संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत हर माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी पर रखा जाता है. वैशाख मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को किया जानेवाला यह व्रत, वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कहलाता है. भविष्य पुराण में वर्णित है कि किसी भी प्रकार के संकट में आप खुद को घिरा महसूस करें तो गणेश चतुर्थी का यह व्रत करके अपने सारे संकट दूर कर सकते हैं. इस व्रत को नियम पूर्वक करने से धर्म, अर्थ, मोक्ष, विद्या, धन व आरोग्य की प्राप्ति होती है.
धर्मकेतु ब्राह्मण की कथा
वैशाख संकष्टी चतुर्थी व्रत के संदर्भ में माता पार्वती गणेशजी से पूछती हैं, -वैशाख माह के कृष्णपक्ष की जो संकटा नामक चतुर्थी कही गई है, उस दिन गणेश के किस स्वरूप का पूजन करना चाहिए और उपवास में क्या खाना चाहिए? गणेशजी कहते हैं, -हे माता! वैशाख कृष्ण चतुर्थी के दिन ‘व्रकतुंड’ नामक गणेश की पूजा करने के पश्चातभोजन में कमलगट्टे का हलवा खाना चाहिए. द्वापर युग में युधिष्ठिर ने भी इस व्रत के संदर्भ में कृष्ण से पूछा था. तब श्रीकृष्ण ने जो उत्तर दिया था, मैं वही वृतांत आपको भी बताता हूं.
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श्रीकृष्ण ने कहा था, -हे युधिष्ठिर! संकष्टी चतुर्थी का जिसने व्रत किया और उसे जो फल प्राप्त हुआ, मैं वही कहानी आपको बता रहा हूं. -प्राचीनकाल में एक रतिदेव नामक एक प्रतापी राजा थे. अपने शत्रुओं के लिए वह कठोर शत्रु थे. देवराज इंद्र, यम, कुबेर आदि देवताओं से उनकी अच्छी मित्रता थी. उन्हीं के राज्य में धर्मकेतु नामक एक ब्राह्मण रहते थे. उनकी दो पत्नी सुशीला और चंचला थीं. सुशीला सदा व्रत रहती. जबकि चंचला भरपेट भोजन करती थी. कुछ समय पश्चात सुशीला को एक कन्या पैदा हुई, और चंचला को पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई. चंचला आये दिन सुशीला को ताना देती कि तूने इतना व्रत करके भी कन्या पैदा किया. मैंने कभी व्रत नहीं किया और मुझे पुत्र-रत्न मिला.
सौतन का व्यंग्य सुनकर भी सुशीला कभी जवाब नहीं देती. उसने गणेशजी की चतुर्थी का व्रत शुरू किया. सुशीला की भक्तिभाव से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन देते हुए कहा, -तुम्हारी आराधना से मैं संतुष्ट हूं. तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारी कन्या के मुख से निरंतर मोती और मूंगा झरते रहेंगे. तू सदा प्रसन्न रहेगी. इसके पश्चात तुझे वेदशास्त्रों का ज्ञाता पुत्र भी पैदा होगा. यह वरदान देकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए.
अब तो सुशीला की बेटी के मुंह से सदैव मोती- मूंगा झड़ने लगे. कुछ दिन बाद सुशीला को एक पुत्र पैदा हुआ. इसके पश्चात ब्राह्मण धर्मकेतु का स्वर्गवास हो गया. उनकी मृत्यु के पश्चात चंचला सारा धन लेकर अन्यंत्र रहने लगी. इधर सुशीला पति के घर पर ही पुत्र एवं पुत्री की परवरिश करने लगी. कन्या के मुंह से मोती-मूंगा बरसने से थोड़े ही समय में वह बहुत धनी हो गयी. यह देख चंचला ने ईर्ष्या स्वरूप उसकी बेटी को जान से मारने की सोच कुएं में ढकेल दिया. तब गणेश जी ने स्वयं उसकी रक्षा की. बालिका को जीवित देख चंचला परेशान हो गयी. उसने सोचा, जिसकी रक्षा ईश्वर करता है, उसे कोई नहीं मार सकता. इधर सुशीला पुत्री को सकुशल देख खूब प्रसन्न हुई. उसने पुत्री को सीने से चिपकाकर कहा कि तुझे श्री गणेशजी ने पुनर्जीवन दिया है. चंचला सुशीला के सामने नतमस्तक हो कहने लगी- बहन! मैं बहुत पापिन हूं, आप मुझे क्षमा करो.
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चंचला ने भी गणेशजी का कष्टनिवारक व्रत किया. गणेश जी के प्रताप से दोनों के बीच प्रेमभाव स्थापित हो गया. सुशीला द्वारा संकटनाशक गणेश चतुर्थी व्रत करने से उसकी सौत का हृदय परिवर्तन हो गया. गणेशजी माता पार्वती से कहते हैं, -हे देवी! इस लोक में इससे श्रेष्ठ विघ्नविनाशक कोई अन्य व्रत नहीं हैं. कृष्णजी कहते हैं कि हे धर्मराज! आप भी विधिपूर्वक गणेशजी का व्रत कीजिये. आपके शत्रुओं का नाश होगा, तथा अष्टसिद्धियां और नवनिधियां आपके सामने करबद्ध खड़ी रहेंगी. आप अपने भाईयों, पत्नी और माता सहित यह व्रत कीजिये. थोड़े समय में आप अपना राज्य प्राप्त कर लेंगे.
व्रत एवं पूजन विधि
वैशाख माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को गणपति के ‘वक्रतुण्ड’ स्वरूप की पूजा होती है. प्रात:काल उठकर स्नान कर गणेशजी के सामने हाथ जोड़कर मन ही मन संकल्प लें. शाम को स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर धूप, दीप, अक्षत, चंदन, सिंदूर, नैवेद्य से गणेश जी का पूजन करें. पूजन के बाद चंद्रमा निकलने पर पूजन कर अर्घ्य अर्पित करें. वैशाख चतुर्थी की कथा सुनें अथवा सुनायें. पूजन के बाद कमलगट्टे के हलवे का भोजन करें.
पूजा का शुभ मुहूर्तः 22 अप्रैल 2019 चंद्रोदय रात्रि 9.53 बजे