Teachers' Day 2019: डॉ. राधाकृष्णन की जयंती पर ही क्यों मनाया जाता है शिक्षक दिवस, जानें इसका इतिहास और महत्व
भारत में 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस मनाने के पीछे यह तर्क है कि इसी दिन आजाद भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन का जन्म दिन मनाया जाता है. डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद और शिक्षक के रूप में दुनिया भर में प्रख्यात थे.
Happy Teachers' Day 2019: भारत में शिक्षक दिवस (Teachers' Day) 5 सितंबर को मनाया जाता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस (International Teachers' Day) का आयोजन 5 अक्टूबर को होता है. यूनेस्को ने भी 1994 से प्रत्येक वर्ष 5 अक्टूबर को ही अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस मनाने की घोषणा की थी. गौरतलब है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है लेकिन इसके लिए सभी ने अलग-अलग दिन निर्धारित किया है. भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर के दिन मनाया जाता है. कुछ देशों में इस दिन अवकाश होता है तो कहीं-कहीं शिक्षकों के सम्मान स्वरूप आयोजन किये जाते हैं. वस्तुतः इस दिवस विशेष को मनाने के पीछे शिक्षकों को हर संभव सहयोग देने और भविष्य के लिए एक स्वस्थ शैक्षिक वातावरण तैयार करना मुख्य वजह थी. इस दिन सभी अपने शिक्षकों को सम्मान देकर न केवल उनका मनोबल बढ़ाते हैं, बल्कि उनके काम और ज्ञान की सराहना भी करते हैं. आज के समय में शिक्षक दिवस की अनिवार्यता इसलिए भी है ताकि बच्चों को समाज में एक शिक्षक की महत्ता समझ में आ सके.
राधाकृष्णन के जन्म दिन पर ही क्यों?
भारत में 5 सितंबर को ही शिक्षक दिवस मनाने के पीछे यह तर्क है कि इसी दिन आजाद भारत के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन (Dr. Radhakrishnan) का जन्म दिन मनाया जाता है. डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षाविद और शिक्षक के रूप में दुनिया भर में प्रख्यात थे. शिक्षा की उपयोगिता को सर्वोपरि स्थान देते हुए उन्होंने भारत सरकार को मशविरा दिया था कि सर्वश्रेष्ठ दिमाग वालों को ही शिक्षा प्रदान करने यानी ‘शिक्षक’ का दायित्व सौंपना चाहिए. तभी देश की सामाजिक, नैतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक स्थिति सुधरेगी और तभी प्रगतिशील देश के रूप में भारत की तस्वीर दुनिया के कैनवास में उभर एवं निखर कर आयेगी. यह भी पढ़ें: Teachers Day 2019: शिक्षक दिवस पर जानें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से जुड़ीं कुछ खास बातें
शिक्षक दिवस का महत्व
विश्व भर में शिक्षक दिवस मनाने की परिकल्पना इस बात का प्रतीक है कि हमारे जीवन में शिक्षकों का कितना ज्यादा महत्व है. शिक्षक जो वस्तुतः ज्ञान का भंडार है. वह किसी भी स्वार्थ अथवा भेदभाव से परे अपने विद्यार्थियों को इसीलिए ज्ञान प्रदान करता है कि उसके शिष्य का भविष्य उज्जवल हो और वह देश के विकास में अहम भूमिका निभा सके. इसीलिए शिक्षण दुनिया की सबसे प्रेरणादाई और जिम्मेदारी होती है. इस दिन विशेष को मनाकर हम शिक्षकों को हमारे जीवन में उनके असीम योगदान देने के लिए आभार प्रकट करते हैं. इस दिन स्कूल कॉलेजों में छात्र अपने शिक्षकों को फूल एवं उपहार देकर उनका सम्मान करते हैं.
सर्वपल्ली राधाकृष्णनः मेधावी छात्र से राष्ट्रपति तक का सफर
राधाकृष्णन का जन्म तमिलनाडु के तिरुतनी गांव में 5 सितंबर 1888 को एक अति साधारण परिवार में हुआ था. इनका बचपन तिरुतनी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थानों पर बीता था. वे शुरू से ही मेधावी छात्र थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल में हुई थी. इसके बाद की पढ़ाई मद्रास (आज का चेन्नई) क्रिश्चियन कॉलेज में पूरी हुई. उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई स्कॉलरशिप के खर्चे से पूरी की. 1916 में दर्शन शास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाल लिया. राधाकृष्णन के पूर्वज सर्वपल्ली नामक गांव में रहते थे, उनके पूर्वज चाहते थे कि उनके जन्मस्थल का बोध भी सदैव बने रहना चाहिए, इसीलिए सभी अपने नाम के आगे सर्वपल्ली शब्द आवश्यक रूप से लिखते थे. यह भी पढे़ें: Teachers' Day 2019: शिक्षक दिवस पर अपने टीचर के लिए दें ओजपूर्ण भाषण, खास अंदाज में करें उनका अभिवादन
राधाकृष्णन की योग्यता का सम्मान करते हुए एक बार जब वे मैसूर से कलकत्ता (कोलकाता) जा रहे थे, तो मैसूर विश्व विद्यालय से रेलवे स्टेशन तक उन्हें फूलों की बग्घी में ले जाया गया था. लंदन के जाने माने प्रोफेसर एच.एन. स्पेलडिंग तो राधाकृष्णन के लेक्चर से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय में उनके लिए एक विशेष चेयर स्थापित कर उनका सम्मान किया था. उनकी योग्यता का सबसे बड़ा प्रमाण यही था कि उन्हें 27 बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन उन्होंने इसे हासिल करने की कभी कोशिश नहीं की. साल 1931 में जहां ब्रिटिश सरकार ने डॉ. राधाकृष्णन को नाइट के सम्मान से नवाजा था. तो वहीं 1954 में भारत सरकार ने उन्हें शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया.
राधाकृष्णन ने छात्र जीवन में स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर को खूब पढा और उनके विचारों को आत्मसात किया. स्वतंत्रता के पश्चात 1952 में उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति और 1962 में देश का दूसरा राष्ट्रपति चुना गया. 1967 के गणतंत्र दिवस पर देश को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वह किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे. 17 अप्रैल 1975 को एक लंबी बीमारी के पश्चात सर्वपल्ली राधाकृष्णन का निधन हो गया.