Phulera Dooj 2020: जानें कब है फुलेरा दूज? मथुरा-वृंदावन में ‘फूलों की होली’ से होलिकोत्सव का दिव्य शुभारंभ! क्यों मानते हैं इसे साल का सर्वश्रेष्ठ दिन

होली के शुभागमन के अवसर पर श्रीकृष्ण एवं राधा की प्रतिमा पर खुशबूदार गुलाल एवं अबीर का छिड़काव करते हैं. इसके पश्चात इसी अबीर-गुलाल को मंदिर में पुरोहित द्वारा श्रद्धालुओं पर छिड़का जाता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

Phulera Dooj 2020: उत्तर भारत के प्रायः सभी नगरों-कस्बों में पूरी धूमधाम, उत्साह एवं जोश के साथ मनाये जाने वाले पर्व फुलेरा दूज का बहुत महत्व है. भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस पर्व के संदर्भ में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण फुलेरा दूज की पूर्व एवं संध्या के समय फूलों की होली में भाग लेते हैं. यह पर्व आम जन-जीवन में खुशियां एवं उल्लास बिखेरता है. इस दिन वृंदावन एवं मथुरा के कई मंदिरों में विभिन्न अनुष्ठानों एवं समारोहों का आयोजन किया जाता है, एवं श्रीकृष्ण की प्रतिमा को होली के शुभारंभ के तौर पर अबीर एवं रंगों से सराबोर किया जाता है. आइये जानें क्या है फुलेरा दूज! और क्या है इसका महात्म्य...

फाल्गुन मास में शुक्लपक्ष के अगले दिन अर्थात द्वितीया को फुलेरा पर्व मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 2020 में यह तिथि 25 फरवरी यानी मंगलवार के दिन पड़ रही है. फुलेरा पर्व की खास बात यह है कि यह दो पर्वों के बीच यानी वसंत पंचमी और होली के बीच में मनाया जाता है, और इस दिन से होली के तीसरे दिन तक होली का माहौल बना रहता है.

ऐसे मनाते हैं फुलेरा दूज:

फाल्गुन मास की द्वितीया के दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं. उत्तर भारत के विभिन्न स्थलों में यह उत्सव पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है. इस दिन घर के मंदिर एवं कृष्ण मंदिरों में साज-सज्जा की जाती है. भगवान श्रीकृष्ण एवं राधा की मूर्तियों को पहले पंचामृत फिर गंगाजल से स्नान कराने के पश्चात नये वस्त्र एवं आभूषणों से सजाया जाता है. कहीं-कहीं केवल फूलों से मंदिरों एवं कृष्ण-राधा का श्रृंगार किया जाता है. इस दिन श्रीकृष्ण की औपचारिक पूजा-अर्चना के पश्चात इनकी प्रतिमा के साथ फूलों की होली खेली जाती है. ब्रज और उसके आसपास के क्षेत्रों में इस दिन श्रीकृष्ण एवं बलराम के सम्मान में भव्य समारोह आयोजित किये जाते हैं. मंदिरों को फूलों एवं रोशनी से सजाया जाता है. श्रीकृष्ण की प्रतिमा को एक सुसज्जित मंडप में रखा जाता है. उनकी कमर में एक पीतांबर बांधा जाता है, यह इस बात का प्रतीक होता है कि भगवान श्रीकृष्ण होली खेलने के लिए तैयार हैं.

वर्ष का सर्वश्रेष्ठ दिन ‘फुलेरा दूज’:

ज्योतिषियों के अनुसार फुलेरा दूज का दिन साल के सर्वश्रेष्ठ दिनों में एक माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह दिन किसी भी तरह की बुरी शक्तियों, हानिकारक तत्वों, प्रभाव एवं दोषों से प्रभावित नहीं होता. इसलिए इस दिन को बहुत भाग्यशाली माना जाता है. इस दिन किसी भी प्रकार के शुभ कार्य किये जा सकते हैं. इसीलिए इस दिन की विशेषता को देखते हुए इसे ‘अबूझ मुहूर्त’ कहा जाता है. इसका आशय यह है कि विवाह संस्कार, नई संपत्ति की खरीदारी, गृह प्रवेश, नए व्यवसाय इत्यादि शुरु करने के लिए यह दिन अत्यंत पवित्र माना गया है. इसके लिए शुभ मुहूर्त अथवा शुभ घड़ी निकलवाने की जरूरत नहीं होती.

श्रीकृष्ण-राधा के सम्मान में होती है पूजा-भजन:

होली के शुभागमन के अवसर पर श्रीकृष्ण एवं राधा की प्रतिमा पर खुशबूदार गुलाल एवं अबीर का छिड़काव करते हैं. इसके पश्चात इसी अबीर-गुलाल को मंदिर में पुरोहित द्वारा श्रद्धालुओं पर छिड़का जाता है. शाम के समय दो प्राथमिक अनुष्ठान ‘रसिया’ और ‘संध्या आरती’ किया जाता है. सायंकाल पूजा आदि सम्पन्न किये जाने के बाद विभिन्न धार्मिक आयोजन और नाटक होते हैं, जिनमें कृष्णलीला इत्यादि का आयोजन किया जाता है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.

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