यह तकिया कलाम बहुत लोकप्रिय हुआ था, ‘राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए बहुत जरूरी है.’
हिंदी को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार बनाया बाबूराव ने:
गैर हिंदी शख्सियतों में एक नाम पंडित बाबूराव विष्णु पराडकर भी थे, जिन्हें आज तक हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह की संज्ञा प्राप्त है. बाबूराव मराठी परिवार से थे, लेकिन उनका जन्म एवं प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई थी. आजादी की लड़ाई के दौरान बाबूराव ने हिंदी पत्रकारिता को जनजागरण के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. और जब आजादी मिली तो इसी हिंदी भाषा को उन्होंने नवभारत के निर्माण का जरिया बनाया. वे बहुत सहजता से अपने छोटे-छोटे वाक्य विन्यास के जरिये अपनी गहरी बातें भी आमजन तक पहुंचा देते थे. उनकी इस कला के सभी दीवाने थे. बाबूराव ने हिंदी को न केवल तमाम यादगार शब्दों का उपहार दिया बल्कि हिंदी लेखन की नयी शैली भी विकसित की.
अटल बिहारी बाजपेयी ने विदेश में लहराया हिंदी का परचम:
हिंदी भाषा को दुनिया भर में गौरवान्वित करने का श्रेय कई लोगों को जाता है, मगर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने जिस तरह विदेशों में हिंदी का परचम लहराया, उसकी प्रशंसा कुछ शब्दों में कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं हो सकता. वह देश के पहले राजनयिक (विदेश मंत्री) थे, जिन्होंने 1977 में संयुक्त राष्ट्र के 32वें अधिवेशन में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था.
उन्होंने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का उल्लेख करते जताया था कि दुनिया वालों को पूरे संसार को एक परिवार के रूप देखना चाहिए. हिंदी में कहे गये अटल जी के इस अंदाज को देखने के बाद दुनिया भर ने हिंदी की महत्ता को बहुत करीब से महसूस किया था.