Haldi Kumkum 2021 Ukhane in Marathi: इन मजेदार उखाणे के साथ हल्दी-कुमकुम कार्यक्रम को बनाएं खास
नए साल की शुरुआत हो चुकी है. साथ ही त्योहारों ने भी दस्तक दे दी है, सबसे पहले लोहड़ी, फिर मकर संक्रांति और अब हल्दी कुमकुम. हल्दी कुमकुम को महाराष्ट्र में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया ज्यादा है. हल्दी कुमकुम समारोह में महिलाएं अपने पति के नाम से उखाणे लेती हैं. खास तौर पर उखाणे लेने की परंपरा नए शादीशुदा जोड़ी द्वारा निभाई जाती है.
Haldi Kumkum 2021 Ukhane in Marathi: नए साल की शुरुआत हो चुकी है. साथ ही त्योहारों ने भी दस्तक दे दी है, सबसे पहले लोहड़ी, फिर मकर संक्रांति और अब हल्दी कुमकुम (Huldi Kumkum). हल्दी कुमकुम को महाराष्ट्र में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया ज्यादा है. इस कार्यक्रम की शुरुआत मकर संक्रांति से शुरू हो जाती है और पूरा महिना चलता है. पहले हल्दी-कुमकुम सिर्फ महाराष्ट्र (Maharashtra), गुजरात (Gujarat), राजस्थान और गोवा (Goa) में ही आयोजित किये जाते थे लेकिन अब यह देशभर में प्रसिद्द हो चुका है. हल्दी कुमकुम के दिन लोग अपने रिश्तेदारों के घर जाते हैं, विवाहित महिलाएं आपस में एक-दूसरे को हल्दी कुमकुम का टीका लगाती है. महाराष्ट्रीयन समाज में इस पर्व का विशेष महत्व है. हल्दी कुमकुम नवविवाहित जोड़े के लिए खास होता है. मकर संक्रांति के दिन पहला हल्दी कुमकुम होता है. इस दिन महाराष्ट्रीयन महिलाएं एक-दूसरे को मिट्टी के छोटे से मटकेनुमा बर्तन में चने के होले, तिल-गुड़ के लड्डू, मूंग, चावल, गाजर व बोर मिला कर भर कर देती हैं.
ऐसा मानना है कि, मकर संक्रांति के बाद से दिन बढ़ता है. हल्दी कुमकुम के दिन विवाहित महिलाएं आपस में एक-दूसरे को हल्दी कुमकुम लगाकर तिलगुड़ खिलाती है. साथ ही शादीशुदा महिलाओं को सुहाग की चीजें जैसे कंगन, कुंकुम, बिंदी और फुल इत्यादि वस्तु भेंट में देती है. महाराष्ट्र की महिलाएं हल्दी कुमकुम कार्यक्रम आयोजन करती हैं. हल्दी कुमकुम समारोह में महिलाएं अपने पति के नाम से उखाणे लेती हैं. खास तौर पर उखाणे लेने की परंपरा नए शादीशुदा जोड़ी द्वारा निभाई जाती है, जिसे सुनने के लिए हर कोई बेताब होता है. आज आपके लिए हल्दी कुमकुम कार्यक्रम के लिए आसान और बेहतरीन मराठी उखाणे लेकर आए हैं.
महाराष्ट्र में शादी के बाद सुहागन महिला को उनके करीबी दोस्त और रिश्तेदार उन्हें घर में बुलाते हैं. फिर उनको हल्दी और कुमकुम लगाकर लगाया जाता है, इसके बाद सुहागन का छोटा सा तोहफा देते हैं, जिसे मराठी में (वान) कहा जाता है. साथ ही तिलगुड़ का लड्डू दिया जाता है. महाराष्ट्र में महिलाएं तिलगुड़ का लड्डू अपने घरों में ही बनाती हैं. सभी कार्यक्रम होने के बाद नए शादीशुदा कपल्स को उखाणे लेने का आग्रह किया जाता हैं. अगर आप की भी अभी शादी हुई है तो आप निचे दिए गए उखाणे को बोल सकती हैं.
