Ram Navami 2019: भगवान राम हैं एक ऐतिहासिक पुरुष, त्रेतायुग के ये घटनाक्रम देतें हैं उनकी वास्तविकता का प्रमाण

धार्मिक पुस्तकों में वर्णित कथाओं की प्रासंगिकता एवं इसके ऐतिहासिकता पर अक्सर सवालिया निशान लगते रहे हैं. हालांकि इस पर चल रहे तमाम शोधों से प्राप्त रिपोर्ट में जो तथ्य उजागर किये गये हैं, उससे श्रीराम की ऐतिहासिकता की पुष्टि होती है

राम नवमी 2019 (Photo Credits: Facebook)

Ram Navami 2019: भगवान श्रीराम (Bhagwan Ram) का जन्म त्रेतायुग (Treta Yuga) में अयोध्या (Ayodhya) में हुआ था. वाल्मिकी रामायण (Valmiki Ramayan)  एवं तुलसीदास कृत रामचरित मानस (Ramcharit Manas) में रामकथा का विस्तृत वर्णन है, लेकिन इन धार्मिक पुस्तकों में वर्णित कथाओं की प्रासंगिकता एवं इसके ऐतिहासिकता पर अक्सर सवालिया निशान लगते रहे हैं. हालांकि इस पर चल रहे तमाम शोधों से प्राप्त रिपोर्ट में जो तथ्य उजागर किये गये हैं, उससे श्रीराम की ऐतिहासिकता की पुष्टि होती है. ये प्रमाणिक तथ्य भारत और श्रीलंका में आज भी मौजूद हैं. कुछ ऐसे ही तथ्यों एवं घटनाक्रमों से परिचय करवा रहे हैं इस लेख में...

श्रीराम सेतु की सच्चाई

सर्वप्रथम हम बात करेंगे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर स्थित चूना-पत्थर निर्मित लगभग 50 किमी लंबी एक श्रृंखला की, जिसे रामसेतु कहा जाता है. रामसेतु एक ऐसा पुल था, जिसके पत्थर पानी पर तैरते थे. सुनामी के बाद कुछ पत्थर रामेश्वरम के तट पर आ गए थे. शोधकर्ताओं ने जब उसे दोबारा पानी में फेंका तो वे तैरते दिखे. जबकि वहां पड़े शेष पत्थर पानी में फेंकने पर डूब जाते थे. भौगोलिक नजरिये से देखें तो पायेंगे कि किसी समय यह सेतु भारत को श्रीलंका से जोड़ता होगा.

हिंदू पुराणों के अनुसार, इसका निर्माण अयोध्या के राजा श्रीराम की सेना के दो मुख्य वानर सैनिकों नल और नील ने किया था. हालांकि काफी समय तक यह सेतु विवाद का मुद्दा भी रहा और इसे तोड़कर भारत श्रीलंका के जलमार्ग को प्रशस्त करने की योजनाएं भी बनीं, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व जब अमेरिका के एक साइंस टीवी शो के कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर शोध कर जो रिपोर्ट भेजा, उससे यह सेतु श्रीराम काल का होने की प्रमाणिकता की पुष्टि करता है. यह भी पढ़ें: Ram Navami 2019 Wishes: रामभक्तों और प्रियजनों को इन शानदार Quotes, WhatsApp Stickers, Facebook Greetings व मैसेजेस को भेजकर दें राम नवमी की प्यार भरी शुभकामनाएं

साइंस चैनल के ट्रेलर के मुताबिक इंडियाना यूनिवर्सिटी नॉर्थवेस्ट, यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो बोल्डर और सदर्न ऑरेगान यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि राम सेतु मानव निर्मित है. शोध के पश्चात इस शो के एक वक्ता के अनुसार सैंड बार प्राकृतिक हो सकते हैं, लेकिन उनके ऊपर रखे पत्थरों को कहीं दूर से लाकर रखा गया है. ये चट्टानें 7000 साल पुरानी हैं, जबकि सैंड बार केवल 4000 साल पुराने. इसी काल को रामायण काल भी बताया जाता है.

द्रोणागिरी पर्वत

रामचरित मानस में उल्लेखित है कि लंका विजय के दौरान जब मेघनाद द्वारा लक्ष्मण पर अमोघ शक्ति चलाया गया तो लक्ष्मण की मृत्यु करीब तय थी. उन्हें बचाने के लिए जब हनुमान जी संजीवनी लेने द्रोणागिरी पर्वत गए थे और वे संजीवनी बूटी पहचान नहीं सके, तब उन्होंने पर्वत का बड़ा सा हिस्सा ले आने का निर्णय लिया. रावण वध के पश्चात हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत को यथास्थान पहुंचा दिया था. उस पर्वत पर आज भी वे चिह्न अंकित हैं, जहां से हनुमान जी ने उसे तोड़ा था. इसके अलावा श्रीलंका में जहां लक्ष्मण को संजीवनी बूटी देकर उनकी जान बचाई गयी थी, वहां आज भी वे दुर्लभ जड़ी बूटियां उपलब्ध हैं.

हनुमान की गदा

किष्किन्धा में लगभग 4400 ई पू के समय की एक गदा पाई गयी. यह एक ऐसे धातु की बनी गदा है, जो दिखने में पत्थर की लगती है, जबकि वह पत्थर की नहीं होकर एक ऐसी धातु की है, जिसे पत्थर पर अथवा लोहे जैसे धातु पर मारने पर भी न कोई निशान पड़ता है, न टूटता है.

राम राज्य के सिक्के

प्राचीनकाल के गन्धर्व देश (आज के अफगानिस्तान) में 4000 ई पू की स्वर्ण मुद्राएं मिली हैं जिन पर सूर्य की छाप अंकित है. हरियाणा स्थित भिवानी के पास भी खुदाई में स्वर्ण, चांदी और पत्थर की कुछ मुद्राएं मिली हैं, जिन पर एक ओर राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्ति है तथा दूसरी ओर सूर्य का चित्र अंकित है. वास्तुविदों ने इसे रामराज्य के समय का सिक्का माना है. यह भी पढ़ें: Ram Navami 2019: पूर्ण अवतारी नहीं थे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम, उनके जीवन से जुड़ी ऐसी बातें जो हर राम भक्त जरूर जानना चाहेगा

आचार्य चाणक्य की नीति में उल्लेखित है राम कथा

आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक में सीता जी के हरण का कारण उनकी अति सुंदरता को बताया है, जबकि रावण की मृत्यु का कारण उसका अति अहंकार माना है. उन्होंने भी सीता हरण और रावण वध का उल्लेख किया है. आचार्य चाणक्य के पूर्व आचार्य पाणिनि के सूत्रो में भी रामायण के चरित्रों के उल्लेख मिलते हैं.

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