Vivah Panchami 2019: विवाह पंचमी कब है? इसी तिथि पर हुआ था श्रीराम और सीता का विवाह, जानें महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथा

हिंदू धर्म के लोगों के लिए विवाह पंचमी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम और माता सिता का विवाह हुआ था. इस साल विवाह पंचमी का उत्सव 1 दिसंबर 2019 को मनाया जाएगा. विवाह पंचमी उत्सव को भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है.

विवाह पंचमी 2019 (Photo Credits: Facebook)

Ram Vivah 2019: हिंदू धर्म के लोगों के लिए विवाह पंचमी (Vivah Panchami) का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी तिथि पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम (Lord Rama) और माता सीता (Mata Sita) का विवाह हुआ था. इस साल विवाह पंचमी का उत्सव 1 दिसंबर 2019 को मनाया जाएगा. विवाह पंचमी उत्सव (Vivah Panchami Utsav)  को भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता सीता का जन्म नेपाल के जनकपुर में हुआ था और उनका विवाह भगवान राम के साथ मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि (Margashirsha Shulka Panchami) को हुआ था. उनके भव्य स्वयंबर का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है.

विवाह पंचमी के दिन भगवान राम की बारात नेपाल के जनकपुर जाती है. हर साल इस तिथि पर अयोध्या से परंपरागत तरीके से भगवान राम की बारात जनकपुर नेपाल जाती है और वहां पर उनका विवाह सीता जी से कराया जाता है. चलिए जानते हैं विवाह पंचमी का महत्व और सियाराम के विवाह की पौराणिक कथा.

शुभ तिथि-

विवाह पंचमी- 1 दिसंबर 2019 (रविवार)

पंचमी तिथि आरंभ- 30 नवंबर 2019 को शाम 06.07 बजे से,

पंचमी तिथि समाप्त- 01 दिसंबर 2019 की शाम 07.15 बजे तक.

विवाह पंचमी का महत्व

विवाह पंचमी के दिन भगवान राम और माता सीता के विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन माता सीता और भगवान राम की पूजा करने से शादी में आनेवाली समस्याएं दूर होती हैं. अगर किसी व्यक्ति के विवाह में देरी हो रही है या फिर किसी तरह की रुकावटें आ रही हैं तो इस दिन सियाराम की पूजा करनी चाहिए. विवाह के बाद वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाने के लिए इस दिन उनका पूजन करना चाहिए. इस दिन रामचरितमानस और बालकांड में भगवान राम और सिता के विवाह का पाठ करने से सियाराम की कृपा प्राप्त होती है.

सियाराम विवाह की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने भगवान राम और माता लक्ष्मी में माता सीता के रूप में अवतार लिया था. भगवान राम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के घर और माता सीता का जन्म मिथिला के राजा जनक के घर में हुआ था. सीता माता का प्राकट्य धरती से उस समय हुआ था, जब राजा जनक खेतों की तरफ गए थे और वहां उन्हें सीता मैया रोते हुए मिली थीं. यह भी पढ़ें: Ram Navami 2019: भगवान राम हैं एक ऐतिहासिक पुरुष, त्रेतायुग के ये घटनाक्रम देतें हैं उनकी वास्तविकता का प्रमाण

कहा जाता है कि एक बार माता सीता ने मंदिर में रखे भगवान शिव के धनुष को बड़ी ही सहजता से उठा लिया था, जिसे भगवान परशुराम के अलावा किसी और ने नहीं उठाया था. सीता माता को दिव्य धनुष उठाते हुए देख राजा जनक ने निर्णय लिया कि इस धनुष को जो उठाएगा, उसी के साथ वो अपनी पुत्री का विवाह करेंगे. इसके बाद राजा जनक ने स्वयंबर के लिए कई राज्यों के राजकुमारों को संदेश भेजा. इस स्वयंबर में महर्षि वशिष्ठ के साथ भगवान राम और लक्ष्मण जी भी दर्शक के तौर पर शामिल हुए.

कई राजकुमारों ने शिव जी के धनुष को उठाने की बारी-बारी से कोशिश की, लेकिन असफल रहे. यह देख राजा जनक दुखी हो गए और उन्होंने दुखी मन से कहा कि क्या यहां कोई ऐसा नहीं है जो मेरी पुत्री के योग्य हो? राजा जनक की इस मनोदशा को देखकर महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को धनुष उठाने के लिए कहा, जिसके बाद अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम ने स्वयंबर में हिस्सा लिया और भगवान शिव के धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे, लेकिन धनुष टूट गया. इस तरह से भगवान राम स्वयंबर के विजेता बनें और माता सिता के साथ उनका विवाह संपन्न कराया गया.

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