Sarojini Naidu Punyatithi 2023: 'भारत कोकिला' यानी ‘नाइटेंगल ऑफ इंडिया’ यानी सरोजिनी नायडू के जीवन के 10 रोचक तथ्य!

स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष सरोजिनी नायडू को उनकी प्रभावी वाणी और ओजपूर्ण लेखनी के कारण ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ कहा जाता है.

सरोजिनी नायडू ( photo credit : twitter )

Sarojini Naidu Punyatithi 2023:  महान कवयित्री और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) भारतीय इतिहास की पहली ऐसी महिला हैं, जिन्हें इंडियन नेशनल कांग्रेस की अध्यक्षा और उत्तर प्रदेश की पहली गवर्नर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. सरोजिनी नायडू की अधिकांश कविताओं में बचपन की खूबसूरत झलकियां होती थीं, एक चुलबुलापन होता था. ऐसा लगता था कि उनके भीतर हमेशा एक बच्चा रहता है, इसलिए उन्हें ‘भारत कोकिला’ जैसे खूबसूरत उपाधि से भी नवाजा जाता है. सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था, इनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय बंगाली ब्राह्मण थे, जो हैदराबाद में निजाम कॉलेज के प्रिंसिपल थे. उनकी शिक्षा मद्रास (अब चेन्नई), लंदन एवं कैम्ब्रिज में हुई थी. भारत की महान सफलतम महिलाओं की सूची में सरोजिनी नायडू का नाम सबसे ऊपर आता है. सरोजिनी नायडू की 74 वीं पुण्य-तिथि पर जानें उनके जीवन के 10 रोचक तथ्य.

नाइटिंगेल ऑफ इंडियाः राजनीतिक कार्यकर्ता, महिला अधिकारों की समर्थक, स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष सरोजिनी नायडू को उनकी प्रभावी वाणी और ओजपूर्ण लेखनी के कारण ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ कहा जाता है. सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में हुआ था.

लंदन में शिक्षाः 16 साल की आयु में सरोजिनी नायडू को हैदराबाद के निजाम से छात्रवृत्ति मिली, जिसकी मदद से वह उच्च शिक्षा के लिए लंदन किंग्स कॉलेज चली गई. लंदन में उन्हें नोबेल पुरस्कार विजेता आर्थर साइमन और एडमंड गॉस ने उन्हें भारतीय विषयों पर लिखने की सलाह दी. उनकी सलाह से प्रेरित होकर सरोजिनी नायडू ने अपनी भावनाओं एवं अनुभवों के निचोड़ को कविता के रूप में व्यक्त किया, और वे 20 वीं सदी की महानतम कवयित्री बन गयीं.

प्यार और विवाहः लंदन में शिक्षा प्राप्त करते हुए कॉलेज में ही उन्हें एक गैर-ब्राह्मण और चिकित्सक गोविंदराजुलु नायडू से प्यार हो गया. साल 1898 में मात्र 19 साल की आयु में उनका यह प्यार पति-पत्नी के रिश्तों में बदल गया. उनके चार बच्चे जयसूर्या, पद्मजा, रणधीर और लीला मग्न थे.

गांधीजी से वह पहली मुलाकातः गांधीजी से सरोजिनी नायडू की पहली मुलाकात साल 1914 में इंग्लैंड में हुई थी. गांधीजी दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह के कारण लोकप्रिय हो चुके थे. सरोजिनी नायडू ने जब सुना कि गांधीजी भी इंग्लैंड में हैं, तब वह उनसे मिलने गईं. उस समय गांधीजी कंबल बिछाकर बैठे थे, उनके सामने टमाटर और मूंगफली का नाश्ता रखा हुआ था. उनकी यह सादगी देखकर सरोजिनी नायडू गांधीजी से बहुत प्रभावित हुई थीं.

राजनीति में प्रवेशः सरोजिनी नायडू के राजनीतिक जीवन 1905 में शुरू हुआ, जब वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनीं. 1915-18 में भारत में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों, स्थानों की यात्रा की और सामाजिक कल्याण महिला सशक्तिकरण और राष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिया. साल 1917 में उन्होंने महिला भारतीय संघ और की स्थापना की.

नमक सत्याग्रह आंदोलन की हिस्सेदारीः भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षाः  साल 1925 में, सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं. साल 1930 में उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया. इसके बाद और दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने पूर्वी अफ्रीकी भारतीय कांग्रेस की भी अध्यक्षता की.

ब्रिटिश हुकूमत द्वारा कभी सजा कभी सम्मानः भारत में प्लेग की महामारी के दौरान मरीजों की सक्रिय सेवा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने सरोजिनी नायडू को सम्मानित किया था. लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण उसी ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया.

पहली महिला गवर्नरः ब्रिटिश हुकूमत से भारत को पूर्ण आजादी मिलने के बाद सरोजिनी नायडू को देश के उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल मनोनीत किया गया. गौरतलब है कि साल 1947 से 1949 तक उत्तर प्रदेश संयुक्त प्रांत आगरा और अवध के नाम से जाना जाता था. उनके राज्यपाल के कार्यकाल में ही इस प्रदेश का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया.

'द गोल्डन थ्रेसोल्ड' से 'द फेदर ऑफ द डॉन' तकः साल 1905 में सरोजिनी नायडू का पहला कविता संग्रह द गोल्डन थ्रेसोल्ड के नाम से प्रकाशित हुआ था. साल 1961 में सरोजिनी नायडू की सुपुत्री पद्मजा नायडू ने 1927 में ‘द फादर ऑफ द डॉन’ नामक दूसरा काव्य संग्रह प्रकाशित किया.

गांधीजी की प्रिय मिकी-माउसः सरोजिनी नायडू गांधीजी की सबसे मजबूत समर्थक थीं और उन्होंने भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करने के लिए हर विचारधारा में उनका समर्थन किया था. महात्मा गांधी उन्हें प्यार से ‘मिकी माउस’ कहकर पुकारते थे. 2 मार्च 1949 को लखनऊ के गवर्नमेंट हाउस में हार्ट अटैक के कारण उनका निधन हो गया.

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