नवविवाहित महिलाओं के लिए उखाणे:-
1- कामाची सुरूवात होते श्रीगणेशापासून,
..... चे नाव घ्यायला सुरूवात केली आजपासून.
2- यमुनेच्या प्रवाहात ताजमहालाचे पडते प्रतिबिंब,
..... चे नाव घेण्यास मी करत नाही विलंब.
3- गोकुळाच्या कुंजवनात श्रीकृष्ण वाजवतो बासरी,
..... रावांचं नाव घेऊन निघाले मी सासरी.
4- वर्षाऋृतूत वरूणराजाने केली बरसात,
..... चे नाव घेण्यास केली मी सुरूवात.
5- बारीक मणी घरभर पसरले,
..... साठी माहेर विसरले.
6- पुरूष म्हणजे सागर, स्त्री म्हणजे सरिता,
..... रावाचं नाव घेते तुम्हां सर्वांकरिता.
7- लग्नात लागतात हार आणि तुरे,
..... च्या नाव घेण्याचा आग्रह आता पुरे.
8- चंदनी पानात मुग्ध कळी हसली,
..... रावांच्या प्रेमात मी नकळत फसली.
9- रुपेरी सागरावर चंदेरी लाट,
..... रावांचं नाव घेते सोडा माझी वाट.
10- परसात अंगण, अंगणात तुळस,
..... नाव घ्यायचा मला नाही आळस.
11- रूक्मिणीने केला पण कृष्णाला वरीन,
..... च्या साथीने आदर्श संसार करीन.
12- हो-नाही म्हणता म्हणता लग्न जुळले एकदाचे,
..... मुळे मिळाले मला सौख्य आयुष्यभराचे.
13- इंग्रजीत म्हणतात मून,
..... चं नाव घेते..... ची सून.
14- सर्वांना नमस्कारासाठी जोडते हो हात,
..... रावांचे नाव घेते पण सोडा माझी वाट.
15- आवडतं सर्वांना पुढचं पाऊल,
..... चं नाव घेते कुंकू लावून.
16- जमल्या सा-या जणी हळदी कुंकूवाच्या निमित्ताने
संसाराचा गाडा उचलेन......रावांच्या साथीने
17- तिळाचे लाडू, गुळाचा गोडवा
......रावांसोबत रोजच साजरा होतो माझा पाडवा
18- गुलाबापेक्षा सुंदर गुलाबाची कळी
......रावांचे नाव घेते हळदी कुंकूवाच्या वेळी
19- सासर आणि माहेरचे सगळेच आहे हौशी
......रावांचे नाव घेते हळदी कुंकूवाच्या दिवशी
20- मायेने जपली संस्कारात वाढली लेक आहे......ची (आडनाव टाकणे)
......रावांमुळे सून झाली मी......ची (आडनाव टाकणे)
जो खाली जगह दी गए है उसकी जगह शादीशुदा महिलाएं अपने पति का नाम लें और इन आसान उखाणे से हल्दी-कुमकुम समारोह को खास बनाएं. ऐसी भी मान्यता है कि, हल्दी कुमकुम मनाने की शुरुआत पेशवा साम्राज्य के दौरान हुई. उस जमाने में पुरुष युद्ध लड़ने चले जाते थे और सालों तक घर नहीं आते थे. ऐसे में महिलाएं घर से निकल नहीं सकती थीं इसलिए हल्दी कुमकुम के बहाने आस-पड़ोस की औरतों और सहेलियों को अपने घर बुलाती थी. उनके माथे पर हल्दी-कुमकुम लगाकर उनका स्वागत करती थीं. इस दौरान वो उपहार में कपड़े, इत्र व श्रृंगार का सामान भी भेंट में देती थीं. हल्दी कुमकुम के इस त्योहार को महाराष्ट्र में बहुत ही धूमधाम के मनाया जाता है.