Sant Guru Kabir Das Jayanti 2019: श्रीराम के नाम के नाम का प्रचार करने वाले संत कबीर थे पाखंड और ढोंग के विरोधी
संत कबीर घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे. इस प्रवृत्ति के कारण वह समाज विभिन्न वर्गों से जुड़ते थे, उनके दुःख दर्द को देखते और समझते थे. देश के ऐसे ही तमाम हिस्सों में मानवता का संदेश देते हुए भक्ति की अलख देश भर में जगाते थे
जिन दिनों देश में धर्म और पाखंड शिखर पर था, धर्म के नाम पर तमाम कुप्रथाएं समाज में व्याप्त थीं, उन्हीं दिनों संत कबीर का जन्म एक अवतारी पुरुष के रूप में हुआ. कबीर ने हिंदू मुस्लिम के पाखंडों पर हमला करते हुए एक नये भक्ति भाव को जन्म दिया. आज 17 जून को देश उसी महान संत का जयंती मना रहा है. वास्तव में संत कबीर के जन्म को लेकर तमाम दुविधाएं हैं. इनके जन्म के संबंध में कोई प्रमाणिक तथ्य नहीं उपलब्ध हैं. विभिन्न सूत्रों के अनुसार कबीर दास जी का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था. सामाजिक प्रताड़ना ने बचने के लिए ब्राह्मणी ने शैशवकाल में ही उसे काशी के लहरतारा नामक तालाब के पास छोड़ दिया था.
प्रातःकाल नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने उन्हें देखा तो वे उसे उठाकर घर ले आये. नीरू और नीमा पेशे से जुलाहा थे. उनके कोई संतान नहीं थी. उन्होंने इस शिशु को ही अपनी संतान की तरह परवरिश की. कबीर दास जी की कुछ रचनाओं (काव्य) से आकलन किया जाता है कि सन 1398 के आसपास उनका जन्म हुआ था.
कबीर ने राम को अपना आदर्श मानते हुए बहुत सारे काव्य लिखे. लेकिन उनके राम राजा दशरथ के पुत्र एवं विष्णु द्वारा अवतार लिये राम नहीं थे. उनके राम निर्गुण धारा वाले राम बल्कि रोम-रोम रोम में बसे राम थे. बाद में गोस्वामी तुलसी दास जी ने सगुण रूप में अयोध्या के राजा श्रीराम के नाम का खूब प्रचार-प्रसार किया.
प्रासंगिक हैं आज भी कबीर
कबीर दास जी मध्यकाल के कवि थे, उस समय समाज में हिंदू-मुस्लिम और धर्म के नाम पर तमाम पाखंड व्याप्त थे. कबीर मानवता के पक्षधर थे, उन्होंने पाखंड, कुरीतियों और सामाजिक विद्वेश पर जमकर कटाक्ष किया. लेकिन सैकड़ों साल के पश्चात 21वीं सदी में आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिक हैं. ऐसा लगता है कि उन्होंने आज के ही दौर पर वे सारी कविताएं लिखी हैं. कबीर जांत-पात के कारण होने वाले तमाम अन्याय के खिलाफ थे.
घुमक्कड़ प्रवृति ने बनाया कवि
संत कबीर घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे. इस प्रवृत्ति के कारण वह समाज विभिन्न वर्गों से जुड़ते थे, उनके दुःख दर्द को देखते और समझते थे. देश के ऐसे ही तमाम हिस्सों में मानवता का संदेश देते हुए भक्ति की अलख देश भर में जगाते थे. उनके लिखे पद आज भी लोग गाते-गुनगुनाते मिलेंगे. कबीर दास जी के लिखे पदों की प्रशंसा हिंदी साहित्य के तमाम विद्वान साहित्यकार भी करते थे. यद्यपि कबीर दास जी की भाषा कोई विशेष नहीं थी, उन्होंने अपने सारे पद आम बोलचाल की भाषा होती थी, लेकिन उनके मंतव्य लोगों के दिलों को स्पर्श करते थे. कबीर दास जी जरा भी आध्यात्मिक प्रवृत्ति के नहीं थे. वे जिस काशी में पैदा हुए, जहां मृत्यु को वरण कर लोग मोक्ष प्राप्ति करते थे, उन्होंने खुद को इस मान्यता से अलग रखते हुए काशी में शरीर त्यागने के बजाय बस्ती के करीब मगहर में अपना प्राण त्यागा. आज वह स्थान कबीर नगर के नाम से जाना जाता है. एक मान्यता के अनुसार सन 1518 मे उऩकी मृत्यु हुई थी. मृत्यु से पूर्व कबीर दास जी की अंतिम रचना उनकी इसी सोच का प्रतीक कहा जा सकता है.
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये...
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोये॥
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.