Muharram & Ashura 2024: कब है मुहर्रम? जानें शिया-सुन्नी आशूरा को विभिन्न तरह से क्यों मनाते हैं और क्या है इसकी कहानी?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 08 जुलाई 2024 से इस्लामी नव वर्ष 1446 शुरू हो चुका है. इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जिलहिज्जा 1445 का आखिरी दिन 7 जुलाई को था. चूंकि 6 जुलाई को मगरिब के बाद का चांद नहीं दिखा, इसलिए 7 जुलाई को जुल हिज्जा का अंतिम दिन माना गया.
Muharram & Ashura 2024: इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 08 जुलाई 2024 से इस्लामी नव वर्ष 1446 शुरू हो चुका है. इस्लामिक कैलेंडर के आखिरी महीने जिलहिज्जा 1445 का आखिरी दिन 7 जुलाई को था. चूंकि 6 जुलाई को मगरिब के बाद का चांद नहीं दिखा, इसलिए 7 जुलाई को जुल हिज्जा का अंतिम दिन माना गया. इस तरह मुहर्रम के 10वें दिन यानी 17 जुलाई को आशूरा मनाया जायेगा. यहां हम आशूरा जिसे यौम-ए-आशूरा भी कहते हैं, के बारे में बात करेंगे कि आशूरा क्या है और इस पर्व को शिया और सुन्नी समुदाय के मुसलमान भिन्न तरीके से क्यों मनाते हैं इत्यादि. यह भी पढ़े: Jammu and Kashmir Muharram: शिया समुदाय के लोगों ने 8वें मुहर्रम का जुलूस निकाला, जम्मू कश्मीर के श्रीनगर का देखें वीडियो
क्या है आशूरा?
‘आशूरा’ और ‘मुहर्रम’ वस्तुतः अरबी शब्द से उद्घृत है. मुहर्रम का शाब्दिक का अर्थ है निषिद्ध. इस्लामिक परंपरा के अनुसार मुहर्रम का महीना इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पाक महीनों में एक है, इस दरमियान युद्ध करना वर्जित होता है. आशूरा इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10वीं तिथि को मनाया जाता है. इस्लाम में आशूरा को स्मृति दिवस के रूप में देखा जाता है. यह वस्तुतः उपवास और धार्मिक समारोहों के साथ मनाया जाने वाला पर्व है, जिसमें सुन्नी समुदाय उपदेश और भोजन आदि के साथ इस उत्सव को सेलिब्रेट करते हैं. वहीं शिया मुसलमान आशूरा को शोक के रूप में मनाते हैं. इस दिन वे काले रंग के वस्त्र पहनते हैं.
शिया और सुन्नी आशूरा को अलग-अलग तरीके से क्यों मनाते हैं?
मुहर्रम माह की महीने की 10वीं तारीख यौम-ए-आशूरा है. इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग काले रंग के कपड़े पहनते हैं और कर्बला की जंग में शहादत देने वालों के लिए मातम मनाते हैं. इस दिन शिया समुदाय के मुस्लिम जहां ताजिया निकालते हैं, मजलिस पढ़ते हैं, और शोक व्यक्त करते हैं, वहीं सुन्नी समुदाय के मुसलमान रोजा रखते हैं और नमाज अदा करते हैं. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार अक्टूबर 680 ई में कर्बला की लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद साहब के पोते इमाम हुसैन की हत्या कर दी गई थी. इसलिए शिया मुसलमान इस दिन को उनकी बरसी के रूप में मनाते हैं.
क्या है यौम-ए-आशूरा की कहानी
कहा जाता है कि यजीद एक बहुत क्रूर शासक था. वह चाहता था कि और की तरह इमाम हुसैन भी उसके अनुसार कार्य करे, लेकिन यजीद का इमाम हुसैन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा. एक दिन यजीद को पता चला कि इमाम हुसैन कर्बला में छिपा हुआ है, उसने कर्बला का पानी बंद करवा दिया, लेकिन इमाम हुसैन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. वह इमाम के दबाव के आगे नहीं झुके. इसी बीच मुहर्रम की 10वीं तिथि यौम-ए-आशूरा को यजीद ने इमाम हुसैन और उनके साथियों पर आक्रमण करवा दिया. इमाम हुसैन ने अपने 72 साथियों के साथ यजीद की भारी-भरकम सेना का भरसक सामना किया, लेकिन संख्या में बहुत कम होने के कारण वे यजीद की सेना के सामने ज्यादा देर टिक नहीं सके, और वीरता से लड़ते हुए शहीद हो गये. इसके बाद से हर साल यौम-ए-आशूरा पर मुस्लिम समुदाय मातम मनाता है.